गुजरात से यूपी-बिहार के प्रवासी मजदूरों को सरकारी वादे के बाद नहीं मिली ट्रेन तो फूटा गुस्सा, रोड जाम कर की तोड़फोड़
मजदूर कहते हैं, हम एक बार किसी तरह अपने घर पहुंच जायें, फिर कभी यहां लौटकर वापस नहीं आयेंगे, हम भूखों मर रहे हैं, हमारे पास कोई काम नहीं है, मगर सिवाय आश्वासनों के हमें कोई कुछ नहीं देता...
कच्छ से दत्तेश भावसार की रिपोर्ट
जनज्वार। पूरे देश में लॉकडाउन के चलते प्रवासी मजदूरों की हालत बहुत ही दयनीय हो चुकी है। कई राज्यों से हजारों मजदूर पैदल ही पलायन करने को मजबूर हो चुके हैं और कई राज्यों और केंद्र सरकार की तरफ से ट्रेनों की व्यवस्था करने के बावजूद मजदूर पैदल या फिर जुगाड़ से घर लौटने को मजबूर हैं। जगह—जगह से प्रवासी मजदूरों की दुर्घटनाओं में मौतों की दर्जनों घटनायें सामने आ चुकी हैं।
मजदूरों का अब शासन-प्रशासन के खिलाफ गुस्सा भी फूटने लगा है। ऐसा ही कुछ गुजरात के कच्छ जनपद में 12 मई को देखने को मिला। गांधीधाम शहर में उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रवासी मजदूरों के लिए ट्रेन की व्यवस्था न होने से और एक ट्रेन रद्द होने से हजारों प्रवासी मजदूर प्रशासन के खिलाफ सड़कों पर उतर आए और कई वाहनों को नुकसान पहुंचाया।
गुस्साये प्रवासी मजदूरों ने राष्ट्रीय राजमार्ग 8 ए को जाम कर दिया, जो कि कांडला पोर्ट से उत्तर भारत की तरफ जाता है। मजदूरों ने उस रास्ते को जाम करके बहुत से ट्रकों और अन्य वाहनों को नुकसान पहुंचाया।
गौरतलब है कि कच्छ जनपद में दो बड़े बंदरगाह हैं। एक दीनदयाल पोर्ट और दूसरा अडानी मुंद्रा पोर्ट, इसके अलावा कच्छ जनपद में 350 सौ के करीब कंपनियां भी कार्यरत हैं, जिनमें हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूर काम करते हैं। लॉकडाउन के चलते हजारों प्रवासी मजदूर बेरोजगार हो चुके हैं।
पिछले 50 दिनों से उनके पास कोई काम नहीं है, जिसके चलते भरपेट भोजन मिलना भी मुहाल हो गये हैं। लॉकडाउन में फंसे ये मजदूरा अब किसी भी हाल में अपने घर लौट जाना चाहते हैं। सरकारी दावों के मुताबिक कई ट्रेनों की व्यवस्थाएं की गई है, मगर जगह—जगह उनसे ज्यादा किराया वसूलने समेत ट्रेन में सीट न मिलने के मामले सामने आ रहे हैं।
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शासन—प्रशासन का कहना है कि मजदूर पैदल इसलिए निकल पड़े हैं क्योंकि उनकी संख्या बहुत ज्यादा है। पर्याप्त संख्या में ट्रेन न होना और जिन राज्यों में जाना है उन सरकारों की तरफ से अनुमति न मिलने से देरी का बहाना बना वह अपना बचाव कर रहा है, मगर अब यह सब सुनना मजदूरों के लिए असहनीय हो चुका है। उनके सब्र का बांध टूट रहा है। कच्छ में शा—प्रशासन के खिलाफ हजारों मजदूर रास्ते पर आ गए। हालांकि गुस्साये प्रवासी मजदूरों द्वारा पुलिस के ऊपर भी पथराव करने की खबरें सामने आयीं और कुछ वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं, जिनमें मजदूर पथराव करते दिख रहे हैं।
इस घटना के बाद कच्छ जनपद से इलाहाबाद जाने के लिए कई लोग साइकिल से निकल पड़े थे, परंतु उन लोगों को स्थानीय पत्रकारों और सांसद विनोद भाई चावड़ा द्वारा समझाया गया और प्रशासनिक अधिकारियों से बात करवाकर उनके जाने की व्यवस्था की गई है। वह आने वाले 2 दिनों में जो नई ट्रेन चलेंगी, उनमें अपने घर वापस जाएंगे, परंतु हजारों ऐसे मजदूर हैं जिनके आवेदन प्रशासन को मिल गए हैं, परंतु उनके जाने की कोई व्यवस्था नहीं हो रही। फलस्वरूप प्रवासी मजदूरों का सब्र जवाब दे रहा है और सरकार की विफलताओं के कारण वह रास्ते पर उतरने को मजबूर हो रहे हैं।
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किसी भी हाल में अपने घर लौटने की बात करने वाले प्रवासी मजदूर भूरालाल कहते हैं, 'कई रोज पहले अपने घर उत्तर प्रदेश जाने के लिए आवेदन दिया हुआ है, परंतु कई बार अधिकारियों से बात करने पर मुझे सिर्फ आश्वासन ही मिला है। अब मेरे सब्र का बांध भी टूटने लगा है। मैं किसी भी हाल में यहां नहीं मरना चाहता, मुझे घर पहुंचना है फिर पैदल ही क्यों न जाना पड़े।'
गौरतलब है कि सरकारी बाबुओं की तरफ से उखड़े जवाब मिलने से भी कई मजदूर बहुत नाराज हैं। वे कहते हैं हम एक बार अपने घर पहुंच जायें, फिर कभी यहां लौटकर वापस नहीं आयेंगे। हम भूखों मर रहे हैं, हमारे पास कोई काम नहीं है, मगर सिवाय आश्वासनों के हमें कोई कुछ नहीं देता। अब तो हम सिर्फ इतना कह रहे हैं कि हमें हमारे घर पहुंचा दो बस, नहीं चाहिए हमें कोई राहत।'
गांधीधाम शहर में कई राज्यों के प्रवासी मजदूर रहते हैं, जिसमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा के लाखों लोग शामिल हैं। सरकार की तरफ से इन सब राज्यों में जाने के लिए ट्रेनों की व्यवस्था की जा रही है, परंतु जितने आवेदन आ रहे हैं, उसकी तुलना में ट्रेनों की व्यवस्था ऊंट के मुंह में जीरे के समान है, इसलिए प्रवासी मजदूरों को सड़क पर उतरना पड़ा है।
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इससे पहले भी गुजरात में कई जगह प्रवासी मजदूर घर लौटने को लेकर उग्र हो सड़कों पर उतर चुके हैं। पहले सूरत में हंगामा हुआ, फिर राजकोट में हंगामा हुआ और अब कच्छ में।
राज्य सरकारों की तरफ से उचित जवाब और कार्रवाई न किये जाने से न सिर्फ मजदूर हताश—निराश हैं, बल्कि अब उनका सब्र जवाब दे चुका है। प्रवासी मजदूरों का प्रशासन के ऊपर से विश्वास उठ गया है, मगर चूंकि लॉकडाउन के चलते वे खुद अपने घर तक जाने की हालत में नहीं है, इसलिए मजबूर हैं।
ज्यादातर प्रवासी मजदूर ऐसे भी हैं जिनको वेतन नहीं मिला है। वह मजबूरी में अपने घर से पैसे मंगवा कर टिकट का इंतजाम कर रहे हैं। यहां पर सरकार के उन दावों की भी पोल खुलने लगी है, जब कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार की तरफ से 85 प्रतिशत और राज्य सरकार की तरफ से 15 प्रतिशत किराया चुकाया जा रहा है।
हर लौटने वाले मजदूरों के पास से 500 से 800 रुपए वसूले जा रहे हैं। उनसे घूस अलग से वसूली जा रही है। अलग-अलग स्टेशनों के अलग-अलग किराये की वसूली की जा रही है। कई जगह बिचौलिये भी इन मजदूरों का शोषण कर रहे हैं और ₹712 के टिकट के 2000 रुपए लेने के भी कई मामले सामने आए हैं।
प्रवासी मजदूरों की हालत कैसी है, यह सोशल मीडिया के माध्यम से भी जगजाहिर हो रहा है। कोरोना की बीमारी से वो मरें न मरें मगर लॉकडाउन ने जरूर उनकी जान लेनी शुरू कर दी है।