Begin typing your search above and press return to search.
जनज्वार विशेष

‘इबलीस की खंभा प्रेस’ से घबरा गए थे अंग्रेज

Prema Negi
6 Sept 2018 3:25 PM IST
‘इबलीस की खंभा प्रेस’ से घबरा गए थे अंग्रेज
x

इबलीस के अलावा भी कुछ लोगों ने इस परंपरा को कुछ अरसे तक कायम रखा। इस प्रेस की लोकप्रियता जबर्दस्त थी। कहते हैं लोग सुबह ही लैंप पोस्ट पर जमा हो जाते कि देखें आज क्या लिखा है खंभा प्रेस पर....

बरेली से आशीष सक्सेना की रिपोर्ट

जनज्वार। अभिव्यक्ति की आजादी को कुचलने का प्रयास कितना भी किया जाए, लोग रास्ता निकाल ही लेंगे। ऐसा अंग्रेजों के जमाने में बरेली शहर में हुआ। ये वाकया है 1920 के बाद का, जब असयोग आंदोलन चला और ठंडा हो गया। निराशा और उलझन के बीच गुस्से का माहौल।

कुछ पुराने लोग बताते हैं कि इसी दौर में एक ‘खंभा प्रेस’ हुआ करती थी, जिसका वजूद लगभग 1940 तक बना रहा। इसका जिक्र ‘चंद चौराहे बरेली के’ किताब में भी किया गया है। ये खंभा प्रेस भी गजब की थी। न कोई प्रिंटिंग प्रेस, न पत्रकार, न संपादक। एक तरह की दीवार पत्रिका जैसी। तब लैंप पोस्ट हुआ करते थे।

चौराहे के लैंप पोस्ट वाले खंभे पर कोई चुपके से ये बड़ा सा पोस्टर टांग जाता था। उस पोस्टर में बरेली की किसी घटना या किसी मामले पर कटाक्ष होता था, वह भी शायरी के अंदाज में। इसकी शुरुआत की अंग्रेजों के डाक विभाग में सेंसर सेक्शन में कर्मचारी रह चुके मोहम्मद ने। उन्हें अंग्रेजों और उनके भारतीय पिट्ठुओं से जब नफरत हुई तो नौकरी छोड़ दी।

खंभा प्रेस पर इनकी खरी-खरी बातों से खफा होकर अंग्रेजों के चाटुकारों ने इनका नाम ‘इबलीस’ रख दिया, मतलब शैतान। इसी वजह से इस प्रेस को ‘इबलीस की खंभा प्रेस’ कहा जाता था। पहले कुतुबखाना चौराहे के पास गली नवाबान पर खंभा प्रेस थी। पहरा बिठाया गया तो दूसरे लैंप पोस्ट पर ठिकाना बना लिया। इबलीस के अलावा भी कुछ लोगों ने इस परंपरा को कुछ अरसे तक कायम रखा। इस प्रेस की लोकप्रियता जबर्दस्त थी। कहते हैं लोग सुबह ही लैंप पोस्ट पर जमा हो जाते कि देखें आज क्या लिखा है खंभा प्रेस पर।

एक बार एक दलाल किस्म के आदमी जिसका निक नेम चिरौटा था, उसने कांग्रेस की सदस्यता ले ली और नेतागिरी करने लगा। इस पर खंभा प्रेस में लिखा गया- चिरौटे के सर पर कजा खेल रही है, हाथ थक गया अब छुरी दंड पेल रही है।

एक बार एक जलसा बहेड़ी में होने वाला था जिसकी अध्यक्षता शेख जी को करना थी जो अंग्रेजों के खास थे। इस पर लिखा गया- सुना बहेड़ी में जलसा होने वाला है, जिसका सद्र कलेक्टर का साला है।

इस बात से खफा होकर कुछ कलेक्टर से शिकायत करने भी पहुंंचे और बताया कि कलेक्टर का साला बताया है ‘इबलीस’ ने। कलेक्टर ने पहले साले का मतलब पूछा। जब बताया गया कि पत्नी का भाई, तो कलेक्टर ने अपनी पत्नी को बुलाकर पूछा कि क्या आपको इन्हें भाई मानने से ऐतराज है, उन्होंने कहा कि नहीं। इस पर कलेक्टर ने कहा कि आप लोग नाराज न हों, ये शेख जी को भाई मानने को तैयार हैं। ऐसी ही कई बातें हैं इस ‘इबलीस की खंभा प्रेस’ की, लेकिन अब शहर के कुछ ही लोगों को ये बात पता रह गई है।

Next Story

विविध