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उत्तराखंड

यात्रियों से 650 की जगह 6600 की वसूली, ट्रांसपोर्टरों का आरोप केजरीवाल के अधिकारी ले रहे 6 से 9 हजार प्रति परमिट घूस

Prema Negi
15 May 2020 5:35 AM GMT
यात्रियों से 650 की जगह 6600 की वसूली, ट्रांसपोर्टरों का आरोप केजरीवाल के अधिकारी ले रहे 6 से 9 हजार प्रति परमिट घूस
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एक तरफ प्रवासी उत्तराखंडियों के ऑनलाइन पास समय से नहीं बन रहे, दूसरी तरफ ट्रांसपोर्ट कंपनी रोज पास बनाकर यात्रियों को लूट रही हैं...

संजय रावत की रिपोर्ट

दिल्ली/हल्द्वानी, जनज्वार। कोरोनाकाल में प्रवासी मजदूरों की दुर्गति के बाद अब प्रवासी मध्यवर्ग की स्थितियों के मामले भी सामने आने लगे हैं। ताजा मामला दिल्ली से उत्तराखंड को लौटकर आने वाले प्रवासियों से कई गुना ज्यादा किराया वसूली का है। प्रवासियों को दिल्ली से घर वापसी के लिए 10 गुने तक किराया वहन करना पड़ रहा है।

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ह मामला असल में उत्तराखंड और दिल्ली सरकारों की लापरवाही का है, जबकि दोनों राज्यों के कर्मचारियों की कार्यप्रणाली से भयंकर भ्रष्टाचार की बू आ रही है। एक तरफ प्रवासी उत्तराखंडियों के ऑनलाइन पास समय से नहीं बन रहे, दूसरी तरफ ट्रांसपोर्ट कंपनी रोज पास बनाकर यात्रियों को लूट रही हैं। ट्रांसपोटर एजेंट और उनकी कंपनियां बहुत फक्र से कहती हैं कि हमारी दिल्ली के एडीएम आफिस में सेटिंग है, बस आप पैसा लेकर पहुंचो।

की स्मार्ट सिटी नामक वेबसाइट पर पास बनाने के दो विकल्प हैं, जिसमें पहला यह कि यात्री अपने जाने के पास को आवेदन करें, जिसके तहत वे राज्य द्वारा चलाए जा रहे परिवहन की सेवा ले सकें। दूसरा विकल्प है कि यात्री निजी वाहन का पास बनवाएं और घर वापसी कर सकें। इस दूसरे विकल्प में ही दोनों राज्यों के कर्मचारियों ने अपनी कमाई के रास्ते ढूंढ़ लिए हैं।

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शिकायतकर्ताओं ने बताया कि दिल्ली से उत्तराखंड आना मुश्किल भरा काम हो गया है। समय से पास नहीं बनने के चलते दिल्ली में ट्रांसपोर्ट कंपनियों की बाढ़ देखी जा सकती है, जो 10 गुना या उससे ज्यादा किराया वसूल कर उत्तराखंड के गांवों तक पहुंचा रहे हैं और लोगों को मजबूरी में जाना पड़ रहा है, क्योंकि उनके आवेदन पर समय से पास नहीं मिल रहे हैं या लगातार अधिकारी टाल रहे हैं और आज-कल कर रहे हैं।

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दिल्ली के लोहाघाट निवासी अनिल ने बताया कि ज्यादा रकम मांगने की वजह ट्रांपोर्टर बताता है कि पास बनवाने के लिए हमें नोडल अधिकारियों या जिलाधिकारी को प्रति वाहन 9 हजार रुपए देने होते हैं और साथ ही एक सीट पर एक ही यात्री को बैठना होता है। जैसे 32 सीट की बस है तो 16 ही यात्री ले जाने के आदेश हैं, इसीलिए किराया बढ़ाना पड़ता है।

त्तराखंड के थल निवासी हेमेंद्र जो दिल्ली में रहते हैं, बताते हैं कि दिल्ली में तो नोडल अधिकारी के बगल में ही आकर दलाल दो सौ रुपए में सरकारी परिवहन के लिए पास बनाने की पेशकश करते हैं।

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शिकायतकर्ताओं द्वारा दिए ट्रांसपोर्टर के नंबर पर जब जनज्वार संवाददाता ने बात की तो बात सही निकली। हमने जब कहा कि दिल्ली से 5 सवारी हल्द्वानी जानी हैं तो उसका कहना था कि 5 सवारी के लिए गाड़ी नहीं हो पाएगी, आप 16 सवारी हो जाओगे तो ही चलेंगे। दूसरे विकल्प के तौर पर उसने टेम्पोट्रक का सुझाव दिया, जिसका किराया 8 गुना ज्यादा बताया।

नज्वार के पास उपलब्ध आडियो में ट्रांसपोर्टर रिपोर्टर से बात करते हुए साफ-साफ कहता है कि केजरीवाल सरकार में एडीएम आफिस में हमारी सेटिंग है। अगर आप पास बनवा लोगे तो प्रति व्यक्ति किराया 4500 लगेगा, नहीं तो 9 हजार रुपया एकस्ट्रा चुकाना होगा। इस एक्सट्रा को जोड़ते ही किराया प्रति व्यक्ति 6000 हजार हो जाता है और टोल व ड्राइवर का खर्च जोड़ने पर 6600 रुपए प्रति व्यक्ति।

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रिपोर्टर को ट्रांसपोर्टर समझाते हुए बताता है कि अगर 13 सीटर टैम्पो ट्रेवलर दिल्ली से उत्तराखंड के लोहाघाट जाता है तो तो उसमें सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करने के कारण सिर्फ 6 लोग यात्रा कर पायेंगे। ऐसे में अगर आप गाड़ी की परमिट ले जाते हैं तो 6 लोगों को मिलाकर 27 हजार रुपया चुकाना होगा, अन्यथा किराये में 9 हजार रुपये और लगेंगे।'

साथ ही ट्रांसपोर्टर कुछ और बातें स्पष्ट करता है। जैसे आने—जाने का दोनों ओर से टोल, पार्किंग के साथ 2 हजार रुपये ड्राइवर का अलग से देना होगा। ध्यान रहे ये किराया सिर्फ एक तरफ का है। यानी 27000+9000+2000 को जोड़ लें तो यही छह लोगों के किराए के रूप में 38,000 हजार हो जाते हैं, टोल आदि दोनों ओर का जोड़ लें तो सिर्फ छह लोगों का किराया 40 हजार का जाता है।

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ब अगर आप सामान्य दिनों का किराया पता करें तो यह किराया प्रति व्यक्ति उतना पड़ता है, जितने में हर आदमी एक-एक टैम्पो ट्रेवलर करके अकेले-अकेले उत्तराखंड के लोहाघाट पहुंच जाएगा। वहीं लोहाघाट के लिए दिल्ली से बसों से सिर्फ 650 रुपए किराया लगता है।

हुत साफ है कि कोरोना महामारी में हताश, बेरोजगार हुए लोग पहले ही परेशानी में हैं, उस पर दोनों राज्यों की लापरवाही और कर्मचारियों की भ्रष्ट प्रवृति ने हजारों/लाखों यात्रियों को मुश्किल में डाल रखा है। यह भ्रष्टाचार देश के उस राज्य दिल्ली में संचालित हो रहा है जो खुद को 'ईमानदार' सरकार का तमगा देती फिरती है।

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