Begin typing your search above and press return to search.
समाज

'कोरोना वायरस से पहले भूख हमें मार देगी', लॉकडाउन पर रोहिंग्या शरणार्थियों ने बयां किया दर्द

Janjwar Team
1 April 2020 6:30 AM GMT
कोरोना वायरस से पहले भूख हमें मार देगी, लॉकडाउन पर रोहिंग्या शरणार्थियों ने बयां किया दर्द
x

देशभर में विभिन्न शरणार्थी शिविरों में रहने वाले लगभग 40,000 रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों को डर है कि एक और मानवीय तबाही उनपर भारी पड़ सकती है, क्योंकि उन्हें अकेले कोरोना वायरस महामारी से लड़ने के लिए छोड़ दिया गया है....

दीन मोहम्मद कोरोना वायरस से लड़ने के लिए भारत सरकार द्वारा लागू तीन सप्ताह के लॉकडाउन के दौरान अपने परिवार और साथी रोहिंग्या शरणार्थियों को स्वस्थ रखने के लिए अपनी शक्ति में हरसंभव प्रयास कर रहा है।

ई दिल्ली में मदनपुर खादर शरणार्थी शिविर में अपनी पत्नी और पांच बच्चों के साथ रहने वाले 59 वर्षीय मोहम्मद पिछले सप्ताह से यह सुनिश्चित करने के लिए झोंपड़ियों का दौर करते हैं कि लोग सोशल डिस्टेंस बनाए रखें और लकड़ी और प्लास्टिक की चादरों से बनी अपनी झोपड़ियों को साफ रखें।

लेकिन वह जानता है कि इन उपायों को अपने जैसे भीड़-भाड़ वाले शरणार्थी शिविरों में लागू करना कठिन है, जहां लोग तंग परिस्थितियों में रहते हैं जिनमें शौचालय और साफ पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।

संबंधित खबर : निजामुद्दीन की घटना के बाद कोरोना गया तेल लेने, मीडिया ने फैलाना शुरू किया नफरत का वायरस

मोहम्मद ने अल जज़ीरा को बताया, 'हम सचमुच एक बारूद के ड्रम पर बैठे हैं। इसके विस्फोट होने में बहुत समय नहीं लगेगा।'

देशभर में विभिन्न शरणार्थी शिविरों में रहने वाले लगभग 40,000 रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों को डर है कि एक और मानवीय तबाही उनपर भारी पड़ सकती है, क्योंकि उन्हें अकेले कोरोनोवायरस महामारी से लड़ने के लिए छोड़ दिया गया है।

पिछले मंगलवार को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनियाभर में 30,000 से अधिक लोगों को मारने वाले वायरस के प्रसार को रोकने के लिए भारत के 1.3 बिलियन लोगों के लिए सख्त लॉकडाउन की घोषणा की।

लेकिन यह कदम एक मानवीय त्रासदी में बदल गया है, जिसमें हजारों प्रवासी श्रमिक शहरों से भाग रहे हैं, उनमें से कई व्यवसायों और कारखानों के बंद होने के बाद अपने घरों तक पहुंचने के लिए सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलने को मजबूर हुए हैं।

ने सरकार पर उचित योजना के बिना लॉकडाउन की घोषणा करने का आरोप लगाया है। दक्षिण एशियाई राष्ट्र भारत ने कोविड-19 के अबतक 1,000 से ज्यादा मामले और 32 मौतें दर्ज की हैं।

राजधानी दिल्ली से करीब 100 किलोमीटर दूर हरियाणा के नूह जिले के वार्ड नंबर 7 में तकरीबन चार सौ रोहिंग्या शरणार्थी परिवार रहते हैं जिन्हें कोरोनावायरस के प्रकोप का डर सता रहा है। उन्हें फेसमास्क, सैनिटाइजर, साबुन आदि खरीदने के लिए अकेले छोड़ दिया गया है।

र कोई वायरस के बारे में चिंतित है लेकिन ऐसे बहुत कम हैं जो अपनी रक्षा कर पाते हैं। माचिस के डिब्बे में तिलियों की तरह बंद इन लोगों के लिए सोशल डिस्टेंस बनाए रखना असंभव है। गंदे शौचालयों के साथ और स्वास्थ्य सेवा तक दुर्लभ पहुंच, कुल मिलाकर स्वच्छता की हालत खराब है।

29 वर्षीय कंप्यूटर शिक्षक जफर उल्लाह एक झुग्गी में रहते हैं। शनिवार को उनका अपना आखिरी साबुन भी खत्म हो गया। उनके पास हाथ धोने के लिए अब कुछ नहीं बचा है। वह बताते हैं कि हमारी झुग्गी में केवल कुछ परिवारों के पास ही साबुन है, जबकि उनमें से ज्यादातर एक साबुन को खरीदने का जोखिम भी नहीं उठा सकते हैं।

संबंधित खबर : फटे रेनकोट और हेलमेट पहनकर कोरोना मरीजों का इलाज कर रहे भारत के डॉक्टर

स्थानीय नगरपालिका के कार्यकर्ताओं ने आसपास के आवासीय क्षेत्रों में कीटाणुनाशक का छिड़काव किया, लेकिन मलिन बस्तियों में नहीं। उल्लाह कहते हैं कि पिछले कुछ दिनों से शरणार्थियों के बीच बुखार के मामलों में लगातार वृद्धि हुई है।

ल्लाह ने बताया, 'मुझे नहीं पता कि यह कोरोनोवायरस से संबंधित है या नहीं, लेकिन लोग डरे हुए हैं वे अस्पतालों में नहीं जा सकते क्योंकि नियमित ओपीडी (आउट पेशेंट डिपार्टमेंट) लॉकडाउन के कारण बंद हैं। प्रशासन का कोई भी व्यक्ति हमारे पास जांच के लिए नहीं आया है।'

धिकांश अस्पतालों ने 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा के बाद अपनी आउट पेशेंट सर्विस को निलंबित कर दिया है।

पिछले गुरुवार को नई दिल्ली स्थित एक गैर-लाभकारी संगठन रोहिंग्या मानवाधिकार पहल (ROHRInga) ने मदनपुर खादर शिविर में रहने वाले 334 लोगों का डोर-टू-डोर सर्वेक्षण किया और उनमें से 37 को नए वायरस के समान बुखार, खांसी, नाक बहने समेत कई लक्षणों से पीड़ित पाया।

रोहरिंगा के सब्बर क्यॉ मिन ने बताया, 'रोहिंग्या शरणार्थी मलिन बस्तियों में कोरोनोवायरस प्रकोप का गंभीर खतरा है।'

न्होंने कहा, 'भारत सरकार अपने लोगों की रक्षा कर रही है, जबकि यूएनएचसीआर (संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी) जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने हमारी ओर आंखें मूंद रखी हैं। हम सचमुच इस महामारी से लड़ने के लिए अकेले बचे हैं।'

हालांकि यूएनएचसीआर के नई दिल्ली कार्यालय ने इस दौरान प्रतिक्रिया देने से इनकार किया और केवल इतना कहा कि वह स्थानीय गैर लाभकारी संगठनों के साथ मिलकर स्थिति की बारीकी से निगरानी कर रहे हैं।

यूएनएचसीआर की असिस्टेंड एक्सटर्नल रिलेशंस ऑफिसर किरी अत्री ने बताया, 'हम इसपर बहुत ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। हमने पिछले कुछ हफ्तों में मलिन बस्तियों में विभिन्न COVID-19 से संबंधित जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए हैं। आज से हम साबुन युक्त स्वच्छता किटों का वितरण शुरू करेंगे, जबकि फेसमास्क मामले-दर-मामला आधार पर दिया जाएगा।'

नूंह शरणार्थी शिविर के बदर आलम एक कंस्ट्रक्शन साइट पर दैनिक वेतन भोगी के रूप में काम करते हैं, लेकिन लॉकडाउन के कारण वह काम भी नहीं कर पा रहे हैं। 31 वर्षीय आलम का कहना है कि उनके परिवार में उनकी पत्नी और तीन बच्चे हैं, जिन्होंने एक हफ्ते में उचित भोजन नहीं लिया है।

के पास अब केवल दो किलो चावल, 250 ग्राम दाल और 250 रुपये ($ 3) जेब में बचे हैं, कम से कम एक और दो सप्ताह तक कंस्ट्रक्शन का काम शुरु होने की कोई संभावना नहीं है। वह पूछते हैं, 'मैं अपने बच्चों को क्या खिलाऊं? पत्थर?'

श्मीर क्षेत्र के जम्मू जिले में रहने वाले लगभग 1,200 रोहिंग्या परिवार भी (जो काम के लिए अखरोट कारखानों पर निर्भर हैं) कम अनाज से काम चला रहे हैं। इन शरणार्थियों का कहना है कि अगर यह लॉकडाउन कुछ दिनों तक और चलता है तो उन्हें खाली पेट सोना पड़ेगा।

हाफिज मुबाशर जम्मू शहर के बठिंडी इलाके में रोहिंग्या बच्चों के लिए बोर्डिंग सुविधाओं के साथ एक इस्लामी मदरसा चलाता है। उसने एक हफ्ते पहले कक्षाएं बंद कर दीं। लेकिन पिछले तीन दिनों से उन्हें चावल और आटे की व्यवस्था में मदद मांगने वाले छात्रों के फोन आ रहे हैं।

संबंधित खबर : फटे रेनकोट और हेलमेट पहनकर कोरोना मरीजों का इलाज कर रहे भारत के डॉक्टर

27 वर्षीय मुबाशर ने बताया कि लॉकडाउन ने हमारे भोजन के संकट को बढ़ा दिया है, हममें से कई पहले से ही भूखे हैं, जबकि अन्य एक दिन में एक बार भोजन करने के लिए लोग स्थानांतरित हो गए हैं या उन्होंने कम भोजन का सेवन करने का सहारा लिया है।

मुबाशर का मानना ​​है कि अगले सात दिन रोहिंग्या समुदाय के लिए महत्वपूर्ण होंगे, क्योंकि अधिकांश परिवार जल्द ही अपने बचे हुए अनाज से बाहर निकल जाएंगे।

मुबाशर ने कहा, 'हम एक ही समय में भूख और कोरोनोवायरस दोनों से जूझ रहे हैं," लेकिन मुझे लगता है कि वायरस के आने से पहले भूख हमें मार देगी।'

( राकिब हमीद नाइक की यह रिपोर्ट पहले अल जजीरा पर प्रकाशित, अनुवाद : निर्मलकांत )

Next Story

विविध