जयपुर में घोषणाएं खूब हुईं, लेकिन सफाईकर्मियों को न कोरोना सुरक्षा किट मिला न हजार रुपए भत्ता
राजस्थान सरकार ने कोरोना महामारी में सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिहाज से सफाई कार्यों में लगे हुए सफाई कर्मचारियों, जमादारों एवं स्वास्थ्य निरीक्षकों को मास्क, दस्ताने, साबुन/सैनेटाइजर खरीदने के लिए 1000 रूपये नकद दिए जाएं....
जयपुर से अवधेश पारीक की रिपोर्ट
जनज्वार ब्यूरो। लॉकडाउन का तीसरा चरण खत्म होने तक अब दुनिया भर के स्वास्थ्य विशेषज्ञों सहित देश-विदेश की सरकारों ने भी यह स्वीकार कर लिया है कि कोविड-19 महामारी एक अभूतपूर्व और लंबे समय तक चलने वाला संकट है। कोरोना वायरस जहां देश के आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लोगों खासतौर पर असंगठित क्षेत्र से आजीविका चलाने वाली बड़ी आबादी पर एक त्रासदी बनकर बरसा तो दूसरी तरफ सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली और सरकारी नीतियों की जर्जर हालत को सभी के सामने उजागर किया है।
इसी बीच कोविड-19 के खिलाफ पिछले 2 महीनों से चल रही जंग में हजारों स्वास्थ्य विशेषज्ञ, स्वास्थ्यकर्मी के साथ-साथ सफाईकर्मी भी फ्रंटलाइन योद्धा के तौर पर खड़े हैं। लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों के तमाम दावों के बावजूद सफाई कर्माचारी इस कठिन समय में भी जरूरी सुविधाओं के अभाव से जूझ रहे हैं। जयपुर के मोती डूंगरी जोन में सफाई कर्मचारी के तौर पर कार्यरत 36 वर्षीय अमरीश कुमार (बदला हुआ नाम) कुछ ऐसे ही हालातों को फोन पर साझा करते हैं।
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अमरीश के मुताबिक, कोरोना की इस मुसीबत में हम कहने को तो कोरोना वॉरियर हैं लेकिन साहब इस जंग के मैदान में हम बिना किसी हथियार के उतरने वाले वॉरियर हैं। अपनी बात को तफसील से बताते हुए वे कहते हैं कि लॉकडाउन के बाद हम रोज ड्यूटी पर जाते हैं, सड़कों पर, कॉलोनियों में सफाई करते हैं तो हमें मास्क, दस्ताने, हेड किट की उतनी ही जरूरत है जितनी किसी और को।
कमोबेश कुछ ऐसी ही स्थिति के बारे में एक अन्य सफाईकर्मी रामगोपाल (बदला नाम) बताते हैं जो हवामहल (पूर्व) जोन में पिछले 2 साल से कार्यरत हैं। उनके मुताबिक उन्होंने कभी पीपीई किट करीब से देखा तक नहीं है। जब हमने उनसे पूछा कि आपको निगम की तरफ से मिलने वाली आर्थिक मदद मिली तो उनका जवाब था कि, “क्या सच में ऐसा कोई ऑर्डर आया है क्या साहब, मुझे तो पता ही नहीं है”। आगे वो कहते हैं कि हमने अधिकारियों से काफी बार मास्क और दस्ताने के लिए कहा लेकिन वो कहते हैं कि “आगे से ही नहीं आ रहे, तुम्हे कहां से दें”!
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वहीं सफाई कर्मचारी यूनियन का चुनाव लड़ चुके राकेश मीणा बताते हैं कि कोरोना संकट निगम के कर्मचारी सफाई के अलावा क्वारंटीन सेंटर, सेनेटाइजेशन का छिड़काव और खाना वितरण जैसे अन्य कामों में भी लगे हैं, ऐसे में उनको कोरोना का खतरा ज्यादा रहता है।
मालूम हो कि राजस्थान सरकार के स्वायत्त शासन विभाग ने बीते 1 अप्रैल को यह आदेश जारी किए थे कि कोरोना महामारी में सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिहाज से सफाई कार्यों में लगे हुए सफाई कर्मचारियों, जमादारों एवं स्वास्थ्य निरीक्षकों को मास्क, दस्ताने, साबुन/सैनेटाइजर खरीदने के लिए 1000 रूपये नकद दिए जाएं। इस आदेश में नगर निकायों को अपने कोष से काम करने वाले सभी स्थाई, अस्थाई, ठेके पर काम करने वाले कर्मचारियों को यह राशि देने का कहा गया था।
राकेश आगे जोड़ते हुए कहते हैं कि सरकार की तरफ से सफाई कर्मचारियों को लॉकडाउन के बाद 1000 रूपये की राशि देने के आदेश के बारे में हमें पता चला था लेकिन निगम की तरफ से 1 महीने से ज्यादा समय बाद भी अभी तक काफी कर्मचारी उस राशि का इंतजार कर रहे हैं। हमने अधिकारियों से बात की लेकिन उनका जवाब यही आता है कि करवाते हैं, करवाते हैं।
हमनें शिकायतों और समस्याओं की तस्वीर थोड़ी और साफ करने के लिए निगम के अलग-अलग जोन के कर्मचारियों (पुरुष और महिला दोनों) से बात की जिसमें हवामहल पश्चिम, सांगानेर, मानसरोवर, आमेर, सिविल लाइन, विधाधर नगर जोन शामिल थे, अधिकांश ऐसे कर्मचारी मिले जिनकी सुरक्षा उपकरणों, सहायता राशि और अधिकारियों के रवैये को लेकर कमोबेश वहीं शिकायतें मिली।
निगम के अधिकारी क्या कहते हैं ?
इसके बाद प्रशासन की ओर से हमनें नगर निगम के उपायुक्त (हैल्थ) द्वितीय हर्षित वर्मा से बात की तो उन्होंने बताया कि, निगम की तरफ से हर जोन के कर्मचारियों को लगातार मास्क और दस्ताने दिए गए हैं। शुरूआत में हमने N-95 मास्क दिए थे उसके कुछ समय बाद सभी कर्मचारियों को हमने कपड़े से बने मास्क भी उपलब्ध करवा दिए थे।
वहीं सैनेटाइजर को लेकर उनके मुताबिक, हां बीच में कुछ समय सैनेटाइजर की आपूर्ति हर जगह कम हो गई थी तो कुछ रूकावट हुई थी लेकिन बाद में हम कर्मचारियों की सुरक्षा का पूरा ख्याल रखते हुए उन्हें गंगानगर शुगर मील से बना सैनेटाइजर उपलब्ध करवा रहे हैं।
वहीं सरकार द्वारा दिए जाने वाली 1000 रूपये की राशि पर हर्षित बताते हैं कि, हमने जोन के हिसाब से सभी कर्मचारियों की लिस्ट मंगवाई थी, जिनकी डिटेल हमारे तक पहुंची उनके बैंक खातों में पैसे डाल दिए गए हैं और यह काम लगातार चल रहा है, बाकी के खातों में भी जल्दी पैसे पहुंचा दिए जाएंगे।
अभी तक 7 से ज्यादा निगम कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव
13 मई तक के आंकड़ों के मुताबिक नगर निगम के अब तक करीब 7 कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं, जिनमें एक सिविल डिफेंस सहित सफाई कर्मचारी भी शामिल हैं। वहीं बीते बुधवार को नगर निगम के आमेर जोन कार्यालय में भी दो सफाई कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव मिले थे। इसके अलावा बीते दिनों निगम मुख्यालय पर कार्यरत एक सिविल डिफेंस कर्मचारी के पॉजिटिव पाए जाने पर निगम मुख्यालय को 2 दिन के लिए सीज करना पड़ा था।
कोरोना महामारी के चलते केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से आदेश जारी हैं कि सभी कर्मचारियों के लिए व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) का प्रावधान के अलावा मास्क, हाथ के दस्ताने, एप्रन, जूते, सिर ढंकने के लिए उपकरण के साथ-साथ साबुन/सैनेटाइज़र दिया जाए।
सफाईकर्मियों के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई याचिका
पिछले महीने सामाजिक कार्यकर्ता और दिल्ली सफाई कर्मचारी आयोग के पूर्व अध्यक्ष हरनाम सिंह की ओर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई जिसमें कहा गया कि कोरोना वायरस महामारी के बीच देश में लगे लॉकडाउन के कुछ अपवाद देखने को मिले हैं। सफाई कर्मचारियों को काम करने की छूट है क्योंकि उनकी सेवाएं 'अतिआवश्यक' श्रेणी में आती है।
वहीं याचिका में मांग की गई कि कोर्ट राज्यों और नगरनिगम अधिकारियों और स्थानीय संबंधित सरकारी प्राधिकरणों को आदेश देकर सफाई कर्मचारियों के जीवन का अधिकार सुनिश्चित करें।
इसके साथ ही याचिकाकर्ता ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ओर से जारी गाइडलाइन का भी हवाला दिया जिसके मुताबिक सफाई कर्मचारियों को ड्यूटी के दौरान व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) किट, दस्ताने, जूते, काले चश्मे और मास्क देना शामिल हैं।
कोर्ट में केंद्र सरकार ने 15 अप्रैल को इस याचिका पर जवाब देते हुए कहा कि कोरोनोवायरस महामारी को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी की सभी गाइडलाइन का पालन हो रहा है और उनके दिशानिर्देशों के मुताबिक देशभर में सफाईकर्मियों को आवश्यक सुरक्षात्मक उपरकरण उपलब्ध करवाए जा रहे हैं।
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सफाईकर्मी वायरस के संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील : स्टडी
आंकड़ों के लिहाज से देखें तो भारत में लगभग 50 लाख़ सफाईकर्मी हैं, जिनमें से अधिकांश दलित समुदाय से हैं। इनमें से कई या तो नगर निगम या पंचायतों के लिए कचरा संग्रहण का काम करते हैं (जिन्हें सफाई कर्मचारी कहते हैं) या मल-कीचड़ साफ़ करते हैं जैसे नाली, सेप्टिक टैंक सफाई, उन्हें मैनुअल स्केवेंजर्स या मैला ढोने वाले कहा जाता है।
हाल में हुई न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन की एक स्टडी के मुताबिक, कोरोनावायरस प्लास्टिक और स्टेनलेस स्टील पर 72 घंटे तक और कार्डबोर्ड पर 24 घंटे तक जीवित रह सकता है। डस्टबिन और कूड़ेदानों में किस तरह का कचरा होता है यह कौन जानता है।
आज भी ज्यादातर घरों में कचरा सब कुछ मिलाकर एक बैग में इकट्ठा किया जाता है ऐसे मे अक्सर देखा गया है कि सफाई कर्मचारियों को कचरापात्र में सैनिटरी पैड्स, एक्सपायर दवाएं और टूटे शीशों के टुकड़ें जैसी चीजों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में बिना दस्तानों के कारण वह कोरोना वायरस के प्रति अधिक संवेदनशील बनते हैं।