- Home
- /
- जनज्वार विशेष
- /
- ये कट्टर...
ये कट्टर हिन्दुत्त्ववादी नहीं देश विरोधी ‘पशु’ और इंसानियत के हत्यारे हैं!
भारतवासियों को तत्काल ये भ्रम दूर करने की ज़रूरत है कि ये कट्टर हिन्दुत्त्ववादी नहीं हैं ये देश विरोधी ‘पशु’ हैं और इंसानियत के हत्यारे हैं...
भीमा कोरेगांव पर रंगचिंतक मंजुल भारद्वाज का विश्लेषण
भीमा कोरेगांव की दुर्घटना ‘भगवा’ ब्रिगेड की साज़िश है जो सुनियोजित है। जनवरी को हर साल यह कार्यक्रम होता है और ‘दलित’ समाज इस दिन अपने ‘स्वाभिमान’ को सलाम करता है साल सत्ता को जुमलों से चलाने और चुनाव जीतने के जातिवादी समीकरण का ये खेल है। महाराष्ट्र में पिछले कई वर्षों से ‘मराठा’ आरक्षण का मुद्दा खदक रहा है। पूरा मराठा समाज ‘आरक्षण’ के लिए लामबद्ध होकर संघर्षरत है जैसा ‘पटेल’ आन्दोलन गुजरात में हो रहा है।
कांग्रेस के ‘पटेल’ आरक्षण के चुनावी खेल से हारते हारते। पूरी भारत सरकार, लगभग पूरे देश के मुख्यमंत्री, जीएसटी पर सुलह रियायत, पाकिस्तान का तड़का, गुजरात का बेटा इत्यादि जुमले आजमाने के बाद, चुनाव आयोग की मेहरबानी के बाद बड़ी मुश्किल से हांफते हाँफते जीत पाई ‘भगवा’ ब्रिगेड अब डर गई है। ये डर उसके ग्रामीण वोट बैंक के खिसकने से है।उस खिसकते वोट बैंक की भरपाई का नुस्खा है की ‘दलितों’ और ‘मराठों’ में वैमनस्य पैदा करो। इस वैमनस्य का आधार ‘दलितों’ को संविधान सम्मत मिला हुआ आरक्षण और ‘मराठों’ का आरक्षण आन्दोलन है। पेशवाई ब्रिगेड इस वैमनस्य में चिंगारी लगाना चाहती है।
इसी प्लान के नियोजन का क्रियान्वन है ‘भीमा कोरेगांव’ काण्ड! भगवा ब्रिगेड इस काण्ड से जो तात्कालिक उपलब्धियां चाहती है वो इस प्रकार हैं 1. दलित और मराठों में फूट डालकर हिंसा करवाना 2. इस फूट को ‘आरक्षण’ की आग से सेकना और सीधा संविधान पर ‘हमला’ करना 3. अपने कुशासन के चलते खिसकते ‘विकास’ वोट बैंक की भरपाई करना 4. ‘दलित’ और ‘मराठों’ का अलग अलग पार्टियों को समर्थन है, उस समर्थन में सेध लगाना। उसके प्रभाव को खत्म करने के लिए इस हद तक तोडना ताकि वो निष्प्रभावी हो जाए जैसे मुसलमान वोट ‘सेकुलरवादियों’ से छिटक कर निष्प्रभावी हो गया है।
पर अपने स्वाभिमान के लिए उतरे ‘दलितों’ ने पेशवाइन साज़िश को भांप लिया और बहुत जल्द नारा दिया “बौद्ध मराठा एक हैं, भिडे, एकबोटे फेक हैं” ! जिससे ये भगवा ब्रिगेड की साज़िश नंगी होकर सबके सामने आ गई। हालाँकि पत्रकारिता के गोस्वामी और कुमार जैसे भेडियों ने अपने ‘भक्ति’ सत्संग में खूब आग लगाईं।पर ‘दलितों और मराठों’ की रचनात्मक सुझबुझ का परिणाम है आज का शांतिपूर्ण महाराष्ट्र बंद! जबदस्त विरोध और ‘भगवा’ ब्रिगेड और उसकी ‘सत्ता’ को औकात बताते हुए ‘शांतिपूर्ण’ बंद!
पर सवाल दीगर है। पूरे भारतीय समाज का है। वो सवाल है की ‘भारत’ कब तक ‘वर्ण व्यवस्था’ के अभिशाप से शापित रहेगा? क्या ‘संविधान’ से ज्यादा बड़ा है ‘मध्यमवर्ग’ का विकास? कौन हैं ये ‘हिंदुत्तत्व वादी ’? क्या इन स्वयम्भू हिंदुत्तत्व वादियों को अब पकड़ पकड कर झकझोरने का समय नहीं आ गया है?
इनसे पूछे पूरा समाज की ये ‘भगवा’ तुम्हें किसने दिया? ये भगवा तुम्हारा कैसे हो गया? ये तुम्हें ‘हिन्दू’ का प्रमाणपत्र किसने दिया? ‘हिन्दुत्व’ का ठेकदार तुम्हें किसने बनाया? पूरे भारत वर्ष को ये सवाल इन चंद मवालियों से पूछने होंगे। भारतवासियों को तत्काल ये भ्रम दूर करने की ज़रूरत है कि ये कट्टर हिन्दुत्त्ववादी नहीं हैं ये देश विरोधी ‘पशु’ हैं और इंसानियत के हत्यारे हैं! इनका ‘इंसानियत’ से बैर है।
ये अपने को छोड़ सबसे नफ़रत करते हैं। ये हिंसक जानवर हैं। इनका संस्कार,संस्कृति और सभ्यता से कोई सरोकार नहीं है। ये रक्त पिपासु ‘सत्ता’ लोलुप हैं जो संस्कार, संस्कृति और सभ्यता के नाम पर इंसानियत के खून से राजतिलक करना चाहते हैं। ये भारतवर्ष के एक एक नागरिक को जाति, धर्म, भाषा, राज्य।क्षेत्र, जेंडर, गोत्र के आधार पर चुन चुन कर मारना चाहते हैं। हिन्दू और हिन्दुतत्व के नाम पर ऐसा समाज बनाना चाहते हैं जहाँ नफ़रत का राज हो, हिंसा का बोलबाला हो, जहाँ एक भारतीय दूसरे को पीटे और नोच खाये और ‘संविधान’ किसी पुस्तकालय में नुमाइशी पुस्तक बनकर रह जाए।
गृहयुद्ध के मुहाने पर खड़ा देश क्या इन ‘हिन्दुत्ववादियों’ से ‘भगवा’ रंग छीन कर इनके ‘पशु’ को सदा सदा के लिए बाड़े में बंद करेगा या भूमंडलीकरण काल में बुत बना ‘युवा देश’ अपने विध्वंस का तमाशा देखेगा! आज हर भारतवासी को भारतवर्ष के लिए जागने की ज़रूरत है। हिन्दू नहीं भारतवासी के जागरण को ‘वक्त’ ललकार रहा है। यह ‘संविधान’ के पक्षधर नागरिकों को एक साथ जिंदा होने का काल है! भारतवासी ज़िंदाबाद। भारत वर्ष ज़िंदाबाद। भारतीय संविधान ज़िंदाबाद!