श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में 18 दिनों के भीतर हुईं 80 प्रवासी मजदूरों की मौत
प्रवासी मजदूरों की समस्याएं अब भी खत्म नहीं हुई हैं। वहीं श्रमिक ट्रेनों में अबतक 80 लोगों की मौत हो चुकी है। ये मौतें 9 मई से 27 मई के बीच हुईं हैं...
जनज्वार ब्यूरो। कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए जब दूसरे चरण का लॉकडाउन समाप्त हुआ था तब भी प्रवासी मजदूर देश के अलग-अलग हिस्सों में बड़ी संख्या में फंसे रहे। इस मुद्दे को लेकर जब सरकार की मंशा पर सवाल उठने लगे और दबाव बनने लगा तो रेल मंत्रालय ने प्रवासी मजदूरों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाने का फैसला किया। लेकिन इन ट्रेनों को चलाए जाने के बाद भी प्रवासी मजदूरों की समस्याएं खत्म नहीं हुई हैं। श्रमिक ट्रेनों में अबतक 80 लोगों की मौत हो चुकी है। ये मौतें 9 मई से 27 मई के बीच हुईं।
रेलवे अधिकारियों ने इस संबंध में एक डेटा शेयर करते हुए कहा, 'अब तक श्रमिक स्पेशल ट्रेन में 80 प्रवासी मजदूरों की मौत हुई है। जिसमें एक व्यक्ति की मौत कोरोना वायरस की वजह से हुई है। वहीं 11 अन्य लोगों की मौत पहले से ग्रसित किसी अन्य बीमारी से हुई है।'
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, 23 मई को 10 मौत, 24 मई को 9 मौत, 25 मई को 9 मौत, 26 मई को 13 मौत, 27 मई को 8 मौत इनमें से 11 मौतों को लेकर कारण बताए गए हैं जिनमें पुरानी बीमारी या फिर अचानक बीमार पड़ने का हवाला दिया गया है। इसमें एक उस शख्स की भी मौत हुई है जिसको कोरोना वायरस से संक्रमित बताया गया है।
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इससे पहले शुक्रवार को रेलवे ने श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में हो रही देरी को लेकर खुद का बचाव करते हुए कहा कि वे नियमित ट्रेनें नहीं थी व प्रवासी श्रमिकों के लाभ के लिए उनका मार्ग बढ़ाया जा सकता है, घटाया जा सकता है और उनके ठहराव तथा मार्ग बदले जा सकते हैं।
रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष वीके यादव ने कहा कि कभी कोई ट्रेन 'गुम' नहीं हो सकती तथा एक मई से जब से श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलने लगी हैं, तब से अब तक कुल 3,840 ऐसी ट्रेनों में केवल चार ट्रेनों ने ही अपने गंतव्य पर पहुंचने में 72 घंटे से अधिक समय लिया।
रेलवे की ओर से यह सफाई तब आयी है जब ट्रेनों की देरी को लेकर यहां तक कह दिया गया कि प्रवासी ट्रेनें अपने गंतव्य पर पहुंचने से पहले ही 'गायब' हो रही हैं। रेलवे के आंकड़े के हिसाब से 36.5 प्रतिशत ट्रेनों का गंतव्य बिहार में था जबकि 42.2 फीसद ट्रेनें उत्तर प्रदेश गयीं, फलस्वरूप इन मार्गों पर असमान दबाव पड़ा।
उन्होंने कहा, 'कोरोना वायरस के चलते कई अनुबंधकर्ता भोजन वितरण के लिए ट्रेनों में सवार नहीं होना चाहते थे। हम शुरू में उन्हें प्रवासियों की खातिर पैकेट देते थे। लेकिन अब हमारे कर्मचारी ट्रेनों में चढ़ने और भोजन का वितरण करने के लिए मास्क और दस्तानों का इस्तेमाल कर रहे हैं।'
यादव ने दृढता के साथ कहा, 'इसलिए 3840 ट्रेनों में से महज एक या दो फीसद ट्रेनों में ये घटनाएं हुई । 98-99 फीसद मामलों में चीजें सुचारू रहीं।' उन्होंने यह भी कहा कि रेलवे उन लोगों की सूची तैयार कर रहा है जिन्होंने श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में जान गंवाई। उन्होंने साथ ही पहले से स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे लोगों, गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों से अनावश्यक यात्रा से बचने की अपील की।
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उन्होंने कहा, 'रेलवे की नियंत्रण प्रणाली है, यदि कोई बीमार पाया जाता है तो ट्रेन तत्काल रोकी जाती है, डॉक्टर उसकी जान बचाने की कोशिश करते हैं। कई यात्रियों को रेलवे के डॉक्टरों ने देखा, 31 सफल प्रसव कराये गये। कई मामलों में मरीजों को निकटतम अस्पताल में भेजा गया। मैं समझता हूं कि वे मुश्किल घड़ी में सफर कर रहे हैं।'
यादव ने कहा, 'हर मौत की जांच की जाती है। हम मौतों और उनके कारणों पर राज्य सरकारों के सहयोग से डाटा तैयार कर रहे हैं। जब हमारे पास आंकड़े हो जायेंगे, तब हम उसे जारी करेंगे। मैं बिना किसी आंकड़े के टिप्पणी नहीं करना चाहता।' उनसे इन ट्रेनों में हुई मौतों पर सवाल पूछा गया था।
उन्होंने यह भी कहा कि इन प्रवासी ट्रेनों में 90 फीसद ट्रेनें नियमित मेल एक्सप्रेस ट्रेनों से अधिक औसत रफ्तार से चलीं। यादव ने कहा, 'ये फर्जी खबर है कि एक ट्रेन सूरत से नौ दिनों में सिवान पहुंची। हमने बस 1.8 फीसद ट्रेनों का मार्ग बदला। 20-24 मई के दौरान , उत्तर प्रदेश और बिहार से अधिक मांग होने के कारण 71 ट्रेनों के मार्ग बदले गये, क्योंकि देश भर से 90 फीसद ट्रेनें उत्तर प्रदेश और बिहार ही जा रही थीं।'
उन्होंने कहा कि एक मामले में एक ट्रेन लखनऊ भेजी गयी जिसे इलाहाबाद जाना था और उस ट्रेन के लिए कहा गया कि ट्रेन 'गुम' हो गयी। उन्होंने कहा कि जब यह महसूस किया गया कि ट्रेन में इलाहाबाद के कम और लखनऊ के जयादा लोग हैं तब उसका मार्ग बदला गया।
उन्होंने कहा, 'हमने राज्य सरकार से बातचीत की और कानपुर में इस ट्रेन को लखनऊ भेजने का निर्णय लिया। ये कोई सामान्य ट्रेनें नहीं थीं। रेलवे ने उनमें पूरा लचीलापन बनाये रखा। राज्य सरकारों को ट्रेनों का मार्ग बीच में पूरा कर देने, बढ़ाने, ठहराव स्थल बदलने, मार्ग बदलने की छूट दी गयी थी। प्रवासी मजदूरों को घर तक पहुंचाने में मदद के लिए जो भी करना पड़ेगा , हम करेंगे।'