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यूपी के इटावा में मनरेगा मजदूरों ने धांधली का किया विरोध तो गुंडों गोली चलाकर मचाया तांडव
लॉकडाउन के बीच ग्रामीण मजदूरों और महानगरों से वापस आए प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने के लिए सरकार के पास मनरेगा के अलावा कोई योजना नहीं है। मनरेगा में पूरे उत्तर प्रदेश के अंदर सभी ग्राम पंचायतों में काम तो शुरू किया गया लेकिन भ्रष्टाचार और फर्जी हाजिरी को लेकर बवाल मचना शुरू हो गया है...
मुश्ताक अली अंसारी की रिपोर्ट
जनज्वार ब्यूरो। उत्तर प्रदेश के इटावा के नगला बेनी गांव में मनरेगा कार्यस्थल पर मजदूरों द्वारा धांधली का विरोध करने पर बदमाशों की में फायरिंग में 7 लोगों के घायल होने की खबर है। इस मामले में पुलिस की ओर से अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है। लॉकडाउन के बाद ग्रामीण मजदूरों और महानगरों से वापस आए प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने के लिए सरकार के पास मनरेगा के अलावा कोई योजना नहीं है। मनरेगा में पूरे उत्तर प्रदेश के अंदर सभी ग्राम पंचायतों में काम तो शुरू किया गया लेकिन भ्रष्टाचार और फर्जी हाजिरी को लेकर बवाल मचना शुरू हो गया है।
पूरे प्रदेश में लूट का आलम यह है कि ग्राम प्रधान से लेकर जिले में बैठे उपायुक्त मनरेगा तक सभी का अपना कमीशन तय है और इसी कमीशनबाजी के चलते प्रधान और पंचायत सेक्रेट्री गैरमजदूर जॉब कार्डधारकों के नाम मनरेगा की धनराशि स्थानांतरित करवाकर उसकी बंदरबांट प्रधान, सेक्रेटरी, तकनीकी सहायक, खंड विकास अधिकारी, जूनियर इंजीनियर में होती है।
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यहां तक कि जिलों में मनरेगा के उपायुक्तों का 10 से 30% तक कमीशन फिक्स है। गांव के मजदूर जब देखते हैं कि अमुक अमुक व्यक्तियों के नाम बिना काम किए पैसा निकल रहा है जबकि वह काम करके पैसा प्राप्त करते हैं। गांव के अंदर दर्जनों ऐसे लोग होते हैं जो बिना काम किए ही बैंकों में जाकर मनरेगा का पैसा निकाल रहे हैं, जिससे मजदूरों के अंदर एक स्वभाविक बौखलाहट होती है कि कुछ लोग काम करके पैसा पा रहे हैं तो कुछ लोग बिना काम किए ही पैसा बटोर रहे हैं और जो बिना काम किए गैरमजरूवा जॉब कार्डधारक जिन्हें कहा जाता है वह जो काम नहीं करते हैं।
गैर मजदूर जॉबकार्ड धारक के खाते में पैसा कैसे पहुंचता है उनके खाते में पैसा बचाने के लिए प्रधान द्वारा तकनीकी सहायक से फर्जी मापन दर्ज कराई जाती है। जो तालाब वास्तव में 1 मीटर गहरा है उसकी गहराई 3 मीटर दिखाई जाती है। जो चकरोड 1 फुट ऊंचा है उसे तीन फुट ऊँचा दिखाया जाता है। नतीज़तन मनरेगा गांव के अंदर रोजगार की गारंटी कम भ्रष्टाचार और सरकारी धन की लूट की गारंटी ज्यादा बन गई है।
समय रहते सरकार ने मनरेगा के पर्यवेक्षण को मजबूत नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं जब मनरेगा की बंदरबांट के लिए इटावा की तरह जिले जिलों में गांव में बंदूकें धांय धांय कर रही होंगी क्योंकि सरकार के पास गांव के लोगों के लिये आमदनी का कोई स्रोत नहीं है और मनरेगा उनके लिए एक मात्र साधन है जिसमे कहीं कोई प्रधान मजदूरों के ऊपर फर्जी पैसा निकालने के लिए दबाव बना रहा है, तो कहीं कोई खण्ड विकास अधिकारी अपने 10 पर्सेंट कमीशन के लिए प्रधान पर दबाव बना रहा है तो कहीं कोई प्रधान तकनीकी सहायक के ऊपर फर्जी एमबी (मापन) करने के लिए दबाव बना रहा होगा।
भ्रष्टाचार और लूट के चलते मनरेगा आज असहाय योजना में तब्दील हो गई है। खंड विकास अधिकारी दोनों हाथों से मनरेगा को लूटने में लगे हुए हैं। उन्हें गांव के विकास और मजदूरों के रोजगार की की कोई फिक्र नहीं है। वह सिर्फ अपनी जेब भरने में लगे हैं और अकूत संपत्ति बनाने में जुटे हुए हैं।
मनरेगा में कैसे होता है भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार करने के लिए सबसे पहले फर्जी एस्टीमेट तकनीकी सहायक के माध्यम से तैयार किया जाता है जो काम मौके एक फिट ऊंचा है लेकिन तकनीकी सहायक अपने पराक्रम से उसे पड़ोस के खेत के समतल दिखाता है जिससे उसे तुरंत एकफिट मिट्टी ऊंचाई का लाभांश एस्टीमेट बनाते ही मिलता है। 1 फिट ऊंचाई का काम कराने के बाद जो एमबी करता है। एस्टिमेट की गड़बड़ी के बाद 1 फुट ऊंचाई के काम को 2 फिट मापन में आसानी से दर्ज कर देता है।
यहीं से पंचायत प्रधान सचिव को दोगुना धन निकालने का मौका मिलता है और वो अपने करीबी मजदूरों के नाम फर्जी मस्टर रोल भरकर ब्लॉक में कार्यक्रम अधिकारी बीडीओ कार्यलय में जमा करता है। वहां एपीओ मनरेगा और कम्प्यूटर ऑपरेटर व मनरेगा लिपिक द्वारा मनरेगा वेबसाइट पर दर्ज करा कराने के बाद बीडीओ द्वारा डिजिटल सिग्नेचर करके धनराशि काम करने वाले और बिना काम करने वाले सभी जॉबकार्ड धारकों के बैंक खाते में पीएफएमएस यानी पब्लिक फंड ट्रांसफर सिस्टम से भेज को देता है।
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चूंकि पर्यवेक्षण खंड विकास अधिकारी को करना होता है। वह अपने पर्यवेक्षणीय के अधिकार के बदले 10 परसेंट कमीशन लेते हैं। यही हाल जिले के भी अधिकारियों का रहता है जिस कारण फर्जी एस्टिमेट और फर्जी एमबी के सहारे ही फर्जी मस्टरोल भरकर उनकी फर्जी पेमेंट ट्रांसफर आर्डर बनाकर मजदूरों/जबकार्ड धारकों के खाते में धनराशि दी जाती है।
जहां से अपने खाते से पैसा निकालने के लिए ग्राम प्रधान के घर बैंक मित्र आता है। प्रधान के घर मजदूर एकत्र होते हैं। वहीं सब बैंक मित्र यानी बैंकों के स्थानीय करेस्पांडेंट एक फिंगर मशीन के माध्यम से आधार बेस्ड पेमेंट करते हैं और बिना काम किए मजदूरों वाला धन प्रधान के सुपुर्द कर देते हैं और बिना काम वाले जॉबकार्ड धारकों मजदूरों को 10 परसेंट देकर सन्तुष्ट कर देते हैं। बाकी बचे धन से तकनीकी सहायक व खण्ड विकास अधिकारी को देते हैं। इस प्रकार महात्मा गांधी के नाम पर चल रही यह योजना संगठित भृष्टाचार का शिकार हो गई है।