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सिख धर्म के संतों में ठनी, ढडरियांवाला ने अकाल तख्त के जत्थेदारों को दी बहस की चुनौती

Nirmal kant
25 Feb 2020 12:41 PM GMT
सिख धर्म के संतों में ठनी, ढडरियांवाला ने अकाल तख्त के जत्थेदारों को दी बहस की चुनौती
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अकाल तख्त ने दावा किया था कि उनके पास भारत व विदेशों में रह रहे सिखों की शिकायत आई थी कि ढडरियांवाला अपने धार्मिक प्रवचन में गुरमत विचारधारा को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहे हैं...

चंडीगढ़ से मनोज ठाकुर की रिपोर्ट

जनज्वार। धार्मिक गुरू रणजीत सिंह ढडरियांवाला और अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह के बीच विवाद और गहरा गया है। ढडरियांवाला ने अपने उन्हें बहस के लिए चुनौती दी है। उन्होंने कहा कि उन पर जो भी आरोप लगाए जाते हैं वह गलत है। उनका कहना है कि वह इनका जवाब देने के लिए तो तैयार है, लेकिन टीवी के सामने। उन्होंने कहा कि उनसे जितने भी लोग जो भी सवाल करना चाहे कर सकते हैं।

क्या है विवाद की वजह?

काल तख्त ने दावा किया था कि उनके पास भारत व विदेशों में रह रहे सिखों की शिकायत आई थी कि ढडरियांवाला अपने धार्मिक प्रवचन में गुरमत विचारधारा को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहे हैं। अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत ने मामले की जांच के लिए एक कमेटी का गठन कर दिया था। लेकिन इस कमेटी के सामने ढडरियांवाला पेश नहीं हुए थे।

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सिख संगतों का आरोप था कि ढडरियांवाला सिख कौम में जंग कराने की साजिश कर रहे हैं

मालवा में सिख धर्म का प्रचार करने वाले और कई बार पंथक विवादों में फंसे रणजीत सिंह ढडरियांवाले द्वारा दशम पिता श्री गुरु गोबिंद सिंह व सिख इतिहास की नायिका माई भागो के विरुद्ध आपत्तिजनक प्रचार करने का मामला श्री अकाल तख्त साहिब पहुंच गया है। कई सिख संगठनों ने ढढरियांवाले के विरुद्ध श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरजीत सिंह को ज्ञापन सौंपा। इस ज्ञापन में कहा है कि ढढरियांवाले का सिखी प्रचार सिख धर्म के विरुद्ध और सिख कौम के भीतर जंग शुरू करने की साजिश का एक हिस्सा है। ढढरियांवाले ने अपने प्रवचन में श्री गुरु गोबिंद सिंह और माई भागो के सम्मान में गुस्ताखी की है।

2016 में हुआ था संत पर हमला

17 मई को सिख प्रचारक संत रंजीत सिंह ढडरियांवाले के काफिले पर हमला किया गया। इसमें संत के सहयोगी बाबा भूपिंदर सिंह ढक्की साहिब वाले की गोली लगने से मौत हो गई। संत बाल-बाल बच गए थे। सिखों का एक बड़ा समूह उनके धर्म प्रचार को सिख धर्म के खिलाफ मानता है। यह भी एक वजह है कि उनसे सिख अनुयायी नाराज रहते हैं।

कौन है ढडरियांवाले संत

पंजाब के धर्म प्रचारक है। वह भारत और विदेश में धर्म की शिक्षा देते हैं। लेकिन सिखें का एक बड़ा धड़ा यह मानता है कि उनकी शिक्षा सिख पंथ के खिलाफ है। इसलिए उन्हें सिख धार्मिक संगठन अपने निशाने पर लेते रहे हैं। उन पर हमले के पीछे भी यह एक वजह बतायी गयी थी।

पंजाब में डेरों की राजनीति में अहम भूमिका रही है

पंजाब के डेरों पर शोध कर रहे हरबंस सिंह ने बताया कि पंजाब में डेरों का इतिहास चार सौ साल से ज्यादा पुराना माना जाता है। माना जाता है कि जिन्हें अपने धर्म में बराबरी का दर्जा नहीं मिल रहा था और जाति के नाम पर रोक-टोक से निराश थे, वे तेजी से डेरों की ओर आकर्षित हुए। मौजूदा अनुसूचित जातियों की सूचि के हिसाब से पंजाब में दलित आबादी करीब 37 फीसदी है। इनमें बड़ी संख्या भूमिहीन मजदूरों की है। सिर्फ पांच फीसदी के पास जमीन है। वह डेरों के अनुयायी है।

चुनाव के वक्त हिंसा में तब्दील हो जाता है यह गुस्सा

रबंस सिंह ने बताया कि चुनाव आते ही लोगों का यह गुस्सा हिंसा में तब्दील हो जाता है। इस बार के विधानसभा चुनाव से पहले डेढ़ महीने से कम समय में पंजाब में संतों पर दो बड़े हमले हो चुके हैं। दोनों ही हमले लुधियाना में हुए हैं। 4 अप्रैल को नामधारी समुदाय की माता चंद कौर की गोली मार कर हत्या कर दी गई और 17 मई को सिख प्रचारक संत रंजीत सिंह ढडरियांवाले के काफिले पर हमला किया गया। इसमें संत के सहयोगी बाबा भूपिंदर सिंह ढक्की साहिब वाले की गोली लगने से मौत हो गई।

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अब क्या हो सकता है

जानकारों का कहना है कि यह विवाद और बढ़ सकता है। हालांकि इससे पहले भी विवाद रहा है, लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि यह विवाद आमने-सामने वाला हो गया है। इस वजह से एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला तेज हो सकता है।

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