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राजनीति

मध्य प्रदेश के 15 मुस्लिम युवाओं पर दर्ज देशद्रोह का मुकदमा वापस

Janjwar Team
22 Jun 2017 4:45 PM GMT
मध्य प्रदेश के 15 मुस्लिम युवाओं पर दर्ज देशद्रोह का मुकदमा वापस
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18 जून को लंदन में आईसीसी चैंपियंस ट्राॅफी में भारत की हार के बाद मोहद के निवासियों ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि कुछ लोगों ने भारत की हार का जश्न मनाया है...

विष्णु शर्मा की रिपोर्ट

मध्य प्रदेश के मोहद में पुलिस ने तीन दिन पहले पाकिस्तान समर्थक नारे लगाने के आरोप में जिन 15 मुस्लिम युवाओं को गिरफ्तार किया था उन पर से राजद्रोह का मामला वापस ले लिय है। बुरहानपुर जिले के एसपी आरआर परिहार ने मीडिया को बताया कि गिरफ्तार किए गए युवाओं पर राजद्रोह का आरोप साबित करना मुश्किल है।

आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी में भारत की हार पर मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले में आतिशबाजी कर पाकिस्तान के समर्थन और भारत के खिलाफ नारे लगाने के आरोप में 15 युवकों को गिरफ्तार किया गया था. सभी के खिलाफ देशद्रोह का प्रकरण भी दर्ज किया गया था.

गौरतलब है कि एक आरोपी के पिता ने राष्ट्रपति, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग एवं राष्ट्रीय और राज्य अल्पसंख्यक आयोगों को पत्र लिख कर इस मामले में हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया था, जिसके बाद पुलिस ने राजद्रोह की धाराएं हटा लीं।

18 जून को लंदन में आईसीसी चैंपियंस ट्राॅफी में भारत की हार के बाद मोहद के निवासियों ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि कुछ लोगों ने भारत की हार का जश्न मनाया है। रिपोर्ट पर कार्रवाही करते हुए पुलिस ने इन युवाओं को गिरफ्तार किया था।

मध्य प्रदेश में पिछले तीन सालों में साम्प्रदायिक सदभाव कम हुआ है और टकराव की घटनाएं बढ़ी हैं। इसका कारण है कि लगातार तीन बार प्रदेश में सरकार बनाने वाली भारतीय जनता पार्टी को आगामी चुनोवों में अपने प्रदर्शन को लेकर संशय होने लगा है। और इसलिए उसे साम्प्रदायिक तानव का सहारा लेना पड़ रहा है।

पिछले साल अक्टूबर में राजधानी भोपल के समीप एक जेल से कथित तौर पर फरार होने की कोशिश करने वाले 8 कथित सीमा कार्यकर्ताओं की इंकाउण्टर की पुलिसिया कहानी पर भी सवाल उठे थे। इनकाउंटर के बाद ऐसे वीडियों सामने आए थे जो पुलिस की कहानी पर सवाल उठाते थे।

आमतौर पर साम्प्रदायिक सदभाव वाली छवि रखने वाले प्रदेश के ‘मामा’ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर जैसे से संकट के बादल घिरते जा रहे हैं उनके चहरे पर से भी ‘मामियत’ का नकाब उठता जा रहा है। 2014 के बाद, शिवराज सिंह चौहान खुद को पार्टी में लगातार अकेला पा रहे हैं। मध्य प्रदेश भाजपा में उनकी पकड़ लगातार कमजोर होती गई है।

पिछले आम चुनाव के बाद पार्टी का नरेन्द्र मोदी विरोधी खेमा यह आशा कर रहा था कि मोदी-शाह के कमजोर पड़ते ही शिवराज सिंह चौहान एक विकल्प के रूप में उभरेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ और मोदी-शाह खेमे ने राष्ट्रीय राजनीति को पूरी तरह से अपने कब्जे में कर लिया। और तो और, व्यापमं घोटाले की सीबीआई जांच ने शिवराज की डोर इसी जोड़ी के हाथों में थमा दी है।

लोग बताते हैं कि हाल के किसान आंदोलन के दौरान भी मुख्यमंत्री की कार्य क्षमता पर पार्टी के अंदर ढेरों सवाल उठाए गए। इन तमाम वजहों से शिवराज को अपने राजनीतिक भविष्य की चिंता सताते लगी है। आगामी विधानसभा चुनाव तक वे ऐसा कुछ नहीं करना चाहते जिससे प्रदेश की राजनीति में उनकी दावेदारी कमजोर हो और उनके विरोधियों का स्वर मुखर हो।

लगता यह भी है कि वे भी सुषमा स्वराज और अन्य नेताओं की तरह ही मोदी-शाह मानकों पर आगे चलने को राजी हो गए हैं। उनके भविष्य का तो पता नहीं लेकिन प्रदेश की राजनीति के लिए यह अच्छा संकेत नहीं है।

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