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राजनीति

आदिवासियों का मुकदमा लड़ने के अपराध में गिरफ्तार हुईं सुधा भारद्वाज?

Prema Negi
28 Aug 2018 5:09 PM IST
आदिवासियों का मुकदमा लड़ने के अपराध में गिरफ्तार हुईं सुधा भारद्वाज?
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जनकवि वरवर राव, अरुण फरेरा की भी हो चुकी है गिरफ्तारी

उत्तम कुमार, संपादक दक्षिण कोसल

छत्तीसगढ़ में मानवाधिकार संगठन #पीयूसीएल की महासचिव और #हाईकोर्ट की अधिवक्ता #सुधाभारद्वाज को दिल्ली में गिरफ्तार किया गया है। सुधा भारद्वाज को फिलहाल हरियाणा के सूरजकुंड थाने में रखा गया है। पुलिस के अनुसार भारद्वाज के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 153A, 505, 117, 120B IPC धारा 13,16,17,18,18B, 20, 38,39,40 UAPA धारा लगाई है

जनकवि वरवरा राव की भी गिरफ्तारी हो चुकी है। उनपर आईपीसी की धारा 153 (A), 505 (1) (B), 117, 120 (B), 34, UAPA Act 13, 16, 17, 18 (B)] 20,38, 39, 40 के तहत पुणे के विश्रामबाग थाने में मुकदमा दर्ज हुआ है। सूत्रों का कहना है कि आज सुबह ही पुलिस ने देश के कई शहरों में भीमा कोरेगांव मामले में एक साथ छापामारी की | मुंबई, दिल्ली, रांची, गोवा और हैदराबाद में एक साथ की गई छापामारी में कई और मानवाधिकार संगठनों से जुड़े लोगों की गिरफ्तारी की खबर है।

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जिन लोगों के घर छापामारी की गई है, उनमें फादर #स्टेन स्वामी, #क्रांति टेकुला, #सुसन अब्राहम, #आनंद तेलतुंबड़े, #गौतम नवलखा और #आन्ध्रा की कवि #वरवरा राव जैसे ख्यातिमान लोग शामिल हैं | सूत्रों का कहना है कि महाराष्ट्र की पुणे पुलिस ने मंगलवार सुबह करीब छह बजे देश के अलग-अलग हिस्सों में छापामारी की | इस छापेमारी में पुलिस ने कंप्यूटर, लैपटॉप, सीडी, कागजात और किताबों जैसे कई सामान जब्त किए हैं |

गिरफ्तार किये गये लोगों से महाराष्ट्र में कुछ संगठनों के बारे में भी पूछताछ की गई । ये छापेमारी महाराष्ट्र में उनके खिलाफ दर्ज एक मुक़दमे के कारण की गई । जिसमें उनके इस साल 1 जनवरी को महाराष्ट्र के पुणे के नजदीक भीमा-कोरेगांव हिंसा में संलिप्त रहने के आरोप हैं । इस मामले नें पूर्व में सुधीर धावले, सुरेन्द्र गाडलिंग, महेश राउत, रोना विल्सन तथा सोमा सेन को गिरफ्तार किया है ।

गिरफ्तारी के बाद इंकलाब जिंदाबाद और लाल सलाम का नारा लगाते हुए जनकवि वरवरा राव

रांची में जिन फादर स्टेन स्वामी के घर पुलिस ने छापामारी की, उन पर झारखण्ड सरकार पत्थलगड़ी मामले में राजद्रोह का मामला दर्ज चुकी है. स्वामी पर आरोप है कि उन्होंने देश के खिलाफ पत्थलगड़ी मामले में कुछ लोगों को भड़काया है. इसके अलावा जिन लोगों के घरों पर छापामारी की कार्रवाई की गई है, पुलिस उन पर माओवादी समर्थक होने का आरोप लगाती रही है।

सुधा भारद्वाज का दोष यह है कि वह एक मानवाधिकार अधिवक्ता होने के नाते लगातार छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में आदिवासियों की मुठभेड़ों में बंदी प्रत्यक्षीकरण के प्रकरणों में पेश हुई और निडरता के साथ लगातार मानवाधिकार रक्षकों की पैरवी करती रही।

जब हाल ही में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने छत्तीसगढ़ के सुकमा के कोडासवाली गांव में एक जांच में उनका सहयोग मांगा था तब भी वह अपनी व्यवसायिक ईमानदारी और साहस के साथ पेश आई। यदि यही उनका दोष है तो वे तमाम लोग भी उतने ही दोषी हैं जो अधिनायकवाद, फासीवाद और भूमंडलीकरण की ताकतों द्वारा पैदा खतरों और चुनौतियों का सामना रचनात्मक और आलोचनात्मक तौर-तरीकों से करते आ रहे हैं।

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पहले भी सभी को मालूम हो कि नेशनल लॉ युनिवर्सिटी, दिल्ली की अतिथि प्रोफेसर और पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज की राष्ट्रीय सचिव अधिवक्ता सुधा भारद्वाज ने रिपब्लिक टीवी चैनल पर 4 जुलाई 2018 को अर्नब गोस्वामी द्वारा प्रसारित उस सुपर एक्सक्लूसिव ब्रेकिंग न्यूज पर आपत्ति जताई थी, जिसमें उनके खिलाफ बेबुनियाद आरोप लगाए गए थे | रिपब्लिक टीवी पर ऐंकर गोस्वामी ने ‘शहरी माओवादी’ पर एक बुलेटिन चलाते हुए अधिवक्ता सुधा के नाम से एक पत्र का उल्लेख किया था।

सुधा ने एक सार्वजनिक बयान जारी करते हुए कहा था कि मेरे खिलाफ आरोपों की एक लंबी सूची पेश की जा रही है जो हास्यास्पद, अपमानजनक, झूठी और एकदम निराधार है।

आपको जानना चाहिए कि अर्थशास्त्री रंगनाथ भारद्वाज और कृष्णा भारद्वाज की बेटी सुधा का जन्म अमरीका में 1961 में हुआ था। 1971 में सुधा अपनी मां के साथ भारत लौट आईं। जेएनयू में अर्थशास्त्र विभाग की संस्थापक कृष्णा भारद्वाज के सोच के विपरित सुधा अपनी अमरीकन नागरिकता छोड़ दी। सुधा 1978 की आईआईटी कानपुर की टॉपर है। आईआईटी से पढ़ाई के साथ वह दिल्ली में अपने साथियों के साथ झुग्गी और मजदूर बस्तियों में बच्चों को पढ़ाना और छात्र राजनीति में मजदूरों के बीच काम करना शुरू कर दिया था।

लगभग साल 1984-85 में वे छत्तीसगढ़ में शंकर गुहा नियोगी के मजदूर आंदोलन से जुड़ गईं। उन्होंने 40 की उम्र में अपने मजदूर साथियों के संघर्षों में संवैधानिक लड़ाई के लिए वकालत की पढ़ाई पूरी कर आदिवासियों, मजदूरों के न्याय के लिए उठ खड़ी हुई।

जनहित के नाम से वकीलों का एक ट्रस्ट बनाया और समाज के पीडि़त वर्ग के लिए केस लडऩा शुरू किया। उन्होंने बस्तर के फर्जी मुठभेड़ों से लेकर अवैध कोल ब्लॉक, पंचायत कानून का उल्लंघन, वनाधिकार कानून, औद्योगिकरण के मसले पर ढेरों लड़ाईयां लड़ी।

उज्जवल भट्टाचार्या हस्तक्षेप ब्लाग में लिखते हैं कि सुधा की मां कृष्णा भारद्वाज जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में इकोनामिक्स डिपार्टमेंट की डीन हुआ करती थीं। सुधा की मां बेहतरीन क्लासिकल सिंगर थी और अम अम अमत् र्य सेन के समकालीन भी थी। आज भी सुधा की मां की याद में हर साल जेएनयू में कृष्णा मेमोरियल लेक्चर होता है, जिसमें देश के नामचीन स्कॉलर शरीक होते हैं।

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आईआईटी से टॉपर हो कर निकलने के बाद भी सुधा को कैरियर खींच न सका। उनकी मां ने दिल्ली में एक मकान खरीद रखा था, जो आजकल उनके नाम पर है, मगर बस नाम पर ही है। मकान किराए पर चढ़ाया हुआ है, जिसका किराया मजदूर यूनियन के खाते में जमा करने का फरमान उन्होंने किरायेदार को दिया हुआ है। गुमनामी में गुमनामों की लड़ाई लड़ते अपना जीवन होम कर चुकी हैं। उन पर लगाए जा रहे आरोप साजिशाना है जो लोग पीडि़त मानवता के लिए उठ खड़े हो रहे हैं उन्हें साम, दाम, दंड और भेद के साथ निरंकुश शासन व्यवस्था उनके सामने कठिन चुनौतियां पेश कर रही है। प्रतिवाद में जनसंघर्ष तेज होंगे और नए रास्ते निकाले जाएंगे।

वह पिछले 30 वर्षों से ट्रेड यूनियन आंदौलन से जुड़ी हुई है और छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा में सक्रिय रही है, जिसकी स्थापना शंकर गुहा नियोगी ने की और दल्ली राजहरा और भिलाई की मजदूर बस्तियों के सैकड़ों मजदूरों के बीच जीवन जिया हैं,जो इस सत्य के गवाह हैं।

ट्रेड यूनियन कार्यवाहियों सन 2000 से एक वकील बनी और तब से लेकर आज तक मजदूरों, किसानों, आदिवासियों, दलितों और गरीबों के मुकदमों में पैरवी की है, जो भूमि अधिग्रहण, वन अधिकारों और पर्यावरण अधिकारों के दायरे में आते हैं।

मां सुधा भारद्वाज की गिरफ्तारी के बारे में बताती उनकी बेटी मायशा नेहरा

2007 से वह छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय, बिलासपुर में बतौर वकील कार्यरत है और उच्च न्यायालय ने छत्तीसगढ़ राज्य स्तरीय सेवा प्राधिकरण के सदस्य के रूप में भी नियुक्त किया पिछले एक वर्ष से नेशनल ला यूनिवर्सिटी दिल्ली में एक अतिथि प्रोफेसर के रूप में शिक्षा दे रही है,जहां आदिवासी अधिकारों और भूमि अधिग्रहण पर एक संगोष्ठी आयोजित किया और पाठ्यक्रम भी तैयार किया। इसके अलावा गरीबी पर एक नियमित पाठ्यक्रम भी पेश किया हैं। दिल्ली की जूडिशल अकादमी के कार्यक्रम से अभिन्न अंग के रूप में जुड़ी है | श्री लंका के श्रम न्यायालयों के अध्यक्षों को भी संबोधित किया है इस तरह उनके जनपक्षीय और मानवाधिकार अधिवक्ता के रूप में काम जगजाहिर हैं।

उन्होंने पूर्व में कहा है कि फिलहाल दुर्भावनापूर्वक प्रेरित और मनगढंत हमला मेरे ऊपर इसलिये किया जा रहा है कि हाल ही में 6 जून को दिल्ली में एक प्रेसवार्ता में अधिवक्ता सुरेंद्र गडलिंग की गिरफ्तारी की निंदा की थी | इंडिया एसोसिएशन ऑफ पीपुल्स लॉयर्स जो वकीलों का एक संगठन है, उसने भी अन्य वकीलों के मुद्दों को जोर-शोर से उठाया है, जिसने भीम आर्मी के अधिवक्ता चन्द्रशेखर और स्टर्लिंग पुलिस गोली कांड के बिना पर गिरफ्तार किये गये अधिवक्ता सुचिनाथन का मामला भी है।

यह स्पष्ट है कि ऐसे वकीलों को निशाना बना कर उन सभी को डराने की कोशिश है जो नागरिकों के जनतांत्रिक अधिकारों के लिये वकालत कर रहे हैं। रणनीति यह हैं कि एक भय का माहौल पैदा किया जाए, और उन सब को चुप कराने की कोशिश हैं। जिससें कि आम जन न्याय से वंचित हो जाये। इसके सातंग ही गौरतलब हैं कि अभी हाल ही में आईएपीएल कश्मीर में वकीलों द्वारा कठिनाइयों का सामना किया जा रहा है उनकी सच्चाई जानने के लिये एक टीम गठित की गई थी।

वह एक मानवाधिकार अधिवक्ता होने के नाते छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में आदिवासियों की मुठभेड़ों में बंदी प्रत्यक्षीकरण के प्रकरणों में भी पेश हुई थी और इसके अलावा मानवाधिकार रक्षकों की पैरवी करती रही है | राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एचआरसी)के समक्ष भी पेश हुई है | अभी हाल ही में एचआरसी ने छत्तीसगढ़ के सुकमा के कोडासवाली गांव में एक जांच में उनका सहयोग मांगा था इस प्रकरण में उसी व्यवसायिक ईमानदारी और साहस के साथ पेश आई जो एक मानवाधिकार अधिवक्ता के रूप में उनकी उपलब्धि है। ऐसा लगा कि यही उनकी अपराध हैं।

(उत्तम कुमार से [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है।)

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