MGCU विश्वविद्यालय के वीसी संजीव शर्मा की नियुक्ति में सामने आया गड़बड़झाला, शोध छात्रा ने भी लगाया था उत्पीड़न का आरोप
MGCU विश्वविद्यालय के वीसी संजीव शर्मा का विवादों से रहा है पुराना नाता, कई तरह की गड़बड़ियों के लग चुके हैं आरोप (file photo)
आरोप है कि वीसी संजीव शर्मा ने महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय में कुलपति पद पाने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार (MHRD) को दिए हुए आवेदन में लंबित विजिलेंस जाँच का तथ्य छुपाया और अपने पद का दुरुपयोग कर विश्वविद्यालय में बरती थीं कई कई अनियमितताएं...
जनज्वार। बिहार के मोतिहारी स्थित महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय आये दिन विवादों में छाया रहता है। पिछले साल एक प्रोफेसर की लींचिंग में विश्वविद्यालय मैनेजमेंट की संलिप्तता सामने आयी थी तो उसके बाद एक महिला प्रोफेसर को मातृत्व अवकाश के बदले उनकी नौकरी से बेदखल करने का मामला सामने आया था। अब विश्वविद्यालय के कुलपति संजीव शर्मा एक बाद फिर चर्चा में हैं। चर्चा का कारण है उनकी नियुक्ति में गड़बड़ी का मामला सामने आना।
आरोप लग रहे हैं कि संजीव शर्मा की नियुक्ति के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) के सामने पेश किए गए दस्तावेजों में उनके खिलाफ लंबित विजिलेंस जांच को छिपाया गया था। इस संबंध में एमएचआरडी के सचिव अमित खरे को बीते 27 जनवरी को शिक्षक संघ की तरफ से पत्र लिखकर शिकायत करायी गयी है। आरटीआई एक्टिविस्ट आलोक राज ने पत्र लिखकर एमएचआरडी के सचिव अमित खरे के माध्यम से यह शिकायत दर्ज करवाई है।
महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के वीसी प्रो. संजीव कुमार शर्मा के विजिलेंस क्लीयरेंस का दस्तावेज़
इस मसले पर शिक्षक संघ के पदाधिकारी कहते हैं, महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी में इस तरह के तथ्य छुपाने के मामले पहले भी सामने आते रहे हैं। यहां के पहले कुलपति प्रो अरविंद अग्रवाल के जर्मनी से किए पीएचडी के चर्चे शैक्षणिक जगत में एक कलंक की तरह है। इसी तर्ज पर अब वर्तमान कुलपति प्रो संजीव शर्मा पर भी कई गंभीर आरोप लग चुके हैं।
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जो आरोप वीसी संजीव शर्मा पर लग रहे हैं, उन पर पूर्व विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश राजभवन, एमएचआरडी भारत सरकार ने संज्ञान लेना शुरू कर दिया है। संजीव शर्मा पर आरोप है कि उन्होंने महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय में कुलपति पद पाने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार (MHRD) को दिए हुए आवेदन में लंबित विजिलेंस जाँच का तथ्य छुपाया और अपने पद का दुरुपयोग कर विश्वविद्यालय में कई अनियमितताएं की थीं।
गौरतलब है कि वीसी पर लगे इस आरोप के जांच के लिए आवेदन पत्र राष्ट्रपति को भी लिखा जा चुका है। शिक्षक संघ से जुड़े पदाधिकारियों का कहना है, नियमतः किसी विश्वविद्यालय के कुलपति पद के अंतिम दौर में पहुंचे अभ्यर्थियों से कुलपति चयन समिति विजिलेंस क्लियरेंस की मांग उनसे सम्बंधित संस्थानों से करती है। अगर किसी अभ्यर्थी का विजिलेंस क्लीरेंस नहीं रहता है तो उनको कुलपति पद के लिए अयोग्य माना जाता है, जैसा की 2015 में महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्विद्यालय के प्रथम कुलपति के चयन में अंतिम दौर में पहुंचे उम्मीदवार प्रोफेसर जीडी शर्मा के आवेदन को MHRD द्वारा निरस्त कर दिया गया था।
MHRD से RTI द्वारा प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक प्रोफेसर संजीव शर्मा ने अपने मूल विश्वविद्यालय यानी चौधरी चरण सिंह विश्विद्यालय के भ्रष्ट अधिकारियों जैसे रजिस्ट्रार की मदद से उनके ऊपर गलत तरीके से रीडर से प्रोफेसर बनने और अन्य कई मामलों में विजिलेंस जांच जो अभी भी लंबित है, उस तथ्य को छुपा दिया और गलत तरीके से महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्विद्यालय मोतिहारी में कुलपति का पद हासिल किया।
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विश्वविद्यालय शिक्षक संघ से जुड़े शिक्षकों ने जनज्वार से हुई बातचीत में कहा, इससे पहले भी प्रोफेसर शर्मा के ऊपर उनकी नियुक्ति और रीडर से प्रोफेसर पद की पदोन्नति को यूजीसी ने अवैध पाया था। उनकी पदोन्नति पर रोक लगायी गयी थी, मगर यूजीसी के उस पत्र के आदेश को छुपाकर प्रोफेसर शर्मा ने राजभवन, उत्तर प्रदेश को भेजे प्रतिवेदन और इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर रिट याचिका में यूजीसी के गोपनीय पत्र को न ही सिर्फ छुपा लिया, बल्कि उसको विश्वविद्यालय से गायब करा दिया। इसके बाद कई शिकायतें की गयीं, तब राजभवन, उत्तर प्रदेश ने इस मामले की जाँच में प्रोफेसर शर्मा को तथ्य छुपाकर गुमराह करने का आरोपी पाया और इनके प्रतिवेदन को निरस्त कर मामले में जाँच की आदेश दिया था।
संजीव शर्मा से बचाने के लिए शोध छात्रा ने लगायी थी मीडिया से गुहार
यह मामला मीडिया की सुर्खियां भी बना था। MHRD को महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति के लिए दिए गए आवेदन में प्रोफेसर शर्मा ने रीडर से प्रोफेसर पद की पदोन्नति की तिथि 22 दिसम्बर 2007 लिखी है, जबकि यूजीसी द्वारा मेरठ विश्वविद्यालय को भेजे गए पत्र में साफ शब्दों में लिखा है कि 21 दिसंबर 2007 को प्रोफेसर शर्मा प्रोफेसर के लिए न्यूनतम योग्यता नहीं रखते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि जब वो योग्य ही नहीं थे तो फिर 22 दिसंबर 2007 को आखिर वह रीडर कैसे बन गये।
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इसके पूर्व एक आरोप लगाते हुए चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के पूर्व कुलपति प्रोफेसर रमेश चंद्रा ने राज्यपाल के सचिव को 2002 में एक पत्र लिखा था। पत्र में प्रोफेसर संजीव शर्मा पर की गयी अनुशासनात्मक कार्रवाई से लेकर अनेक तरह के घोटालों और अनियमितताओं का उल्लेख कर कार्रवाई करने का जिक्र किया गया था।
प्रोफेसर संजीव शर्मा पर न केवल नियुक्ति और पदोन्नति के मामले में केस लंबित हैं, बल्कि एक शोध छात्रा आभा सिंह के उत्पीड़न का भी आरोप है। आभा सिंह ने अपनी शिकायत कुलपति चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ और श्री जीबी पटनायक प्रमुख सचिव महामहिम कुलाधिपति राजभवन लखनऊ में दर्ज कराई कराई थी। यह मामला भी मीडिया की सुर्खियों में आया था, मगर ये भी अभी तक लंबित है।
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आभा सिंह ने आरोप लगाया था कि प्रोफेसर संजीव शर्मा ने उनके शोध की रिपोर्ट को ज़ल्दी मंगाने के लिए उनसे खास प्रकार की सहयोग की मांग की थी। आभा सिंह के मुताबिक प्रोफेसर शर्मा शराब के नशे उन्हें कॉल करके अश्लील बातें करते थे।
शोध छात्रा ने लगाये थे वीसी संजीव शर्मा पर उत्पीड़न के आरोप
महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी के शिक्षक संघ की मांग है कि यह एक नया विश्वविद्यालय है, इस परिस्थिति में ऐसे दुष्चरित्र और भ्रष्टाचारी व्यक्ति का कुलपति पद पर रहना विश्विद्यालय की भ्रूण हत्या करने जैसा है, उन्हें तत्काल पद से हटाया जाये।