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समाज

बीमार थी, बिंदास थी पर समाज ने बदचलन बना दिया

Janjwar Team
7 Sep 2017 5:19 PM GMT
बीमार थी, बिंदास थी पर समाज ने बदचलन बना दिया
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जीतनबाई बीमार थी पर किसी को वह बीमार नहीं लगी, उसे सबने बदचलन ही माना। जीतनबाई की यह छोटी सी कहानी आपको बताएगी औरतों के रहने लायक समाज बनाने में हम बहुत पीछे हैं...

अनामिका साहा

पिछले लंबे समय से मुझे माहवारी समय पर नहींं आ रही थी। परेशान थी कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। कई बार तो महीने में आने वाले इस चक्र का फासला बढ़कर दो—ढाई महीने तक पहुंच जा रहा था। जब कई महीनों तक यह चक्र नियमित नहीं हुआ तो थक—हारकर डॉक्टर के पास गई। डॉक्टर ने कई टेस्ट किए, उनमें से एक टेस्ट थायरायड का भी था।

मासिक चक्र गड़बड़ाने का कारण मेरा थायरायड बढ़ जाना ही निकला। कुछ समय तक नियमित तौर पर दवा खाने और अन्य सावधानियां बरतने पर मुझे इस समस्या से निजात मिल गई। मगर मेरे थायरायड ने तकरीबन 15—20 साल पहले मेरे बचपन की एक घटना मुझे याद दिला दी।

उसका असली नाम क्या था यह मैं भी नहीं जानती थी। चूंकि वह बहुत सुंदर थी और उसकी बड़ी—बड़ी आंखें अनायास ही अपनी तरफ आकर्षित करती थीं तो सब उसे जीतनबाई के नाम से पुकारते थे। यह नामकरण किसने किया, यह भी मुझे नहीं पता। मगर एक बात मुझे अच्छी तरह याद है कि जीतनबाई जवान लड़के—लड़कियों के बीच खासा चर्चा का विषय रहती थी, खासकर लड़कों के बीच उसकी सुंदरता के कसीदे पढ़े जाते।

जीतनबाई मेरे गांव की एक बहू थी। एक बिंदास जिंदगी जीने वाली युवती। मुझे याद है उसका लड़कों को देखकर दूर से सीटी बजाना, उन्हें देखकर गाना गाना, उन पर कमेंट पास करना। खूब मजाकिया थी वो, नहीं याद कि कोई भी बुजुर्ग—जवान ऐसा होगा जिससे वो बात न करती हो। पीठ पीछे चाहे कोई कुछ कहे, मगर हर बुजुर्ग—जवान उससे बात करके खुश जरूर होता, उसकी बातें होती ही इतनी जिंदादिली से भरी थीं।

मगर यह उसका दुर्भाग्य ही था कि इतनी खूबसूरत पत्नी की तरफ उसके पति का कोई झुकाव नहीं था, ऐसा लोग कहते थे और कुछ हद तक वो इस बात को अपनी सहेलियों के सामने स्वीकारती भी थी। उसका पति सालोंसाल तक घर नहीं आता था, लोग कहते कि उनके बीच कोई शारीरिक रिश्ता नहीं है। बातें बनाते कि जीतनबाई के कई लोगों जो उसके रिश्ते में देवर लगते थे, उनसे नाजायज रिश्ता है, इसीलिए उसकी माहवारी नियमित तौर पर नहीं आती।

उसकी सास भी झगड़े में उससे यह बात कहती कि तुझे माहवारी कभी टाइम से क्यों नहीं आती। ये फासला दो—तीन महीनों तक क्यों खिंच जाता है। मेरा बेटा तो घर नहीं आया है, तो तुझे माहवारी क्यों नहीं आती। क्या तु नाजायज रिश्ते बनाकर गर्भ गिरा देती है। लोगों में भी यह कानाफूसी आम बात थी।

इतना सबकुछ झेलने के बाद भी उसका जीने का बिंदास अंदाज खास ही था। शायद यह बिंदास अंदाज जीतनबाई का मुखौटा था और एक दिन इस दुनिया की जिल्लतों को झेलते—झेलते उसने मौत को गले लगा लिया। मरते वक्त भी वो सज—धजकर फांसी के फंदे पर झूली थी। आज भी नहीं भूल पाती मैं उसका वो चेहरा, क्योंकि मां के साथ मैं भी पीछे—पीछे चली गई थी उसे देखने जहां उसने मौत को गले लगाया था।

आज जब मैं थायरायड से जूझ रही हूं तो जीतनबाई इसलिए याद आई कि जो लांछन वो झेलती थी कहीं उसके पीछे भी थायरायड तो जिम्मेदार नहीं था, जिसके कारण उसका मासिक चक्र अनियमित हो गया था। कभी किसी ने दिखाया नहीं, कोई डॉक्टरी सलाह नहीं ली गयी, जबकि मैंने खुद भी देखा था कि वह कई बार सुस्त और बीमार हो जाती थी।

ऐसे में वह किस—किस का मुंह बंद करती और कितनी बार करती कि मैं बदचलन नहीं हूं। काश कि एक जांच मीराबाई की भी हो गई होती थायरायड की। क्या उसका बिंदास होना उसे बदचलन साबित करता था।

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