शहरों से लौट रहे मजदूरों को भुखमरी से बचा सकता है मनरेगा, लेकिन पेमेंट समय पर होने लगे तब
रोजगार की तलाश में गए मजदूर देश के कई भागों में फंसे हुए हैं, जिनमें से कई लोगों ने अपनी जान इसलिए गवां दी क्योंकि उनके पास खाने के पैसे नहीं थे, यह किसी से छिपा नहीं है...
विशद कुमार की रिपोर्ट
जनज्वार। विगत 22 मार्च से 03 मई 2020 तक संपूर्ण देश में कोरोना संक्रमण (COVID 19) के कारण पूर्ण तालाबंदी की गई, जिसे बढ़ाकर 17 मई तक कर दिया गया है। कहना ना होगा कि इस लॉकडाउन का सबसे ज्यादा बुरा प्रभाव समाज के निचली कतार के लोगों पर पड़ा है। जिसे आए दिन खबरों की सुर्खियों में देखा जा सकता है।
रोजगार की तलाश में गए मजदूर देश के कई भागों में फंसे हुए हैं, जिनमें से कई लोगों ने अपनी जान इसलिए गवां दी क्योंकि उनके पास खाने के पैसे नहीं थे, यह किसी से छिपा नहीं है। एक अदृश्य भय ने इन मजदूरों को हजारों की तादाद में अपने अपने गृह राज्य जाने के लिए पैदल ही निकलने पर विवश कर दिया। मुंबई के बांद्रा स्टेशन पर अचानक उमड़ी भीड़ भी इसी भय की हिस्सा थी।
संबंधित खबर : मोदी सरकार ने मनरेगा मजदूरों की 800 करोड़ बकाया मजदूरी में से चुकाए मात्र 171 करोड़
अब केंद्र सरकार के पहल पर अन्य राज्यों में फंसे राज्य के मजदूरों को लाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। पहली खेप में 1250 अप्रवासी मजदूर झारखंड लाए गए हैं।
अब सवाल उठता है कि अपने घर आकर ये लोग अपने परिवार की अजीविका कैसे चलाएंगें? जब तक कोरोना संकट बरकरार है, सरकारी स्तर से रोजगार के अलावा शायद ही किसी तरह के निजी स्तर का किसी रोजगार की गुंजाइश बन पाए।
सरकारी स्तर से रोजगार की बात करें तो मनरेगा ही एक ऐसी योजना बची है जिसमें इन मजदूरों व उनके परिवार वालों के पेट भरने की गुंजाइश दिखती है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार राज्य में 29.19 लाख श्रमिक मनरेगा में पंजीकृत हैं, 9 लाख से अधिक अप्रवासी मजदूरों का रोजगार खत्म होने के कारण देश के विभिन्न राज्यों से झारखण्ड वापस आ रहे हैं। इसके अतिरिक्त भी मजदूर परिवारों की एक बड़ी संख्या है जो इन दोनों आंकड़ों से बाहर हैं। कुल मिलाकर इस वक्त लगभग 40 लाख मजदूर हैं जिनके पास
एकमात्र विकल्प है कि वे मनरेगा योजनाओं में कार्य कर अपने परिवार का पालन पोषण कर सकें। यह मौका भी उनके पास मानसून के पहले तक अर्थात् 15 जून तक ही है।
राष्ट्रीय स्तर की बात करें तो देश के 35 राज्यों व केंद्र शासित राज्यों में मनरेगा के तहत पंजीकृत परिवारों की कुल संख्या 13 करोड़ 68 लाख है। जिसमें 26 करोड़ 65 लाख मजदूर शामिल हैं। मतलब कि मनरेगा के तहत पंजीकृत परिवारों में हर परिवार से दो—तीन लोग शामिल हैं। लेकिन सरकारी परिभाषा के हिसाब से कुल 7.61 करोड़ परिवार ही ऐसे हैं जो विगत 3 वर्षों के दौरान किसी मनरेगा योजना में कार्य किए है। जिन्हें मनरेगा में 'एक्टिव जॉब कार्ड धारक' कहा जाता है। ऐसे कुल श्रमिकों की संख्या 11.7 करोड़ है। एक्टिव मजदूरों में 19 फीसदी दलित तथा 16.3 फीसदी आदिवासी हैं।
'एक्टिव जॉब कार्ड धारक' का फंडा यह है कि जिन मजदूरों का विगत 3 वर्षों के दौरान मनरेगा के मास्टर रोल (मजदूरों के कायों का लेखा—जोखा) में नाम नहीं है उन्हें एक्टिव जॉब कार्ड धारक नहीं माना जाता है। चाहे इस बीच सरकारी स्तर से भी मनरेगा का काम उन्हें नहीं दिया गया हो।
संबंधित खबर : मनरेगा मजदूरों से करायी जाए हरियाणा, पंजाब में गेहूं की कटाई- गुलाम नबी आजाद
'झारखण्ड नरेगा वाच' के संयोजक जेम्स हेरेंज बताते हैं कि 'झारखण्ड नरेगा वाच' ने संयुक्त सचिव, ग्रामीण विकास मंत्रालय (भारत सरकार), मुख्य सचिव (झारखण्ड सरकार), प्रधान सचिव, ग्रामीण विकास विभाग (झारखण्ड सरकार) और मनरेगा आयुक्त, रांची (झारखण्ड सरकार) को एक पत्र भेजकर राज्य में युद्ध स्तर पर मनरेगा योजनाएं प्रारंभ करने, साप्ताहिक मजदूरी भुगतान सुनिश्चित करने तथा तकनीकी जटिलताओं को सरल करने सहित अन्य मजदूर पक्षीय प्रशासनिक पहल सुनिश्चित करने की मांग की है।