मुसलमानों के खिलाफ नफरत बोने वाली योगी सरकार का माफिया अतीक अहमद से याराना
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योगी सरकार भाजपा प्रत्याशियों की परोक्ष मदद के लिए अतीक अहमद को लाया जा रहा है नैनी जेल, फूलपुर संसदीय सीट से चुनाव लड़ रही हैं अतीक की पत्नी और यहां से अल्पसंख्यक वोटों में सेंध लगा पहुंचायेंगे सपा—बसपा के महागठबंधन को नुकसान...
वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट
एक ओर उत्तर प्रदेश के देवरिया जेल में बंद पूर्व सासंद एवं बाहुबली अतीक अहमद द्वारा एक कारोबारी को अपहृत कर जेल में लाने और संपत्ति ट्रांसफर करने के मामले में राज्य सरकार ने उच्चतम न्यायालय में रिपोर्ट दाखिल कर माना है कि कारोबारी को जेल में बुलाकर प्रताड़ित किया गया था, वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश सरकार माफिया अतीक अहमद को स्वास्थ्य कारणों से गुपचुल नैनी जेल स्थानांतरित करने की तैयारी कर रही है।
इसके लिए चुनाव आयोग से अनुमति मांगी गई है। दरअसल राजनीतिक हलकों में माना जाता है कि अतीक के सत्तारूढ़ पार्टी में कुछ वरिष्ठ नेताओं विशेषकर प्रदेश के एक कद्दावर मंत्री से बहुत घनिष्ठ सम्बंध हैं। यहाँ माना जा रहा है कि इलाहाबाद संसदीय, फूलपुर संसदीय और कौशाम्बी संसदीय क्षेत्रों में भाजपा प्रत्याशियों की परोक्ष मदद के लिए अतीक को यहाँ नैनी जेल लाया जा रहा है, ताकि अतीक स्वयं या अपनी पत्नी को फूलपुर संसदीय से उतार कर अल्पसंख्यक वोटों में सेंध लगा सकें और सपा बसपा के महागठबंधन को नुकसान पहुंचा सकें। यदि अटक यहाँ से चुनाव लड़ते हैं, तो तीनों सीटों पर म्हाग्थब्न्धं के वोटों में सेंध लग सकती है।
बरेली जेल में बंद बाहुबली अतीक अहमद पिछले दिनों देवरिया जेल में अपहरण और मारपीट के एक मामले में देवरिया जेल से बरेली जिला जेल में शिफ्ट किया गया था। इसके अलावा भी कई अन्य मामलों में उनका नाम प्रमुखता से आता रहा है। अतीक अपनी जान को खतरा बताते रहे हैं। अब उन्हें बरेली जेल से भी हटाने की तैयारी हो रही है।
फिलहाल चुनाव आयोग की अनुमति की प्रतीक्षा की जा रही है, जिसके बाद उन्हें नैनी जेल शिफ्ट कर दिया जाएगा। एडीजी जेल ने चंद्र प्रकाश ने इसकी पुष्टि की। अतीक की पत्नी ने स्वास्थ्य के आधार पर अतीक शासन को पत्र लिखा था। उसी पर निर्णय लिया गया है।
राज्य सरकार द्वारा उच्चतम न्यायालय में दाखिल रिपोर्ट में माना है कि एक कारोबारी को जेल में बुलाकर प्रताड़ित किया गया था। सीसीटीवी कैमरों से की गई छेड़छाड़ सरकार ने अपने जवाब में यह भी कहा है कि प्रोपर्टी डीलर मोहित जायसवाल को जब जेल में लेकर आया गया तब जेल के सीसीटीवी कैमरों से छेड़छाड़ की गई थी। जेल में अतीक अहमद के साथ-साथ उनके साथियों को सुविधा दी गई थी।
सरकार ने रिपोर्ट में बताया है कि इस संबंध में जेल अधीक्षक समेत 4 अफसरों के खिलाफ विभागीय जांच शुरू की गई है, जबकि निचले स्तर के 3 सुरक्षाकर्मियों को निलंबित किया गया है। इस घटना के बाद अतीक को देवरिया से बरेली जेल भेज दिया गया है। रिपोर्ट के अनुसार इस मामले में पुलिस ने केस दर्ज किया है, लेकिन अभी तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है।
अतीक अहमद के खिलाफ लंबित मामले
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने उच्चतम न्यायालय को यह भी जानकारी दी है कि अतीक अहमद के खिलाफ़ वर्ष1979 से 2019 तक 109 आपराधिक केस लंबित हैं। इनमें 17 केस हत्या के हैं। अतीक अहमद के खिलाफ 8 केस वर्ष 2015 से 2019 में दर्ज किए गए जिनमें अभी जांच चल रही है। इन केसों में 2 केस हत्या के हैं।
अतीक अहमद वर्ष 1989 से 2004 तक विधायक और वर्ष 2004 से 2009 तक सांसद रह चुके हैं। गौरतलब है कि 8 जनवरी को इस जानकारी को उच्चतम न्यायालय ने गंभीरता से लिया था। जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस एस. के कौल की पीठ ने राज्य सरकार से दो हफ्ते में रिपोर्ट मांगी थी।
दरअसल पूर्व व वर्तमान विधायकों/सासंदों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों से निपटने के लिए स्पेशल कोर्ट के गठन की सुनवाई में एमिक्स क्यूरी विजय हंसारिया ने पीठ को इस घटना की जानकारी दी थी। उन्होंने पीठ को बताया था कि अतीक अहमद पर 22 आपराधिक मामले लंबित हैं और 28 दिसंबर 2018 को उन्होंने कारोबारी को अगवा कर जेल में लाने जैसा अपराध किया है। इस पर पीठ ने नाराजगी जताते हुए यूपी सरकार से इस पर 2 हफ्ते में रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था।
दोषी राजनेताओं के चुनाव लड़ने पर आजीवन पाबंदी की मांग
दरअसल वकील और दिल्ली भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर एक याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने ये आदेश जारी किए थे।याचिका में दोषी राजनेताओं पर आजीवन चुनाव लडने पर पाबंदी की मांग की गई है। इसके लिए उन्होंने जनप्रतिनिधि अधिनियम के प्रावधानों को असंवैधानिक बताते हुए चुनौती दी है, जो कि दोषी राजनेताओं को जेल की अवधि के बाद 6 साल की अवधि के लिए चुनाव लड़ने से अयोग्य करार देता है।
इस मामले की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल एक नवंबर 2017 को फास्ट ट्रैक न्यायालयों की तर्ज पर नेताओं के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों के निपटारे के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना के लिए केंद्र को जरूरी निर्देश दिया था।
राजनीति में आकर भी माफिया वाली छवि नहीं बदली
देश की राजनीति में कई ऐसे नेता हैं, जिन्होंने जुर्म की दुनिया से निकलकर राजनीति की गलियों में कदम रखा। वे राजनीति में आकर भी अपनी माफिया वाली छवि से बाहर नहीं निकल पाए। उनके कारनामों ने हमेशा उन लोगों को सुर्खियों में बनाए रखा। यूपी की राजनीति का एक ऐसा ही नाम है अतीक अहमद।
अतीक अहमद का जन्म 10 अगस्त 1962 को हुआ था। मूलत: वह उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जनपद के रहने वाले हैं। पढ़ाई लिखाई में उनकी कोई खास रूचि नहीं थी। इसलिये उन्होंने हाईस्कूल में फेल हो जाने के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी। कई माफियाओं की तरह ही अतीक अहमद ने भी जुर्म की दुनिया से सियासत की दुनिया का रुख किया था। पूर्वांचल और इलाहाबाद में सरकारी ठेकेदारी, खनन, रेलवे स्क्रैप और उगाही के कई मामलों में उनका नाम आया।
अतीक अहमद के खिलाफ 17 साल की उम्र में पहला मामला हत्या का दर्ज हुआ था। उसके बाद अतीक ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। साल दर साल उनके जुर्म की किताब के पन्ने भरते जा रहे थे। वर्ष 1989 में पहली बार इलाहाबाद (पश्चिमी) विधानसभा सीट से विधायक बने अतीक अहमद ने 1991 और 1993 का चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लड़ा और विधायक भी बने। 1996में इसी सीट पर अतीक को समाजवादी पार्टी ने टिकट दिया और वह फिर से विधायक चुने गए।
बसपा विधायक राजू पाल की हत्या का आरोप
2004 के आम चुनाव में फूलपुर से सपा के टिकट पर अतीक अहमद सांसद बन गए थे। इसके बाद इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा सीट खाली हो गई थी। इस सीट पर उपचुनाव हुआ।सपा ने अतीक के छोटे भाई अशरफ को टिकट दिया था, मगर बसपा ने उसके सामने राजू पाल को खड़ा किया। राजू ने अशरफ को हरा दिया।
उपचुनाव में जीत दर्ज कर पहली बार विधायक बने राजू पाल की कुछ महीने बाद 25 जनवरी, 2005 को दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस हत्याकांड में सीधे तौर पर सांसद अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ को आरोपी बनाया गया। यह मुकदमा अभी लंबित है।