प्रवासी मजदूर रोते हुए कहते हैं, हमारे खिलाफ एफआईआर इसलिए दर्ज नहीं की गई, क्योंकि हम अलग-अलग सेंटरों में थे, बल्कि इसलिए की गई क्योंकि हमने केंद्रों की खराब स्थितियों को उजागर कर बिहार सरकार को कर दिया था एक्सपोज...
जनज्वार। लॉकडाउन की तमाम कठिनाइयों के बीच पैदल या फिर किसी भी जुगाड़ से बिहार पहुंचे प्रवासी मजदूरों को अब नीतीश सरकार गिरफ्तार करके जेल भेज रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि प्रवासी मजदूरों ने उनके लिए बने क्वारंटीन सेंटर की बुरी हालात की शिकायत की थी। इनके खिलाफ बिहार पुलिस ने एफआईआर दर्ज की है।
20 मई को मधेपुरा के कुमारखंड के अंतर्गत रामनगर महेश गांव में बने क्वारंटीन सेंटर में बिजली-पानी की समस्या थी। इसी को ठीक करवाने की मांग मजदूरों द्वारा की जा रही थी और वीडियो बनाकर इसका वीडियो सोशल मीडिया पर डाला था। स्थानीय अधिकारियों की सहमति के बिना मजदूर अपने सेंटरों में सुधार के लिए शिकायत कर रहे थे इसलिए उनकी मांगों को तो नहीं माना गया उल्टा आईपीसी की धारा 188 के तहत मजदूरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई है।
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इस मामले पर मजदूर मनोज मुखिया ने एएनआई को बताया कि 17 मई को स्क्रीनिंग के बाद कुमारखंड के अधिकारियों ने रामनगर महेश में हम लोगों के लिए एक मिडिल स्कूल को क्वारंटीन सेंटर के रूप में आवंटित किया था। हम तीन लोगों के अलावा 6 और अन्य लोगों को इस सेंटर में रखा गया था। इतने लोगों को रखने के बावजूद भी केंद्र में सुविधाएं ना के बराबर थी। केंद्र में ना तो पीने के लिए पानी था और ना ही बिजली की किसी तरह की कोई व्यवस्था थी।
इन हालातों में हम लोगों ने सेंटर की परिस्थितियों से गुस्सा कर एक वीडियों शूट करते हुए 19 मई को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक पर डाल दिया। हमारे ऐसा करने से यहां के स्थानीय अधिकारियों को परेशानी होने लगी, जिसके बाद उसी शाम को कुमारखंड खंड विकास अधिकारी पुलिस अधिकारियों के साथ केंद्र पर पहुंच मजदूरों को दूसरे केंद्र में ले जाया गया। प्रवासी मजदूरों पर ऑनलाइन वीडियो पोस्ट करने और ऐसे स्कूल में रहने जिसे सेंटर के रूप में नामित नही किया गया था, के लिए एफआईआर दर्ज कर दी गयी।
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हालांकि एएनआई द्वारा जारी किए गए दस्तावेजों से पता चलता है कि स्कूल को प्रवासियों के लिए क्वारंटीन सेंटर के रूप में आवंटित किया गया था और कम से कम तीन लोगों के लिए इससे पहले भी इस स्कूल का केंद्र के रूप में आवंटित किया गया था। इसके अलावा 23 मार्च को भी कुमारखंड बीडीओ ने मध्य विद्यालय रामनगर को एक आधिकारिक आदेश द्वारा इस सेंटर को केंद्र के रूप में आवंटित किया था, जिसकी एक कॉपी एएनआई द्वारा प्रकाशित की गई है।
इस मामले पर 6 अन्य लोग जिनके खिलाफ कार्रवाई की गई, ने कहा कि हम लोगों को अधिकारियों ने बताया था कि वे अपनी सुविधा के अनुसार किसी भी केंद्र में रह सकते हैं, जिसके बाद हम लोगों ने कुमारखंड में अधिकारियों से रौता में सेंटर को छोड़ने का अनुरोध किया। प्रवासी मजदूरों को प्रशासन ने किसी तरह की गाड़ी ना होने की बात कहते हुए खुद ही वहां तक जाने को कह दिया, क्योंकि रौता कुमारखंड से लगभग 7 किलोमीटर दूर था। मजदूरों ने कहा रौता हमारे घर से काफी दूर था और रामनगर नजदीक, तो हमने प्रशासन से वहां रहने की अनुमति ली थी।
लखनऊ से पहुंचे छोटू कुमार कहते हैं, अधिकारियों ने हमसे कहा कि हम किसी भी केंद्र में रह सकते हैं। उनका कहना था कि क्योंकि मैं किसी भी केंद्र में सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं का लाभ उठा सकता हूं, इसलिए इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैं वास्तव में कहां रहता हूं। जिसके बाद मैंने अधिकारियों से रौता क्वारंटीन सेंटर को बंद करने और पर्ची पर रामनगर का नाम लिखने के लिए कहा तो उन्होंने इनकार करते हुए मुझे खुद इसमें सुधार करने के लिए कह दिया।
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गुरुग्राम से मधेपुरा तक 1200 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय करने वाले गुलशन कुमार ने भी इसी तरह की शिकायत करते हुए बताया कि मैं 18 मई की रात को रामनगर पहुंचा था और दूसरों लोगों के साथ मुझे भी मिडिल स्कूल रहने के लिए आवंटित किया गया था। अगले दिन मैं खुद को पंजीकृत कराने के लिए दो अन्य लोगों के साथ कुमारखंड गया, जहां हमें रौता के क्वारंटीन सेंटर को हमारे लिए आवंटित किया गया था।
हमने अधिकारियों से रामनगर के क्वारंटीन सेंटर में रहने के लिए पूछा, क्योंकि रामनगर हमारे गांव के करीब था और हमारे सामान को भी वहां रखा गया था। उन्होंने हमें अनुमति दी, लेकिन अगले दिन हमें कुमारगंज ले जाया गया और वहां हमारे खिलाफ प्राथमिक दर्ज कर ली गई।
गुलशन का कहना था कि क्योंकि मैं एक अनपढ़ व्यक्ति हूं और नहीं जानता कि मुझे क्या कहना है। मैंने बस अधिकारियों द्वारा बताई गई बातों का पालन किया। साथ में खड़े एक अन्य मजदूर ने भी रोते हुए बताया कि हमारे खिलाफ एफआईआर इसलिए दर्ज नहीं की गई क्योंकि हम अलग-अलग सेंटरों में थे, बल्कि इसलिए की गई क्योंकि हमने केंद्रों की खराब स्थितियों को उजागर करने के लिए वीडियो को शूट किया था।
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रामनगर की ग्राम प्रधान रामटोनिया देवी ने स्कूल के बारे में एक आधिकारिक संचार प्राप्त करने की पुष्टि की। उनका मानना है कि जिस स्कूल की स्थितियों के बारे में बताया गया है, उसको क्वारंटीन सेंटर के रूप में आवंटित किया गया था। इसके अलाबा गरीब प्रवासियों के ऊपर जिस तरह की पुलिस कार्रवाई की गई वो पूरी तरह से मजदूरों के खिलाफ अन्याय है।
इस मामले पर श्रीनगर पुलिस स्टेशन के एसएचओ राजीव रंजन सिंह ने एएनआई को बताया कि जिन अधिकारियों ने क्वारंटीन सेंटर का आवंटन किया था, उन्होंने स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया था कि क्या ये सेंटर वास्तव में रामनगर में मध्य विद्यालय में आता है या रामनगर पंचायत क्वारंटीन सेंटर में, जो वास्तव में श्रीनगर में स्थित है। इसी के कारण भ्रम की स्थिति पैदा हुई।
एसएचओ ने आगे कहा कि डीएम, बीडीओ और सीओ के आदेश पर मजदूरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। हालांकि उनमें से कुछ को रामनगर मध्य विद्यालय आवंटित किया गया था, लेकिन अगर सुविधाओं की कमी थी तो उन्हें पुलिस और ग्राम प्रधान को सूचित करना चाहिए था। इसके बजाय उन्होंने एक वीडियो शूट किया और इसे सोशल मीडिया पर पोस्ट किया, जहां पर ये वायरल हो गया। प्रवासी मजदूरों को दिन की अनिवार्य क्वारंटीन की अवधि पूरी करने के बाद ही गिरफ्तारी दी जाएगी।
इस मसले पर मधेपुरा के जिला मजिस्ट्रेट नवदीप शुक्ला ने एएनआई को बताया कि मामले के बारे में पता लगाने जांच शुरू की जाएगी कि इस मसले पर श्रमिकों की बुकिंग में किसी तरह की कोई गलती थी या नहीं। जिसके लिए हम दस्तावेजों की प्रामाणिकता की जांच करेंगे।
इससे पहले भी एक संबंधित मामले में मुजफ्फरपुर के क्रांति क्षेत्र में एक सेंटर पर सुविधाओं की कमी के कारण प्रवासी श्रमिकों को भूख हड़ताल करने के लिए उकसाने के लिए आईपीसी की धारा 188, 269, 270 और 253 के तहत एक व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी।