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इसी शिलापट्ट के चक्कर में भाजपा सांसद ने मारे थे विधायक को 7 जूते
सबसे मजे की बात तो यह है कि सरेआम भाजपा सांसद विधायक के बीच हुई इस जूतमपैजार में अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है....
जनज्वार। यूपी में सत्ताधारी दल भाजपा के सांसद और विधायक के बीच चली जूतमपैजार एक अंतरराष्ट्रीय घटना बन चुकी है और इसका लोग हचक के मजा रहे हैं और सोच रहे हैं कि जो काम इन सांसदों—विधायकों के साथ जनता को करना चाहिए था, अब इसे खुद ही कर रहे हैं।
अब वह शिलापट्ट भी सामने आ चुका है, जिस पर नाम पर न छपने पर भाजपा सांसद शरद त्रिपाठी ने संत कबीरनगर से अपनी ही पार्टी के विधायक राकेश बघेल को पूरे सात जूते मारे थे। सांसद तब तक नहीं रुके जब तक कि सात जूते पूरे नहीं हो गए। फेसबुक पर इस फोटो को शेयर करते हुए शिल्पी चौधरी लिखती हैं, 'उस पूरी घटना का इकलौता जिम्मेदार।'
इस फोटो को शेयर करते हुए सोशल मीडिया पर और लोगों ने भी मजे लेते हुए तरह—तरह कमेंट किए हैं। पोस्ट पर मानवेंद्र सिंह नाम के व्यक्ति लिखते हैं, '3 km सड़क और 10 जूते ये तो बहुत नाइंसाफी है।'
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इलाहाबाद की सड़कों पर मिले कटरा मोहल्ले के निवासी तिलक राजभर कहते हैं, 'महाराज इनके पाप का घड़ा अब भर चुका है। ये जनता के लूट—लूट कर अपना यशगान करते हैं और अब उसी यशगान के लिए अपने में ही जूतम—पैजार कर रहे हैं।
इस पूरे घटनाक्रम पर दिल्ली के दलित सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र नाथ रहबर की राय है, 'ऐसे ही किसी ने नहीं कहा था कि संसद एक सुअरबाड़ा है। अब आप जनता के शोषकों से क्या उम्मीद करेंगे।'
मजेदार यह है कि योगी आदित्यनाथ के मंत्री आशुतोष टंडन के सामने जिला कार्ययोजना समिति की बैठक में हुई सरेआम जूतमपैजार और थप्पड़ मार की इस घटना का वीडियो करोड़ों—करोड़ लोग देख चुके हैं, मगर आह हमारा लोकतंत्र कि मामले की लीपापोती के लिए इस मामले में अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है।
कमाल है कि इस घटना के लिए जिम्मेदार भाजपा के माननीयों पर एफआईआर दर्ज न कर अज्ञात के खिलाफ मात्र लीपापोती के लिए आईपीसी की धारा 143 और 427, सार्वजनिक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम 1984 और दंडविधि (संशोधन) अधिनियम, 2013 के तहत मामला दर्ज कराया गया है।
हालांकि उत्तर प्रदेश में भाजपा शरद त्रिपाठी और विधायक राकेश बघेल के बीच हुई मारपीट की घटना को इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र अंकित यादव राजनीति में इस घटना को कोई नई घटना नहीं मानते। वे याद दिलाते हैं कि देश की संसद से लेकर विधानसभाओं में कितनी बार यह घटना सामने आ चुकी है।