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विमर्श

मोदी सरकार संसाधनों का इस्तेमाल पूंजीपतियों की मुनाफाखोरी के लिए कर बिठा रही अर्थव्यवस्था का भट्ठा

Prema Negi
16 Feb 2020 8:27 AM GMT
मोदी सरकार संसाधनों का इस्तेमाल पूंजीपतियों की मुनाफाखोरी के लिए कर बिठा रही अर्थव्यवस्था का भट्ठा
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मोदी सरकार की अ​र्थव्यवस्था मजबूत करने के दावे शेखचिल्ली के किस्सों जैसे कैसे हैं बता रहे हैं स्वतंत्र पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता मुनीष कुमार

जनज्वार। देश की जनता को जो चीज सबसे ज्यादा प्रभावित कर रही है, वह है भारत की अर्थव्यवस्था। परन्तु देश में जनता के बीच इस पर ही सबसे कम चर्चा हो रही है। भारत में अर्थव्यवस्था के क्षेत्र से जो संकेत मिल रहे हैं वे बेहद खराब है। मोदी सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था में वर्तमान वित्तीय वर्ष 2019-20 में 5 प्रतिशत की विकास दर/वृद्धि दर का दावा किया है। परन्तु जो रुझान मिल रहे हैं, वे चीख-चीखकर कह रहे हैं कि देश की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर पिछले वर्ष के मुकाबले 5 प्रतिशत नहीं बल्कि घट रही है, नकारात्मक है।

जीएसटी संग्रह में भारी कमी

देश के जीएसटी संग्रह में अप्रैल, 2019 से जनवरी 2020 के दौरान 12.9 प्रतिशत की भारी कमी दर्ज की गयी है। पिछले वर्ष अप्रैल 2018 से जनवरी 2019 की अवधि के दौरान सरकार के खजाने में 11.7 लाख करोड़ रुपये जीएसटी के जमा हुए थे, जिसमें अप्रैल 2019 से जनवरी 2020 के दौरान 1.5 लाख करोड़ की कमी दर्ज की गयी। इस तरह जीएसटी कर संग्रह घटकर 10.2 लाख करोड़ रुपये ही रह गया है।

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जीएसटी कर संग्रह में कमी आना अर्थव्यवस्था की दर बढ़ने की जगह घटने का परिचायक है। जीएसटी संग्रह इस बात को बता रहा है कि अर्थव्यवस्था की 5 प्रतिशत वृद्धि दर का दावा झूठा है।

औद्योगिक उत्पादन में भी गिरावट

द्योगों को अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना गया है। नवम्बर 2019 को छोड़कर पिछले 6 माह से देश के औद्यौगिक उत्पादन में गिरावट का दौर जारी है। नवम्बर, 2018 में औद्यौगिक उत्पादन में 2.5 की वृद्धि दर दर्ज की गयी थी। पिछले साल दिसम्बर में देश के औद्योगिक उत्पादन में बढ़ोत्तरी होने की जगह 0.3 प्रतिशत की कमी दर्ज की गयी है। अगस्त में 1.1 प्रतिशत, सितम्बर में 4.3 प्रतिशत और अक्टूबर में ये गिरावट 3.8 प्रतिशत की दर्ज की गयी है। देश की अर्थव्यव्यवस्था यदि मामूली 5 प्रतिशत की दर से भी बढ़ रही है तो इसके साक्षेप औद्यौगिक उत्पादन में भी बढ़ोत्तरी होनी चाहिए।

महंगाई चरम पर

देश में इस समय महंगाई चरम पर है। जनवरी 2020 में ‘उपभोक्ता मूल्य सूचकांक’ पिछले 68 माह के उच्च स्तर, 7.59 प्रतिशत पर पहुंच गया है। पिछले वर्ष जनवरी 2019 में इस ‘उपभोक्ता मूल्य सूचकांक’ में वृद्धि दर 2 प्रतिशत से भी कम 1.97 प्रतिशत थी। खाद्य सामग्री की दरों में ये वृद्धि और भी ज्यादा 13.63 प्रतिशत की दर्ज की गयी है, जिसका मतलब है कि जनवरी 2019 में खाद्य सामग्री खरीदने में यदि किसी व्यक्ति ने 100 रुपये खर्च किए हैं तो उसे उतनी ही सामग्री जनवरी 2020 में खरीदने के लिए 113.63 रुपये खर्च करने पड़े होंगे।

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ब्जियों में ये वृद्वि दर 50.19 प्रतिशत, दूध, अंडे व मछली आदि में 10 प्रतिशत, हाउसिंग व हेल्थ में 4.2 प्रतिशत व शिक्षा के क्षेत्र में 3.93 प्रतिशत दर्ज की गयी है, जिसके कारण लोग अपनी राजमर्रा की जरुरतों में भी कटौती करने को मजबूर हुए हैं।

अर्थव्यवस्था में सुधार के सरकारी नुस्खे फेल

सरकार 2025 तक भारत को 5 खरब डालर वाली दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था बनाने की जल्दी में है, परन्तु अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के सारे सरकारी नुस्खे फेल होते दिखाई दे रहे हैं।

का मानना है कि यदि देश की अर्थव्यवस्था में पूंजी निवेश बढ़ेगा तो देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। इसके लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश व विदेशी पोर्टफोलियो निवेश को और अधिक बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है, परन्तु सरकार की ये बातें शेख चिल्ली के किस्सों जैसी ही साबित हो रही हैं।

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भारत में विदेशी पूंजी निवेश बढ़ाने के लिए सरकार ने लाल फीताशाही को लगभग समाप्त कर, श्रम कानूनों में बदलाव का रास्ता अख्तियार किया है, जिसके तहत पूंजीपतियों को ‘रखो और निकालों की नीति’ की नीति के तहत श्रमिकों के साथ मनमानी करने की खुली छूट दी जा रही है। आटोमेशन के इस दौर में श्रमिकों के काम के घंटे बढ़ाए जा रहे हैं।

रकार की इन नीतियों के कारण बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के डेपुटी मैनेजिंग डायरेक्टर डेविड लिप्टन के अनुसार भारत में आटोमाइजेशन की वजह से 9 प्रतिशत श्रमिकों के रोजगार खत्म हो गये हैं।

रोजगार के अवसरों व जनता की क्रय शक्ति में लगातार ह्रास होने के कारण देश का औद्योगिक उत्पादन घट रहा है, जिसके कारण जीएसटी संग्रह पर भी नकारात्मक असर पड़ा है।

उत्पादन जनता की जरूरतों को पूरा करने के लिए होना चाहिए

देश में पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के अंतर्विरोध स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। देश की जनता अभाव में है परन्तु उद्योग जनता की जरूरतों के लिए उत्पादन करने की जगह अपनी क्षमता से कम उत्पादन कर रहे हैं। देश के बाजार विदेशी मालों से पटने लगे हैं। सरकार की तमाम कोशिशों के बाद भी भारत में आयात निर्यात के मुकाबले लगातार बढ़ रहा है, जो कि देश की अर्थव्यवस्था के लिए ‘स्लो पोइजन’ का काम कर रहा है।

तरफ देश में करोड़ों लोग हैं, जिनके पास न पेटभर भोजन है और न ही आवास, कपड़ा, स्वास्थ्य व शिक्षा उन्हें ठीक से उपलब्ध है। दूसरी तरफ देश में इनकी पूर्ति के लिए पर्याप्त संसाधन भी उपलब्ध हैं। परन्तु देश में मौजूद संसाधनों का इस्तेमाल जनता की जरूरतों को पूरा करने के लिए नहीं, बल्कि पूंजीपतियों की मुनाफाखोरी के लिए किया जा रहा है।

देश की अर्थव्यवस्था के केन्द्र में आम आदमी कहीं नहीं है। और जब तक देश में आम आदमी की जरूरतों को केन्द्र में रखकर उत्पादन नहीं किया जाएगा, देश की अर्थव्यवस्था इसी तरह से हिचखौले खाती रहेगी।

(मुनीष कुमार समाजवादी लोक मंच के संयोजक हैं।)

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