गिरीश कर्नाड के नाटकों को देखते और खेलते हुए किया थियेटर शुरू : अरविंद गौड़
चर्चित नाटककार, फिल्मकार और अभिनेता गिरीश कर्नाड की लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया है, उन्हें कुछ यूं याद कर रहे हैं वरिष्ठ रंगकर्मी और अस्मिता थिएटर के निर्देशक अरविंद गौड़...
वरिष्ठ नाटककार, सामाजिक कार्यकर्ता, एक्टर और डायरेक्टर गिरीश कर्नाड का जाना मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है। गिरीश कर्नाड के नाटकों को पढ़ते, देखते और खेलते हुए मेरा थियेटर शुरू हुआ। उनके नाटकों और व्यक्तित्व ने मेरे रंगमंच को काफी प्रभावित किया। लगातार काम करने, डटे रहने और मुद्दों पर बेबाक खड़े होने की उनकी ताकत प्रेरणा देती रही।
गिरीश कर्नाड के नाटक 'तुगलक' ने अस्मिता थियेटर को एक नई पहचान दी थी। श्री राम सेंटर के बेसमेंट में हमने 'तुगलक' किया था। इस नाटक से जुड़े भव्यता और बड़े नामों के मिथ को तोड़ इस प्रस्तुति ने तुगलक नाटक का नया आयाम और व्याख्या रखी। 1994-95 में इस नाटक के टिकट तक ब्लैक हुए।
उस समय बहुत छोटे से स्पेस बैसमेंट में 'तुगलक' का होना एक चमत्कार से कम न था। मंचन के बाद कविता नागपाल के हिंदुस्तान टाइम्स में रिव्यू को उन्होंने पढ़ा। मुलाकात होने पर उन्होंने नाटक की सादगी और व्याख्या की तारीफ की।
भारतीय समाज में जाति और वर्ण के अंतर्द्वंद्वों की पड़ताल करता 'रक्त कल्याण' गिरीश कर्नाड का सबसे महत्वपूर्ण नाटक है। पहले इब्राहिम अल्काजी ने इसे किया। उसके बाद मुझे लगा कि यह नाटक हमारे समाज का एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है, इसलिए इसे करना चाहिए। निर्देशक रामगोपाल बजाज ने इसका हिंदी में अनुवाद किया था, मैं उनके पास पहुंचा नाटक करने की अनुमति लेने के लिए। नाटककार और निदेशक दोनों ने बिना किसी शर्त या रायल्टी के इस नाटक को करने की अनुमति दे दी।
विचारोत्तेजक ऊर्जा, नई सोच और नाटकीय संभावना से भरे इस नाटक को युवा एक्टरों की टीम ने इसको खेला और पूरे देश भर में 500 ज्यादा इसके प्रदर्शन अस्मिता थियेटर ने किए। सैकड़ों अभिनेता इस नाटक से प्रशिक्षित हुए, उनकी जाति, धर्म, समाज देश के प्रति धारणाओं को इस नाटक ने प्रभावित किया। एक्टरों, दर्शकों के साथ, मुझे व्यक्तिगत रूप से इस नाटक ने बहुत कुछ सिखाया।
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गिरीश कर्नाड के 'अग्नि' और 'बरखा' नाटक की, वरिष्ठ निर्देशक प्रसन्ना द्वारा की गई प्रस्तुति को मैं, भारतीय रंगमंच की ऐतिहासिक नाट्य प्रस्तुति मानता हूं। सैकड़ों यादें हैं, बातें हैं, गिरीश कर्नाड के नाटकों के चरित्र हैं, उनके संवाद हैं उससे जुड़े अभिनेताओं, चरित्रों और शो से जुड़े प्रसंग है... यादों का लंबा सिलसिला है...
गिरीश कर्नाड एक नाटककार ही नहीं थे, खुद में एक संपूर्ण व्यक्ति थे, संस्था थे, इतिहास है। उनको देखना, उनके पास होना, उनसे बातचीत करना, उनके नाटकों को पढ़ना, करना, देखना, खुद मे विचारोत्तेजक विकास का माध्यम रहा है।
गिरीश कर्नाड का योगदान भारतीय रंगमंच के इतिहास के साथ साथ, पूरे भारतीय कला संस्कृति के लिए हमेशा याद किया जाएगा। हबीब तनवीर साहब के बाद जिस व्यक्ति ने मुझे सबसे प्रभावित किया, वह गिरीश कर्नाड ही हैं।
एक महान व्यक्ति, लेखक और मजबूत स्पष्ट सोच वाले सोशल एक्टिविस्ट को मेरा अंतिम सलाम। आपके नाटक, आपकी बातें, आपके होने का अहसास, हमें हिम्मत, जज्बा और हौसला देता रहेगा। सलाम...