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आंदोलन

षड्यंत्र, बर्बरता और वहशीपने का केंद्र बनी जयपुर जेल!

Prema Negi
25 April 2019 10:47 AM IST
षड्यंत्र, बर्बरता और वहशीपने का केंद्र बनी जयपुर जेल!
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रिहाई मंच व अवमेला के संयुक्त प्रनिधिमंडल की फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट से उठे सवाल की हाई सिक्योरिटी में कैदियों ने कैसे किया जेलर पर एक साथ हमला...

जनज्वार। रिहाई मंच और अवमेला के तीन सदस्यीय संयुक्त प्रतिनिधिमंडल ने जयपुर केंद्रीय कारागार, जयपुर में जयपुर ब्लास्ट समेत आतंकवाद के नाम पर कैद विचाराधीन कैदियों की 30 मार्च 2019 को जेल के अंदर बर्बर पिटाई की घटना के तथ्यों को जानने के लिए तीन दिवसीय (6, 7, 8 अप्रैल) दौरा किया। प्रतिधिमंडल जयपुर स्थित मानवाधिकार/सामाजिक संगठनों, जेल अधीक्षक सेंट्रल कारागार जयपुर और पीड़ित विचाराधीन कैदियों से मुलाकात की। प्रतिनिधिमंडल में मसीहुद्दीन संजरी, मो. आसिम और शादाब अहमद शामिल थे।

फैक्ट फाइंडिंग टीम के मुताबिक, जांच में पता चला कि 30 मार्च 2019 को होने वाली निर्मम पिटाई की इस घटना के बाद जेल प्रशासन की तरफ से मीडिया को बताया गया कि 'केंद्रीय कारागार में जयपुर ब्लास्ट समेत आतंकवाद के नाम पर कैद बंदियों ने जेलर पर उस समय हमला कर दिया जब वह वीडियो कैमरे के साथ हाई सिक्युरिटी वार्ड संख्या 10 में तलाशी लेने के लिए गए थे। इस हमले में उनकी उंगली टूट गई। उन पर काबू पाने के लिए हल्का लाठीचार्ज किया गया। इस बीच जेल अधिकारियों को डराने के लिए एक कैदी ने दीवार से सिर टकारकर खुद को घायल कर लिया और दूसरे ने किसी नुकीली वस्तु से अपने हाथ चीर लिए।' इस घटना को लेकर जेल प्रशासन ने विचाराधीन कैदियों पर मुकदमा भी कायम करवाया है, लेकिन तथ्य इन आरोपों को पुष्ट करते प्रतीत नहीं होते।

पीड़ित कैदियों, जेल अधीक्षक और मानवाधिकार/सामाजिक संगठनों से बातचीत व अभिलेखीय तथ्यों से यह जाहिर होता है कि विचाराधीन कैदियों ने जेल में उत्पीड़न के खिलाफ और जेल में शिकायत बॉक्स लगाने व किसी जज का दौरा करवाने जैसी जेल मैनुअल सम्मत मांगों को लेकर भूख हड़ताल की थी और विशेष न्यायाधीश जयपुर ब्लास्ट की अदालत में अर्जी भी दी थी, जिसके अभिलेखीय प्रमाण मौजूद हैं। बातचीत के नतीजे में जो तथ्य सामने आए है वह इस प्रकार हैं-

20 फरवरी को जयपुर केंद्रीय कारागार में कथित माफिया राजू ठेठ और उसके गुर्गों द्वारा सज़ायाफता पाकिस्तानी कैदी शुकरुल्लाह की हत्या के बाद हाई सेक्युरिटी वार्ड नंबर 10 के इन विचाराधीन कैदियों को राजस्थान की भीषण गर्मी में पूर्ण रूप से उनकी सेलों में बंद रखा जाने लगा था। इन विचाराधीन कैदियों ने जेल प्रशासन से यह कहते हुए आपत्ति की थी कि उनका इस हत्या से कोई लेना-देना नहीं था, फिर उन्हें क्यों प्रताड़ित किया जा रहा था।

उक्त हत्या के लिए जेल प्रशासन ने राजू ठेठ और उसके गुर्गों के खिलाफ कार्यवाही भी की थी। अपनी प्रताड़ना को लेकर विचाराधीन कैदियों ने फरवरी के अंत में ही भूख हड़ताल की, लेकिन जेल प्रशासन द्वारा पुरानी स्थिति बहाल करने के आश्वासन पर भूख हड़ताल खत्म कर दी थी। इससे पहले तक इन विचाराधीन कैदियों को छह घंटा सुबह और छह घंटा शाम को उनकी सेलों से बाहर निकाला जाता था।

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करीब 40 दिन बीत जाने के बाद भी जब स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया तो विचाराधीन कैदियों ने पुरानी स्थिति बहाल करने, जेल में शिकायत पेटिका लगाने और किसी जज द्वारा जेल का दौरा किए जाने की मांग करते हुए 29 मार्च को दोबारा भूख हड़ताल शुरू कर दी। चूंकि जयपुर में जयपुर ब्लास्ट की प्रतिदिन सुनवाई चल रही है इसलिए 29 मार्च को विचाराधीन कैदियों, शहबाज़ हुसैन, मो. सैफ, मो. सलमान, मो. सरवर और सैफुर्रहमान ने उनके मुकदमे की सुनाई कर रहे विशेष जज को भी अपनी मांगों के सम्बंध में प्रार्थना पत्र दिया।

जब उक्त विचाराधीन कैदी अदालत में पेशी के बाद जेल वापस गए तो चीफ कारापाल अधिकारी कमलेश शर्मा ने उनके हाथ से प्रार्थना पत्र की कार्बन कॉपी छीनकर भद्दी गालियां दीं और कहा कि जेल में उनका अपना कानून चलता है। तत्पश्चात उन्होंने हाई सेक्युरिटी वार्ड न. 10 में जाकर कैदियों को जान से मारने की धमकी दी और कहा अगर दोबारा न्यायालय जाकर जेल अधिकारियों के खिलाफ शिकायत करने का दुस्साहस किया तो न्यायालय जाने के काबिल नहीं रहोगे। शाम के समय रात्रि संतरी राकेश चंद्र मीणा ने एक-एक सेल के पास जाकर विचाराधीन कैदियों को जान से मारने की धमकी देते हुए कहा कि जेल में अगर वे दो-तीन लाशें भी गिरा दें तो उन्हें केवल दो तीन कागज़ ही काले करने पड़ते हैं।

30 मार्च को पुनः ब्लास्ट के उक्त विचाराधीन कैदी शहबाज़, मो. सैफ, मो. सरवर और सैफुर्रहमान पेशी पर न्यायालय गए तो उन्होंने ताज़ा घटनाक्रम से अवगत कराते हुए विषेष न्यायधीश महोदय को फिर से प्रार्थनापत्र दिया और न्यायधीश महोदय ने उसका संज्ञान लेते हुए जेल अधीक्षक को नोटिस भी जारी किया। उस दिन भूख हड़ताल की वजह से चक्कर खाकर गिर जाने के कारण मो. सलमान पेशी पर नहीं गया था।

दिन में करीब साढ़े बारह बजे कारापाल विल्सन शर्मा, जेलर महेंद्र प्रताप विष्नोई, मुख्य कारापाल कैलाश शर्मा, जेलर राजमहेंद्र सिंह, कर्मचारी सुनीत शर्मा, अवधेश शर्मा और भगवान, गार्ड रमेश चंद्र मीणा और बंदी गुन्ना सरदार के साथ अन्य जेलकर्मियों, होमगार्ड व कुछ कैदियों ने जिनकी संख्या करीब 50 थी, हाई सेक्युरिटी के वार्ड नंबर 10 की एक एक सेल खुलवाकर और एक-एक विचाराधीन कैदी को बाहर निकाल पर निर्ममता से लाठी, सरिया और पाइप से पीटना शुरू कर दिया।

बीमार होने के कारण मो. सलमान उस दिन पेशी पर नहीं गया था, लेकिन जेल अमले ने उसे भी नहीं बखशा। उसी वार्ड में कैद कुछ सज़ायाफता बुज़ुर्ग कैदियों ने चीख-पुकार सुनकर बाहर झांक कर देखा और जेल अमले से ऐसा न करने के लिए कहा तो उनके साथ भी दुर्व्यवहार किया गया। मारपीट के दौरान धार्मिक ग्रंथों के अपमान का मामला भी सामने आया है। कथित रूप से जेलर महेंद्र प्रताप सिंह विश्नोई ने अपने आपको मिशन का आदमी बताते हुए साम्प्रदायिक गालियां भी दीं।

जब शहबाज़, मो. सैफ, मो. सरवर और सैफुर्रहमान 30 मार्च को अदालत में पेशी से वापस आए तो उन्होंने हाई सेक्युरिटी के वार्ड नंबर 10 की तरफ से चीख-पुकार की आवाज़ें सुनीं। कारापाल कमलेश शर्मा से उन लोगों ने उस बाबत पूछा तो उन्होंने कहा कि जाकर खुद ही देख लो। जब वह लोग तेज़ी के साथ आगे बढ़े तो हाई सिक्युरिटी वार्ड में पहुंचने से पहली ही उक्त लोगों ने उन पर भी हमला करके बुरी तरह घायल कर दिया।

मानवाधिकार/सामाजिक संगठनों का जेल दौरा

2 अप्रैल को मानवाधिकार/सामाजिक संगठनों जयपुर इकाई के पीयूसीएल, एपीसीआर और समन्वय सेवा के सदस्यों और कुछ गणमान्य व्यक्तियों के एक प्रतिनिधि मंडल ने डीजी जेल एनआरके रेड्डी से मुलाकात की। उन्होंने प्रतिनिधिमंडल से जेल अधीक्षक से मुलाकात करने का सुझाव दिया। इसके बाद प्रतिनिधिमंडल ने जेल का दौरा किया और जेल अधिकारियों की मौजूदगी में घायल बंदियों से मुलाकात की।

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प्रतिनिधिमंडल के एक सदस्य एडवोकेट पेकर फारूक ने बताया कि लड़के बुरी तरह घायल थे और उस समय तक उनके जख्मों से खून रिस रहा था। सीकर के एक लड़के का हाथ में दो जगहों टूट गया था। दो-तीन अन्य लड़कों के हाथ-पैर में फ्रैक्चर की आशंका होने के बावजूद उनकी कोई मेडिकल जांच नहीं करवाई गई थी। लड़के उत्पीड़न से इस हद पीड़ित थे कि उन्होंने अपनी भूख हड़ताल उस हालत में भी जारी रखी थी।

प्रतिनिधिमंडल में शामिल अनिल गोस्वामी उनकी हालत देखकर अपने आंसू नहीं रोक पाए। जेल प्रशासन ने घटना की वीडियो और सीसीटीवी फुटेज होने और प्रतिनिधिमंडल को उसे दिखाने का दावा किया था, लेकिन प्रतिनिधिमंडल के आग्रह के बावजूद उसे दिखाने की बात पर चुप्पी साध ली। हिंसा पीड़ित विचाराधीन कैदियों ने जेल अधिकारियों के सामने मारपीट की घटना का जो विवरण दिया उससे उक्त घटनाक्रम की पुष्टि होती है।

प्रतिनिधिमंडल के आग्रह पर लड़कों ने भूख हड़ताल खत्म की। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए एडवोकेट पेकर फारूक ने अदालत में पीड़ित बंदियों की तरफ से एफआईआर दर्ज कराने और मेडिकल जांच कराए जाने की अर्जी दाखिल की। इसके बाद जेल प्रशासन उनकी मेडिकल जांच कराने को मजबूर हुआ।

मुलाकातों पर अघोषित पाबंदी

पिटाई से बुरी तरह घायल बंदियों से अभिभावकों की जेल में मुलाकात पर अघोषित पाबंदी लगा दी गई। मो. सरवर के चाचा मो. आसिम 31 मार्च को अपने भतीजे से मुलाकात करने जयपुर गए हुए थे। उन्हें जेल के घटनाक्रम की जानकारी नहीं थी। वह मुलाकात की पर्ची भर कर पूरे दिन इंतेज़ार करते रहे। अंत में गेट पर मौजूद जेल कर्मी ने उनको स्पष्ट कह दिया कि मुलाकात नहीं कराई जाएगी। बाद में उन्हें पता चला कि अन्य कैदियों के अभिभावकों के साथ भी जेल प्रशासन ने ऐसा ही सलूक किया था।

संयुक्त प्रतिनिधिमंडल की जेल अधीक्षक से मुलाकात

प्रतिनिधिमंडल ने जयपुर के कुछ मानवाधिकार/सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ जेल अधीक्षक सेंट्रल कारागार जयपुर से उनके कार्यालय में मुलाकात की। जेल अधीक्षक के कमरे में प्रवेष करते हुए सामने दीवार से लगे बोर्ड पर '17.3.2019 को गीता कार्यक्रम’ लिखा हुआ था। अधीक्षक महोदय ने पूरी बातचीत में यह जताने का प्रयास किया कि जेल प्रशासन में कई तरह के लोग हैं। हर सभी पर उनका नियंत्रण नहीं होता है। कई बार बंदियों के व्यवहार में अहंकार से माहौल में उत्तेजना पैदा होती है। यह कैदियों की ज़िम्मेदारी है कि वे सबकी भावनाओं का ध्यान रखें। वह लगातार इन विचाराधीन कैदियों की मांगों और जेल प्रशासन द्वारा उनकी निर्मम पिटाई पर सीधे बात करने से कतराते रहे।

जेल प्रशासन पर उठते सवाल

जेल प्रशासन ने हिंसा का शिकार विचाराधीन कैदियों के खिलाफ जेलर पर हमला करने का आरोप लगाते हुए मुकदमा कायम करवाया है जिसमें कहा गया है कि उनकी उंगली में फ्रैक्चर है। हालांकि जेल प्रशासन ने यह स्वीकार किया है कि कथित रूप से उग्र हो चुके बंदियों को काबू करने के लिए हल्का बल प्रयोग किया गया। जेल प्रशासन ने यह भी कहा कि एक कैदी ने अपना सर दीवार से टकरा लिया था और एक अन्य कैदी ने किसी नुकीली वस्तु से अपने हाथ में चीरा लगा लिया था। लेकिन इसके बावजूद नियमानुसार घायलों की मेडिकल जांच नहीं करवाई गई।

हिंसा पीड़ित विचाराधीन कैदियों द्वारा बताए गए घटना स्थल दो हैं और जेल प्रशासन द्वारा बताया घटना स्थल एक है। पीड़ित 12 विचाराधीन कैदियों में से चार अदालत में पेशी पर गए हुए थे बाकी हाई सिक्युरिटी में अपनी सेलों में कैद थे। हमले का आरोप कुल सात बंदियों पर लगाया गया है। हालांकि उस दिन उनमें से चार पेशी पर गए हुए थे बाकी अपनी सेलों में कैद थे। फिर उन्होंने एक साथ जेलर पर कैसे हमला किया?

दावा करने के बावजूद जेल प्रशासन ने कोई वीडियो या सीसीटीवी फुटेज क्यों नहीं दिखाया? बुरी तरह घायल युवकों के इलाज के लिए प्रशासन ने कोई कदम क्यों नहीं उठाया? जाहिर है कि भूख हड़ताल के जारी रहते इलाज की पुरी प्रक्रिया संभव नहीं थी। ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि जेल प्रशासन ने उनकी भूख हड़ताल खत्म करवाने या उन्हें अस्पताल में दाखिल करने की प्रक्रिया क्यों नहीं अपनाई? उन्हें उसी अवस्था में छोड दे़ने पीछे जेल प्रशासन की क्या मंशा थी?

गौरतलब है कि जयपुर ब्लास्ट केस की सुनवाई अपने अंतिम चरणों में है। बहुत जल्द मुकदमे का निर्णय संभावित है। एक गवाह की गवाही बची है। चुनाव चल रहे हैं और गवाह भाजपा का नेता है, इसलिए वह गवाही के लिए उपस्थित नहीं हो रहा है।

इन जांच के बाद प्रतिनिधिमंडल इस नतीजे पर पहुंचा कि जेल के अंदर मार पिटाई की यह घटना बिना किसी उकसावे के, एकतरफा और जेल प्रशासन द्वारा उच्चतम स्तर पर पूर्वनियोजित कार्यवाही थी। इसमें कुछ जेल अधिकारियों की पहलकदमी पर अन्य जेलकर्मियों व कुछ अन्य बंदियों की सक्रिय भागीदारी थी। मार पिटाई की इस घटना के बाद घायल बंदियों के इलाज में घोर लापरवाही बरती गई थी जो उनके लिए प्राणघातक भी साबित हो सकती थी।

चूंकि विचाराधीन बंदियों की तरफ से मारपीट की उक्त घटना में अदालत को तहरीर दी गई है, इसलिए जेल अधिकारियों के पिछले व्यवहार को देखते हुए आशंका होती है कि भविष्य में फिर कोई अप्रिय घटना को अंजाम दिया जा सकता है।

प्रतिनिधिमंडल ने राजस्थान सरकार से मांग की है कि जेल में होने वाली उक्त हिंसक घटना की निष्पक्ष जांच करवाकर दोषियों के खिलाफ विधिसम्मत कार्यवाही करे। राज्य सरकार यह भी सुनिश्चित करे कि जेल में भविष्य में इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति न हो।

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