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शिक्षा

दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रावासों में छात्राओं पर क्यों लगा 'कर्फ्यू'

Prema Negi
7 March 2020 6:11 AM GMT
दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रावासों में छात्राओं पर क्यों लगा कर्फ्यू
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आंदोलनरत डीयू छात्रायें कहती हैं, हम पूरे देश के अलग-अलग गाँवों और शहरों से यहाँ आते हैं पढ़ने के लिए, सीखने के लिए, मगर हमारा सीखना एक कंडीशन की मोहताज होती है कि 10 बजे से पहले किसी भी हाल में आपको हॉस्टल वापस आना होगा, हम पर लागू है कर्फ्यू...

जगन्नाथ जग्गू की रिपोर्ट

जनज्वार। मार्च को जहाँ देशभर में "अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस" मनाने की तैयारी तेज़ हो चुकी हैं। तमाम तरह की वादे, दावे और सशक्तीकरण की बात की जाने लगी है या की जाएगी। वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय के चार छात्रावास के छात्राएं पिछले 10 दिन यानी 27 फरवरी से हॉस्टल में पाबंदी को लेकर गर्ल्स हॉस्टल काम्प्लेक्स, मुखर्जी नगर के मुख्य द्वार पर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर बैठे हैं, जिसमें अंडरग्रेजुएट हॉस्टल फॉर गर्ल्स, अंबेडकर गांगुली स्टूडेंट्स हाउस फॉर विमेन, नॉर्थ ईस्टर्न स्टूडेंट्स हाउस फॉर विमेन, राजीव गांधी हॉस्टल फॉर गर्ल्स हैं। इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा। यूनिवर्सिटी प्रशासन भी सो रहा है और छात्राएँ सड़क पर बैठी हैं।

प्रदर्शन की मुख्य वज़ह हॉस्टल में समय की कड़ी पाबंदी है। प्रदर्शनकारी इसे भेदभावपूर्ण, स्वेच्छाचारी और पितृसत्तात्मक नियम बता रहे हैं। इस नियम के तहत हॉस्टल में आने-जाने की समय सीमा अंडरग्रेजुएट छात्राओं के लिए साढ़े सात बजे का निर्धारित है, वहीं पोस्टग्रेजुएट के लिए 10 बजे का। हालाँकि इस विरोध प्रदर्शन के दबाव में प्रशासन ने अंडरग्रेजुएट छात्राओं के वक्त पाबन्दी की समय सीमा को बढ़ाकर पोस्टग्रेजुएट के बराबर यानी 10 बजे का कर दिया हैं।

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प्रदर्शन कर रही छात्राओं का कहना है कि सभी तरह की वक्त पाबन्दी को तुरंत समाप्त किया जाएँ, जिसे यूजीसी रेगुलेशन तथा सक्षम कमिटी रिपोर्ट के मद्देनज़र न्यायसंगत बताया जा रहा है। छात्राओं का कहना है हमारी सुरक्षा के नाम पर किसी भी तरह की पाबन्दी को न सिर्फ पितृसत्तात्मक सोच से जोड़कर देखा जा रहा है, बल्कि इसे यूजीसी के नियम का उल्लंघन भी माना जा रहा है।

रअसल, 2 मई 2016 को प्रकाशित विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के एक रिपोर्ट के क्लोज़ संख्या 3.2 (13) में साफ तौर पर कहा गया है कि युवा छात्रों की तुलना में छात्रावास में स्थित छात्राओं की सुरक्षा की मामले को भेदभाव पूर्ण नियमों का आधार नहीं बनाया जाना चाहिए। परिसर की सुरक्षा सम्बंधित नीतियों को महिला कर्मचारी एवं छात्राओं की सुरक्षात्मकता के रूप में नहीं बन जाना चाहिए। जैसे कि आवश्यकता से अधिक सर्वेक्षण या पुलिसिया निगरानी अथवा आने जाने की स्वतंत्रता में कटौती करना-विशेषकर महिला कर्मचारी एवं छात्राओं के लिए।

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सी रिपोर्ट में निर्देशित है कि सभी उच्चतर शैक्षणिक संस्थानों के लिए पर्याप्त सुविधायें होनी चाहिए। महिलाओं के लिए लिंग संवेदी डॉक्टर और नर्सें तथा इसके साथ ही एक स्त्री रोग विशेषज्ञ की सेवाएं उपलब्ध होनी चाहिए, वहीं अंबेडकर गांगुली स्टूडेंट्स हाउस फॉर विमेन की छात्रा पल्लवी कहती है, 'पर्याप्त सुविधा के नाम पर यहाँ कुछ भी उपलब्ध नहीं है। अंडरग्रेजुएट हॉस्टल की छात्राओं को अक्सर बाहर से पानी खरीद कर पीना पड़ता है। पानी की गुणवत्ता बेहद ख़राब है। पीने के लिए बिलकुल भी उपयुक्त नहीं है, जबकि हमें अपने फीस में पानी के लिए अलग से भुगतान करना पड़ता है। 24x7 मेडिकल की सुविधा नहीं उपलब्ध है। हम इसी मांग के साथ यहाँ बैठे हैं।'

अंबेडकर गांगुली स्टूडेंट्स हाउस फॉर विमेन की ही एक छात्रा प्रिया अपने हॉस्टल के वार्डन की इस्तीफा की मांग करते हुए कहती है, हॉस्टल एनुअल नाईट फेस्ट में उनके एक साथी को यह कहते हुए डांस करने से रोक दिया गया कि उनका डांस सेक्सुअलिटी को दिखता है। वे वेस्टर्न डांस करना चाहती थी। वार्डन सलाह देते हुए उन छात्रा से कहती हैं कि महिला की बॉडी एक मिस्ट्री है, जिसे रिविल नहीं करना चाहिए।

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प्रिया आगे बताती है, "हम 10 बजे के बाद हॉस्टल में आ-जा नहीं सकते, लेकिन वार्डन के लिए यह पाबन्दी नहीं है। यहीं सवाल जब हमने उनसे किया तो वे कहती हैं कि हम तुम्हारे लिए मर्द हैं ,इसलिए अब हम उसके इस्तीफा की माँग कर रहे हैं कि हमें मर्द वार्डन नहीं चाहिए और इसलिए हम यह प्रदर्शन कर रहे हैं। हमारे लिए स्थितियां कर्फ्यू जैसी हो चुकी हैं।"

प्रदर्शन में शामिल राजीव गांधी हॉस्टल फॉर गर्ल्स की छात्रा सारा कहती है, "डीयू गर्ल्स हॉस्टल पर जो ताला अथॉरिटीज लगाती है, वो न सिर्फ हमारे गेट से निकलने पर रोक है, बल्कि वो एक तरह से हमारे मानसिक विकास पर भी रोक है। हम पूरे देश के अलग-अलग गाँवों और शहरों से यहाँ आते हैं पढ़ने के लिए, सीखने के लिए, मगर हमारा सीखना एक कंडीशन की मोहताज होती है कि 10 बजे से पहले किसी भी हाल में आपको हॉस्टल वापस आना होगा।'

सारा आगे कहती हैं, 'ये प्रोटेस्ट इसलिए नहीं हो रहा है कि 10 बजे के बाद की पाबंदी हटे और हम रातभर बाहर घूमें, मगर ये हमारे 'फ्रीडम ऑफ़ चॉइस' की लड़ाई है। एक तरफ बॉयज हॉस्टल में उनपर कोई रोक-टोक नहीं है तो फिर लड़कियों के हॉस्टल में ऐसा क्यों! जब डीयू जैसे संस्थान भी ऐसे सोच को बढ़ावा दे रहा है तो हम कैसे उम्मीद करें की आने वाले सालों में औरतों की स्थिति सुधरेगी!"

प्रदर्शनकारी हॉस्टल में टाइमिंग की पाबंदी के साथ और भी कई माँगे कर रहे हैं। जैसे- पिछड़ी जातियों से आने वाली छात्राओं के लिए हॉस्टल में आरक्षण लागू किया जाए, बॉयज हॉस्टल के तुलना में गर्ल्स हॉस्टल की फीस ज्यादा है, जिसे कम की जाए। साथ ही विकलांग महिलाओं के लिए अलग से हॉस्टल हो और लोकल गॉर्डियन होने के नियम को समाप्त किया जाए। गर्मियों के छुट्टी के बाद हॉस्टल में होने वाले इंटरव्यू को समाप्त किया जाए, ताकि किसी के चरित्र को जज न किया जा सकें।

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प्रदर्शन में बैठी छात्रा अमीषा कहती हैं, 'गर्मी की छुट्टियों के बाद हॉस्टल में फिर से प्रवेश पाने के लिए इंटरव्यू लिया जाता है, जिसके माध्यम से छात्राओं का शोषण किया जाता है। जिन छात्राओं ने प्रशासन पर पूरे साल भर सवाल खड़े किये होते हैं, उन्हें विशेष रूप से टारगेट किया जाता है। इसलिए हमारी मांग है कि इस इंटरव्यू के प्रक्रिया को भी ख़त्म किया जाए।'

दिल्ली विश्विद्यालय में हॉस्टल में टाइमिंग की पाबंदी के खिलाफ 2015 से आंदोलन चल रहा है, जिसके बाद मिरांडा हाउस गर्ल्स हॉस्टल में सबसे पहले टाइमिंग की पाबंदी को हटाया गया, उसके बाद देश के अलग-अलग विश्वविद्यालयों में छात्राओं ने आंदोलन किया और समय की पाबंदी को खत्म किया, पंजाब यूनिवर्सिटी, प्रेसीडेंसी यूनिवर्सिटी, कोलकाता आदि शामिल हैं।

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