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विमर्श

राजीव गांधी हत्याकांड : केंद्र की मल्टी डिस्पलेनेरी मॉनिटरिंग अथॉरिटी की स्टेटस रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई कड़ी नाराज़गी

Prema Negi
15 Jan 2020 4:38 PM IST
राजीव गांधी हत्याकांड : केंद्र की मल्टी डिस्पलेनेरी मॉनिटरिंग अथॉरिटी की स्टेटस रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई कड़ी नाराज़गी
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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की मोदी सरकार को दिया निर्देश दिया कि राजीव गांधी हत्याकांड में दाखिल करे नई स्टेटस रिपोर्ट, 5 नवंबर 2019 को उच्चतम न्यायालय ने एमडीएमए से चार सप्ताह में मांगी थी नई स्टेटस रिपोर्ट, जिस पर केंद्र ने दाखिल की थी रिपोर्ट...

जेपी सिंह की टिप्पणी

च्चतम न्यायालय ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में बड़ी साजिश की जांच कर रही मल्टी डिस्पलेनेरी मॉनिटरिंग अथॉरिटी (एमडीएमए) की स्टेटस रिपोर्ट पर कड़ी नाराज़गी जताई है। मंगलवार 14 जनवरी को सुनवाई के दौरान जस्टिस एल नागेश्वर राव की पीठ ने कहा कि इस स्टेटस रिपोर्ट और पुरानी रिपोर्ट में कोई अंतर नहीं है। न्यायालय यह जानना चाहता है कि इस मामले की जांच में दो साल के भीतर क्या हुआ? पीठ ने केंद्र को निर्देश दिया कि वो इस संबंध में नई स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करे। दरअसल 5 नवंबर 2019 को उच्चतम न्यायालय ने एमडीएमए से चार सप्ताह में नई स्टेटस रिपोर्ट मांगी थी, जिस पर केंद्र ने ये रिपोर्ट दाखिल की थी।

पीठ ने ये आदेश दोषी एजी पेरारीवलन की आजीवन कारावास की सजा के निलंबन की याचिका पर दिया। पेरारीवलन ने अपनी याचिका में कहा है कि जब तक मल्टी डिस्पलेनेरी मॉनिटरिंग अथॉरिटी की जांच पूरी नहीं होती, उनकी सजा निलंबित की जानी चाहिए। ये एजेंसी 1998 में जस्टिस जैन कमीशन की सिफारिश के आधार पर बनी थी। 2017 में पेरारीलवन की याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार और सीबीआई को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।

स दौरान पेरारीवलन के वकील गोपाल शंकरनारायण ने कहा था कि वो 26 साल से जेल में बंद हैं और उन्हें 9 वोल्ट की दो बैटरी सप्लाई के लिए दोषी करार दिया गया था, जिससे बम बनाकर राजीव गांधी की हत्या की गई। उन्होंने सीबीआई के एसपी त्यागराजन के हलफनामे का हवाला दिया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि पेरारीवलन से बैटरी सप्लाई के बारे में सवाल नहीं किए। गोपाल ने कहा था कि एमडीएमए भी अब तक उस शख्स से पूछताछ नहीं कर पाई है जिसने बम बनाया था और वो श्रीलंका में है।

गौरतलब है कि राजीव गांधी हत्याकांड में जैन कमिशन की रिपोर्ट के आधार पर मानव बम बनाने की साजिश को लेकर आगे जांच कराने के मामले में उच्चतम न्यायालय में सुनवाई चल रही है। 17 अगस्त 2017 को राजीव गांधी हत्याकांड में सजायाफ्ता एजी पेरारीवलन की जैन कमीशन के आधार पर आगे की जांच की याचिका पर जस्टिस रंजन गोगोई की पीठ ने सीबीआई से सवाल किए थे।

पीठ ने पूछा था कि राजीव गांधी की हत्या के लिए मानव बम बनाने की साजिश का केस क्या फिर से खोला गया? मानव बम बनाने की साजिश के केस का क्या नतीजा निकला? पीठ ने सीबीआई से इन सवालों के जवाब देने को कहा था।

सीबीआई ने इस संबंध में सील कवर में जांच की स्टेटस रिपोर्ट भी कोर्ट में दाखिल की थी। सुनवाई के दौरान पीठ ने सीबीआई से कहा था कि जैन कमीशन के निर्देश के मुताबिक राजीव गांधी की हत्या की आगे जांच होनी ही चाहिए। पीठ ने सीबीआई से मामले की आगे की जांच के लिए चार हफ्ते में सील कवर में स्टेटस रिपोर्ट मांगी थी। पीठ ने पूछा था कि सीबीआई बताए कि इस मामले की आगे की जांच कब तक पूरी हो सकती है? साथ ही यह भी बताए कि इस केस में फरार आरोपियों के प्रत्यर्पण समेत क्या-क्या कानूनी अड़चनें आ रही हैं?

सके अलावा पीठ ने पूछा था कि सीबीआई ने इन अड़चनों के लिए क्या कदम उठाए हैं? सुनवाई के दौरान सीबीआई की ओर से बताया गया था कि इस मामले की जांच चल रही है, लेकिन यह नहीं बताया जा सकता कि केस की जांच में कितना वक्त लगेगा। इस मामले में फरार आरोपियों के प्रत्यर्पण में भी वक्त लग रहा है। जब तक इन आरोपियों को वापस नहीं लाया जाएगा जांच पूरी नहीं हो सकती।

रअसल, राजीव गांधी हत्याकांड में दो मामले दर्ज किए गए थे। एक केस में मुरगन, नलिनी, पेरारीवलन समेत सात लोगों को सजा हो चुकी है. वे उम्रकैद की सजा काट रहे हैं। दूसरे केस में लिट्टे चीफ प्रभाकरण, अकीला और पुट्टूअम्मन समेत 11 लोगों को साजिश का आरोपी बनाया गया था।

याचिका में कहा गया है कि जैन कमीशन की सिफारिश के आधार पर मामले की आगे जांच के लिए सीबीआई की देखरेख में मल्टी डिस्पलेनेरी मॉनिटरिंग अथॉरिटी बनाई गई थी, लेकिन 20 साल बीत जाने पर भी जांच आगे नहीं बढ़ी।राजीव गाँधी की हत्या के षड्यंत्र में द्रमुक और तमिलनाडु के अन्य राजनितिक दल भी शक के घेरे में थे।

गौरतलब है कि 31 अक्टूबर 1984 को राजीव गांधी ने देश के छठे प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी। 1984 से 1989 तक वह देश के प्रधानमंत्री रहे। वर्ष 1989 के चुनाव उपरांत देश में जनता दल की सरकार बनी, पर यह ज्यादा समय न चल सकी। बाद में चंद्रशेखर की सरकार राजीव गांधी के सहारे कुछ महीने चली और आखिरकार वह भी गिर गई। सन 1991 में पुन: चुनाव की घोषणा हुई। इस बार देश में कई चरणों में चुनाव कराए गए। राजीव गांधी जमकर चुनाव प्रचार कर रहे थे। चुनाव का प्रथम चरण 20 मई 1991 को खत्म हुआ। राजीव गांधी इस बात से अनभिज्ञ थे कि उनके खिलाफ बड़ी साजिशें रची जा रही हैं और उनकी हिफाजत तमाम एजेंसियां और पुलिस भी नहीं कर पाएगी।

20 मई 1991 को उन्होंने दिल्ली में मतदान किया। 21 मई को वह उड़ीसा और तमिलनाडु मेंचुनाव प्रचार के लिए निकले। 21 मई 1991 को रात 10:20 मिनट पर चेन्नई से 30 मील दूर श्रीपेरुंबुदूर में चुनावी सभा के दौरान मानव बम के विस्फोट में उनकी जान चली गई।

राजीव गांधी की हत्या की जांच एसआईटी, सीबीआई को सौंपी गई। हत्या के विभिन्न पहलुओं की पड़ताल के लिए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेएस वर्मा और उच्च न्यायालय के जस्टिस एमसी जैन के नेतृत्व में महत्वपूर्ण जांच आयोग गठित किए गए। इन आयोगों ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी। जांच रिर्पोटों में देश की जनता और राजीव गांधी के परिवार के सदस्यों को बताया गया कि राजीव गांधी की जघन्य हत्या लिट्टे की धनु नाम की महिला, जो मानव बम थी, के माध्यम से की गई। नलिनी एवं उसके अन्य सहयोगी पकड़े गए और उनके ऊपर कार्रवाई हुई। दूसरी तरफ प्रभाकरन एवं अन्य भगोड़े घोषित किए गए।

न्यायमूर्ति वर्मा ने सुरक्षा चूक और उसकी खामियों पर रोशनी डाली। न्यायमूर्ति एमसी जैन ने हत्या में साजिश के कोण की जांच की और इससे जुड़े कुछ बिंदुओं को उजागर किया। राजीव गांधी की हत्या से उपजे सहानुभूति लहर से केंद्र में पीवी नरसिंह राव की कांग्रेस सरकार बन गयी और पूरी जाँच ठंडे बस्ते में चली गयी क्योंकि इससे विवादास्पद चंद्रास्वामी का नाम जुड़ने लगा जिनसे पीवी नरसिंह राव, सुब्रमण्यम स्वामी,चन्द्रशेखर जैसे दिग्गज राजनेताओं की अभिन्नता थी।

स हत्याकांड की जांच के दौरान राजीव से बेहद नाराज चले नेमीचंद जैन उर्फ चंद्रास्वामी का नाम भी उछला था। सवाल यह भी उठा था कि किस वजह से कांग्रेस के ही तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव ने जस्टिस जेएस वर्मा आयोग की सिफारिशों को शुरूआत में खारिज कर दिया। इस आयोग ने कहा था कि सुरक्षा व्यवस्था में तमिलनाडु के कांग्रेसियों द्वारा की गयी गड़बड़ी के चलते ही गांधी को हमले से नहीं बचाया जा सका।

समें मुख्य बात यह भी कि जैन आयोग की रिपोर्ट में लिट्टे का नाम लिए जाने के बावजूद इसके प्रमुख प्रभाकरण की मौत के पहले तक किसी भी स्तर पर प्रभाकरण के प्रत्यर्पण की मांग नहीं उठायी गयी,जबकि ऐसा होने तक देश में कांग्रेस की सरकार भी केंद्र में बन चुकी थी। इस बात पर कभी फोकस करने का उपक्रम ही नहीं किया गया कि तमिलनाडु सहित दिल्ली में ऐसे कौन कांग्रेसी थे, जिन्होंने बार-बार इस बात के लिए दबाव बनाया कि गांधी का श्रीपेरेम्बदूर दौरा रद्द नहीं किया जाए।

काफी पड़ताल के बाद भी इस बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती कि हत्याकांड से कुछ दिन पहले गांधी से मिलकर उन्हें सुरक्षा का आश्वासन देने वाले लिट्टे के सदस्यों की यह मुलाकात का बंदोबस्त किसने किया था। राजीव की हत्या के बाद ही भारत सरकार ने लिट्टे को प्रतिबंधित किया था। इससे पहले उसकी गतिविधियों पर यहां कोई रोक नहीं थी।

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