गोरखपुर विश्वविद्यालय में 34 साल संस्कृत पढ़ा चुके असहाब अली ने कहा, बीएचयू में फिरोज खान का विरोध कर रहे सिर्फ ब्राह्मण
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में मुस्लिम प्रोफेसर की नियुक्त पर चल रहा विवाद, प्रोफेसर फिरोज खान के समर्थन में आए गोरखपुर विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष...
जनज्वार, गोरखपुर। असहाब अली 50 साल से संस्कृत से जुड़े हुये हैं। जब क्लास में पढ़ाने जाते थे तो छात्र इनके पैरों को छूकर आशीर्वाद लेते थे। इनका धर्म तो अलग है। असहाब अली गोरखपुर विश्वविद्याल में 2007-10 के बीच संस्कृत के विभागध्यक्ष थे। 1977 से वह विश्वविद्यालय में पढ़ा चुके हैं।
असहाब अली ने जनज्वार से बातचीत करते हुए कहा, 'काशी विश्वविद्यलय में जिस तरह फिरोज खान को अपने धर्म के वजह से प्रताड़ना सहनी पड़ी ये मेरे लिए बहुत ही धक्का देने वाला मामला है। असहाब अली कहते हैं, 'मैं 50 साल से संस्कृत से जुड़ा हुआ हूं। उस वक्त तो कर्मकांड अपने चरम सीमा पर था। 1977 में इस तरह का कोई भेदभाव नहीं था। केवल मुस्लिम होने के नाते किसी को संस्कृत ना पढ़ने - पढ़ाने दिया जाए तो ये संस्कृत, संविधान और देश का अपमान है।'
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उन्होंने आगे कहा, '1977 में जब ब्राहमणवाद, जातिवाद चरम पर था तब इस तरह का विरोध नहीं होता था। काशी विश्वविद्यलय में तीन लोग संस्कृत के प्रो. का विरोध कर रहें हैं वे तीनों ब्राहमण है। लेकिन असल में परदे के पीछे कौन ये सब करवा रहा है ये तो परदा ही जानता है।'
असहाब अली आगे कहते हैं यदि संस्कृत के साथ इसी तरह का कृत्य होता रहा तो कोई हिंदू या मुस्लिम संस्कृत पढ़ने वाला नहीं रहेगा। काशी विश्वविद्यालय में केवल फिरोज का अपमान नहीं हो रहा है। महामना के नियमों का विरोध हो रहा है। देश का संविधान जो सभी के लिए सर्वोपरी होता है लेकिन यहां संविधान का मान नहीं रखा गया। महामना ने भी कहा है कि कोई भाषा लिंग या किसी धर्म के साथ नहीं जुड़ी होती है।
असहाब अली ने आगे कहा, 'आदिकाल में वशिष्ट और विश्वामित्र की लड़ाई हुई थी। उसका बीज आज भी पड़ा हुआ है। उसी हालात को कही ये सत्ताधारी लोग फिर से लाना तो नहीं चाहते हैं। एक रोचक कहानी बताते हुये असहाब अली कहते हैं, 'गोरखपुर विश्वविद्यलय में एक हिंदू लड़के ने उर्दू में स्कॉलरशिप हासिल की, आज वो लड़का पूरे दुनियाभर में उर्दू का नाम गिना रहा है।'
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उन्होंने आगे कहा, 'काशी विश्वविद्यलय संस्कृत को जीवित रखने के लिए जहां लोगों के लिए एक माहौल बनाया जाता है। उसी जगह एक प्रोफेसर को केवल इसलिए प्रताड़ित किया जाता है कि वह मुस्लिम हैं। आज से 40 साल पहले जब लोग धार्मिक भेदभाव अधिक रखते थे, उस समय ब्राहमण छात्र पैरों को छूते थे। पैर छूना इस्लाम के खिलाफ होता है लेकिन इस तरह का माहौल नहीं होता था। अभी भी पैरों को छूते हैं।
वह आगे कहते हैं कि मैं धर्म के प्रति बड़ा प्रतिबद्ध हूं। मैं हाईस्कूल में जब पढ़ रहा था, तभी रामायण, महाभारत, सुखसागर सभी पढ़ चुका था। तब मेरे गुरु द्विवेदी जी ने कहा कि इसका मूल संस्कृत में है, तब से संस्कृत पढ़ने लगा। पूरे कॉलेज में टॉप किया। हिन्दू माइथोलजी में जितनी कहानियां थीं, उसमें मैं पारगंत रहा हूं। कोई बात किसी को खटकती है, तो वो मुझसे पूछ लेता था। उन्होंने आगे कहा, 'शिक्षक तो ज्ञान देने के लिए होता है और ज्ञान की कोई जाति नहीं होती है। ब्राहमण अपने आचरण अच्छे व्यवहार के लिये ब्राह्मण होता है। किसी का विरोध करने वाला ब्राह्मण नहीं हो सकता है।