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समाज

केजरीवाल सरकार का ऐतिहासिक फैसला, पहली बार किसी सरकार ने दिखाया कॉरपोरेट अस्पताल का लाइसेंस रद्द करने का साहस

Janjwar Team
8 Dec 2017 5:28 PM GMT
केजरीवाल सरकार का ऐतिहासिक फैसला, पहली बार किसी सरकार ने दिखाया कॉरपोरेट अस्पताल का लाइसेंस रद्द करने का साहस
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तीन सदस्यीय जांच समिति ने कहा मैक्स हॉस्पिटल है नवजात बच्चे की मौत के लिए दोषी, जीवित नवजात को लपेट दिया था कफन में

जनज्वार, दिल्ली। दिल्ली के शालीमार बाग स्थित चर्चित मैक्स हॉस्पिटल का लाइसेंस दिल्ली सरकार द्वारा रद्द कर दिया गया है। गौरतलब है कि मैक्स हॉस्पिटल ने जिंदा बच्चे को न सिर्फ मृत घोषित किया था, बल्कि कफन में लपेटकर मां—बाप को सौंप भी दिया था।

घटनाक्रम के मुताबिक मैक्स के डॉक्टरों ने दो 22 हफ्ते में पैदा हुए दो जुड़वा नवजातों को मृत घोषित कर परिजनों को सौंप दिया। परिजन जब बच्चों के शव लेकर अंतिम संस्कार के लिए जा रहे थे तो उन्हें कुछ हरकत महसूस हुई। देखा तो उनमें से एक बच्चे की सांस चल रही थी। तुरंत बच्चे को पास के ही एक नर्सिंग होम में ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने जांच में बच्चे को स्वस्थ बताया।। हालांकि अब दूसरे बच्चे की भी इलाज के दौरान 6 दिसंबर को मौत हो चुकी है।

बच्चों के पिता आशीष कुमार ने पुलिस में शिकायत की थी कि इलाज के दौरान मेरे बच्चे की इंफेक्शन से मौत इसलिए हुई, क्योंकि मैक्स ने उसके जिंदा रहते ही उसे पॉलिथीन में लपेट दिया था। पॉलिथीन से उसे इंफैक्शन हुआ।

हालांकि इस मामले में दोषी मैक्स हॉस्पिटल दो डॉक्टरों को निकाल चुका था। प्रीमैच्योर पैदा हुए जुड़वा बच्चों के पिता आशीष कुमार ने सरकार से मांग की थी कि अस्पताल का लाइसेंस रद्द किया जाए।

बच्चों के पिता की अपील और मामले की गंभीरता को देखते हुए दिल्ली सरकार ने यह कदम उठाया है। गौरतलब है कि दिल्ली सरकार ने इस मामले में एक तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की थी। समिति ने अपनी जांच में अस्पताल को दोषी पाया है। जांच रिपोर्ट आने के बाद सरकार ने मैक्स का लाइसेंस रद्द करने का फैसला लिया है।

दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने हॉस्पिटल का लाइसेंस रद्द करते हुए कहा कि हॉस्पिटल द्वारा नवजात को मृत बताए जाने की घटना को बिल्कुल भी स्वीकारा नहीं जा सकता।

हालांकि 22 हफ़्ते के जिंदा नवजात को मृत बता कफन में लपेट माता-पिता को सौंपने वाले मामले में दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन मैक्स अस्पताल और डॉक्टरों के पक्ष में दलीलें दे रहा था। उसने कहा था कि 'प्रीमैच्योर डिलीवरी के लिए कोई प्रोटोकॉल या गाइडलाइंस नहीं है. लेकिन भारत का कानून 20 हफ़्ते तक गर्भपात की इजाज़त देता है और कुछ ज़्यादा गंभीर मामलों में 24 हफ़्ते में गर्भपात की इजाज़त अदालत ने दी है यानी भारतीय कानून भी 24 हफ्ते तक के भ्रूण को ज़िंदा ना बचने लायक मानता है।'

बावजूद इसके मैक्स पर कार्रवाई होने से उम्मीद की जा रही है कि निजी अस्पतालों के मनमाने रवैये पर कुछ लगाम जरूर कसेगी।

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