'फ्री कश्मीर' पोस्टर लहराने वाली लड़की को मिली अग्रिम जमानत, कोर्ट ने कहा लोकतंत्र की सफलता के लिए बोलने की आजादी जरूरी
जेएनयू हमले के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान फ्री कश्मीर का पोस्टर लहराने वाली छात्रा को कोर्ट से मिली अग्रिम जमानत, कोर्ट ने कहा छात्रा का किसी प्रतिबंधित संगठन से नहीं जुड़ाव, न आपराधिक गतिविधि में शामिल...
जनज्वार। दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में हमले के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान फ्री कश्मीर का पोस्टर लहराने वाली छात्रा को मैसूर कोर्ट ने अग्रिम जमानत दी है। बता दें कि फ्री कश्मीर का पोस्टर लहराने वाली छात्रा नलिनी बालाकुमार और मर्देवैश शिवन्ना के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था।
अदालत ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि इस कथित अपराध के लिए मिलने वाली सज़ा न तो मौत है और न ही आजीवन कारावास। वह एक छात्रा है। इस समय तक ऐसे कोई सबूत नहीं हैं जो यह बता सके कि उसका किसी प्रतिबंधित संगठन से जुड़ाव हो या वह आपराधिक गतिविधि में शामिल हो।
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अदालत ने आगे कहा कि छात्रा ने खुद ही इस बात को स्वीकार किया है कि उसने ही यह प्लेकार्ड लहराया और उसने इस बारे में अपनी सोच को समझाया है। उसकी वजह से जानमाल का कोई नुक़सान नहीं हुआ है। वह जांच में सहयोग दे रही है। यह डर कि वह भाग जाएगी, ऐसा नहीं हो यह सुनिश्चित करने के लिए उस पर अपना पासपोर्ट जमा करने की शर्तें लगाई गई है।
अदालत ने आगे कहा कि बोलने की आजादी किसी मुद्दे के बारे में पूरी और सही सूचना प्राप्त होने के बाद किसी राय पर पहुंचने और उसको प्रकट करने का अधिकार है। यह किसी व्यक्ति को उस स्थिति में भी मदद करता है, अगर उसे किसी मुद्दे पर अपनी राय जाहिर करने के लिए बुलाया जाता है। लोकतंत्र की सफलता के लिए यह जरूरी है। इसलिए जो राय दी गई है वह उसकी अपनी होनी चाहिए।
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अदालत ने आगे कहा कि एक ज़िम्मेदार नागरिक के रूप में खासकर युवा होने व देश का भविष्य होने के कारण उसे अपने इस अधिकार का प्रयोग करने में सावधानी बरतनी चाहिए कि बोलने की आजादी का अधिकार समाज के लिए अच्छा है। क्योंकि कोई यह कह सकता है कि उसे कुछ कहने या करने की आज़ादी है पर उसे पहले इस बात का विश्लेषण करना चाहिए कि ऐसा करना समाज के लिए अच्छा है और उसके अपने अधिकारों के प्रयोग करने से समाज को कोई नुक़सान नहीं होगा। यह खुद पर नियंत्रण लगाने जैसा है जिस पर समाज के हित में आजादी के अधिकारों के प्रयोग के दौरान अमल होना चाहिए।
अदालत ने कहा कि इस मामले में अभियोजन का मामला यह नहीं है कि याचकाकर्ताओं ने नारे लगाए हैं, बल्कि एक प्लेकार्ड लहराया है जिस पर लिखा था फ्री कश्मीर। यह भी याद रखा जाना चाहिए कि यह युवती इस विरोध प्रदर्शन के अग्रिम पंक्ति में नहीं खड़ी थी। वह प्लेकार्ड लिए पीछे खड़ी थी पर उसके प्लेकार्ड पर लिखे शब्द स्पष्ट रूप से पढ़े जा सकते थे। अपने मतों को व्यक्त करते हुए हमें सावधान रहने की जरूरत है खासकर अभी की स्थिति में जहां किसी शब्द की गलत व्याख्या कोई अपने निजी स्वार्थ के लिए कर सकता है और विवाद बढ़ाने और क़ानून और व्यवस्था के लिए समस्या उत्पन्न कर सकता है। नलिनी ने इस घटना के तुरंत बाद जनता और पुलिस से माफी मांग ली थी।
अदालत ने आगे कहा कि कानून का आदर करना सभी नागरिकों का कर्तव्य है और उन्हें कानून और व्यवस्था को बनाए रखने में मदद करनी चाहिए। अगर याचिकाकर्ता देश के निर्माण में सहयोग करना चाहती है तो उसे ज्यादा जिम्मेदार बनना होगा और उसे अपना अनुभव दूसरों के साथ साझा करना चाहिए कि उसे किस तरह की बुरी स्थितियों से गुजरना पड़ा है ताकि दूसरे युवा इस तरह की गलतियां न करें।'
अदालत ने कहा कि देश के युवा गलती के खिलाफ विरोध प्रकट करते हुए यह नहीं भूलें कि उन्हें कानून और कानून को लागू करने वाली एजेंसी का सम्मान करना है। अगर वे सिर्फ़ पांच मिनट के लिए यह कल्पना करें कि क्या होगा अगर पूर्व सूचना से सभी कानून निलंबित कर दिए जाएं और सारे थाने बंद कर दिए जाएं। एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में उन्हें खुद ही कानून और कानून लागू करने वाली एजेंसियों के खिलाफ आदर का भाव जाग जाएगा। कानून और कानून को लागू करने वाली एजेंसियों की इज्जत करना सभी नागरिकों का कर्तव्य है ताकि विरोध के दौरान जान-माल का कोई नुकसान नहीं हो। अगर किसी की जान जाती है तो उसे वापस नहीं किया जा सकता और उस परिवार को बहुत बड़ा नुक़सान होगा जिसे अपने एक सदस्य को गंवाना पड़ेगा।