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समाज

सीलमपुर हिंसा पर बोले स्थानीय लोग, इसके लिए मीडिया और पुलिस जिम्मेदार

Nirmal kant
18 Dec 2019 9:02 PM IST
सीलमपुर हिंसा पर बोले स्थानीय लोग, इसके लिए मीडिया और पुलिस जिम्मेदार
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स्थानीय लोग बोले, पत्थरबाजी करने वालों में हमारे यहां से कोई भी स्थानीय निवासी नहीं था, पत्थर मारने वाले जो लोग थे, उन्होंने अपने मुंह में कपड़ा बांध रखा था जिसके कारण उनकी पहचान नहीं हो पाई, मगर पुलिस की तरफ से लगातार सीसीटीवी से दंगाई लोगों की की जा रही है पहचान...

जनज्वार। पिछले चार दिनों से नागरिक संशोधन अधिनियम के खिलाफ पूर्वी दिल्ली के सीलमपुर में चल रहा शांतिपूर्ण प्रदर्शन मंगलवार 17 दिसंबर की दोपहर को उस समय उग्र हो गया, जब हजारों की संख्या में मौजूद प्रदर्शनकारियों द्वारा पुलिस पर पत्थर चलाने की बात सामने आयी, जिसके जवाब में पुलिस ने लाठीचार्ज कर आंसू गैस के गोले भी दागे।

नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन चल रहा है। रविवार 16 दिसंबर को जामिया इलाके में भी अधिनियम के खिलाफ बड़ा प्रदर्शन किया गया था। जामिया में हुई हिंसा में पुलिस ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय परिसर के भीतर घुसकर छात्रों की बेरहमी से पिटाई की थी।

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सी घटना के बाद CAB के विरोध में सीलमपुर में हुआ प्रदर्शन उस समय हिंसक हो गया, जब प्रदर्शन कर रहे लोगों ने पुलिस के ऊपर पत्थरबाजी कर पुलिस को मारना शुरू कर दिया। इसके बाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर आंसूगैस और लाठीचार्ज का इस्तेमाल भी किया।

ब जनज्वार टीम सीलमपुर पहुंची तो मामला पूरी तरह से शांत हो चुका था। हिंसक माहौल के बाद पूरा बाजार बंद हो चुका था, उसे आज खोल दिया गया था। लोग अपने अपने घरों से बाहर निकलकर 17 दिसंबर को दंगों के बारे में बातचीत कर रहे थे।

दौरान जनज्वार की बात सीलमपुर में व्यापार करने वाले मोहम्मद आबिद से हुई। उन्होंने घटना पर दुख जताते हुए कहा कि हम लोग जामिया में हुई घटना को लेकर और नागरिक संशोधन अधिनियम के खिलाफ पिछले 3 दिनों से शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन कर रहे थे, जिसके बाद एक बजे के करीब जब मैं नमाज पढ़कर आया तो मैंने देखा यहां पर पत्थर चलना शुरू हो चुके हैं। कई लोग पुलिस वालों के ऊपर पत्थरों से हमला कर रहे थे, जिसके बाद पुलिसकर्मियों और सीआरपीएफ वालों ने दूसरी तरफ से आंसू गैस के गोले छोड़ना शुरू कर दिया।

सा लगभग एक घंटे तक चलता रहा, जिसके बाद हम स्थानीय लोग मामले को शांत करवाने के लिए घरों से बाहर निकले। हम लोगों को ये पता नहीं चल पाया कि पत्थर फेंकने के लिए इतने लोग कहां से आ गये थे। ये लोग हमारे इलाके के नहीं थे, जितने भी लोग हिंसा में शामिल थे, वो कहीं बाहर या दूसरे इलाके के लोग थे। पुलिस के ऊपर जब भीड़ ने हमला किया तो उसका जबावी हमला पुलिस ने किया। इसके बाद हुड़दंग करने वाले लोगों के साथ ही कई पुलिसकर्मी भी गंभीर रूप से घायल हुए हैं।

मामले पर स्थानीय निवासी शब्बीर कुरैशी कहते हैं, नागरिक संशोधन अधिनियम के खिलाफ सीलमपुर में धरना शांतिपूर्ण तरीके से किया जा रहा था। पुलिस अपना काम कर रही थी और धरना देने वाले धरना दे रहे थे। पुलिस ने धरना रोकने के लिए लालबत्ती के पास बैरकेडिग भी कर रखा था, जिसके बाद जब सीआरपीएफ के जवान आए तो उन्होंने हमारे ऊपर लाठीचार्ज करना शुरू कर दिया। इसी के बाद दंगा होना शुरू हुआ और जनता से पुलिस की मुठभेड़ भी इसी वजह से हुई पुलिस ने लाठीचार्ज किया। शब्बीर सारा आरोप पुलिसवालों पर जड़ते हुए कहते हैं ​कि कल के दंगे के लिए पुलिस ही कसूरवार है।

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ब्बीर कहते हैं, हम लोगों की पुलिस के साथ कोई दिक्कत नहीं है। हमारा ये आंदोलन सरकार के द्वारा लाए जा रहे नागरिकता कानून के विरोध में है। सरकार कानून को लादकर हमें देश से निकालना चाहती है। हम इस देश के निवासी हैं। हमारा देश में सभी धर्म के लोग मिल-जुलकर रहते है। अगर सरकार कि ये सोच है कि वो देश के मुसलमानों को देश से बाहर निकाल देगी तो ये गलत है। ऐसा कभी भी नहीं हो सकता। हम इस देश के निवासी आज से नहीं कई सदियों से हैं। घुसपैठियों को हम अपने मुल्क में नहीं घुसने देंगे। सरकार को ये सोचना चाहिए की वह हम लोगों से इतने पुराने कागजात मांग रही है, हम ये कागजात कहां से लेकर आएंगे।

स हिंसा के लिए मीडिया को जिम्मेदार ठहराते हुए इरफान कहते हैं, मीडिया ने हम लोगों के खिलाफ काफी कुछ बुरा कहा, जबकि यहां के स्थानीय लोग सिर्फ शांति से नागरिक संशोधन अधिनियम के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे। दंगा करने वाले और पत्थर फेंकने वाले लोग बाहर के थे। पत्थरबाजी करने वालों में हमारे यहां से कोई भी स्थानीय निवासी नहीं था। पत्थर मारने वाले जो लोग थे, उन्होंने अपने मुंह में कपड़ा बांध रखा था जिसके कारण उनकी पहचान नहीं हो पाई है, लेकिन पुलिस की तरफ से लगातार सीसीटीवी से दंगाई लोगों की पहचान की जा रही है।

जनज्वार टीम ने स्थानीय लोगों से पूछा कि घरों की छतों से भी पुलिस की तरफ पथराव किया गया था तो उनका कहना था कि ऐसा कुछ नहीं था। ये केवल अफवाह थी, जिसे सोशल मीडिया में लोगों के द्वारा फैला दी गई थी। अगर कुछ लोगों ने पथराव किया भी होगा तो वह यहां के स्थानीय निवासी नहीं हो सकते हैं। पुलिस के द्वारा किए गए हमले में एक बच्चे का हाथ पूरी तरह से जल गया था, जिसके बाद उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

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टना पर दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल विशाल ने जनज्वार को बताया कि लालबत्ती के पीछे से कुछ मुसलमान लोग आंदोलन करते हुए आ रहे थे। जिस समय ये हमला हुआ, उस समय 50 के लगभग पुलिस वाले घटनास्थल पर मौजूद थे। इसके बाद जब सीआरपीएफ यहां पहुंची तो जो भीड़ आंदोलन कर रही थी। वहां से पथराव होना शुरू हो गया था, जिसके बाद पथराव में हमारे 27 जवान घायल हो गए थे।

कांस्टेबल विशाल कहते हैं, इसके बाद कई लोगों की गिरफ्तारी भी की गई थी। साथ ही प्रदर्शन कर रहे कई लोगों को गंभीर चोटें भी आईं थी, जिनको अस्पताल में भर्ती करवाया गया। जब दंगा भड़का था तो बचाने के लिए प्रदर्शनकारियों के ऊपर आंसूगैस के गोले भी फेंके गए थे। अगर हम ऐसा नहीं करते तो हमारे कई जवान घायल हो सकते थे। ऐसा नहीं है कि ये हादसा कल हुआ है, इससे पहले भी 16 दिसंबर को हिंसा हुई थी, लेकिन वह उतनी बड़ी नहीं थी जितना कल हो गया था।

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