तमाम योजनाओं और दावों के बाद भी दिल्ली की यमुना प्रदूषित ही रहेगी | Despite several plans, Yamuna would remain Toxic |
Despite several plans, Yamuna would remain Toxic | हमारी सरकारें प्राकृतिक संसाधनों (Natural Resources) को किस निगाह से देखती हैं, यह देखना हो तो दिल्ली के बीच से गुजरती यमुना नदी के बारे में जरूर विचार करना चाहिए| दुनिया में किसी भी नदी का कोई भी हिस्सा इतना प्रदूषित और विषैला नहीं होगा, जितनी दिल्ली में यमुना नदी है| इसका काला बदबूदार पानी ही पूरी कहानी बता देता है और रही-सही कसर ओखला बैराज के बाद का झाग उजागर कर देता है| ओखला बैराज के बाद झाग से घिरा पानी देखकर हिंदी फिल्मों में आत्महत्या के दृश्य याद आते हैं| हिंदी फिल्मों में आत्महत्या करने वाला/वाली जैसे ही जहर पीते हैं, मुह से झाग निकलने लगता है और फिर मौत हो जाती है| ठीक इसी तरह दिल्ली में यमुना नदी की बार-बार मौत होती है – हरेक मौत के बाद दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार नयी योजनाओं का ऐलान करते हैं और यमुना पहले से अधिक प्रदूषित होती है| यमुना के लिए प्रदूषण तो सामान्य शब्द है, दरअसल इसका पानी विषैला है|
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल (Arvind Kejriwal) भी केंद्र की भाजपा सरकार की तरह अपने चित्र के साथ वाले विज्ञापनों पर खूब खर्च करते हैं| समाचारपत्रों में पूरे पृष्ठ के विज्ञापनों के साथ ही पूरी दिल्ली में होर्डिंग्स में नजर आते हैं, कुछ विज्ञापनों में वायु प्रदूषण कभी नजर आता है, पर यमुना कहीं नजर नहीं आती| पिछले वर्ष नवम्बर में केजरीवाल ने यमुना पर प्रेस ब्रीफिंग की थी, जिसमें कहा था कि दिल्ली की यमुना फरवरी 2025 के पहले नहाने योग्य हो जायेगी| इसमें उन्होंने यमुना सफाई के लिए 6 सूत्रीय कार्यक्रम का ऐलान भी किया था – नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करना, पुराने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता बढ़ाना, यमुना सफाई के लिए नए टेक्नोलॉजी का समावेश, यमुना में मिलने के पहले प्रमुख नालों का पानी साफ़ करना और औद्योगिक गंदे पानी को यमुना तक पहुँचने नहीं देना|
यह सब सुनने में तो अच्छा लगता है, पर इनसे नदियाँ साफ़ नहीं होतीं| नदियों को साफ़ करने के लिए सबसे पहले पानी का महत्व, नदियों का महत्व और नदियों को नदियाँ समझाना जरूरी है| सरकारें नदियों को कोई भौगोलिक संरचना नहीं बल्कि पानी का सबसे आसान स्त्रोत और गंदे पानी को आसानी से बहाने का साधन मानती हैं| दिल्ली में वजीराबाद पर नदी का पूरा पानी रोककर दिल्ली की प्यास बुझाई जाती हैं और इसके ठीक बाद देश का सबसे बड़ा नाला, नजफगढ़ नाला, यमुना में मिलता है और इसके आगे यमुना इसी नाले के पानी के सहारे बढ़ती है| इससे पहले भी दशकों से सरकारें इन्ही सारे सूत्रों के सहारे नदियों की सफाई करती जा रही है – नतीजा यह है कि साल-दर-साल नदियाँ पहले से अधिक प्रदूषित होती जा रही हैं, पर इसे साफ़ करने वाले अधिकारी मालामाल होते जा रहे हैं|
केजरीवाल ने नवम्बर 2021 में स्पष्ट शब्दों में बताया था कि अधिकतर उद्योग अपने यहाँ से उत्सर्जित गंदे पानी को साफ़ नहीं करते बल्कि सीधे नालों में छोड़ते हैं और यही नाले यमुना में मिलते हैं| यह, एक कौतूहल का विषय है कि जब केजरीवाल को उद्योगों के इस गोरखधंधे की जानकारी है, तब फिर वे या पर्यावरण मंत्री दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के अधिकारियों पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं करते| देश में प्रदूषण नियंत्रण से सम्बंधित सबसे पुराने क़ानून, वर्ष 1974 के जल अधिनियम, के अनुसार गंदे पानी को उत्सर्जित करने वाले हरेक उद्योग को प्रदूषण नियंत्रण कमेटी से सहमति पत्र, यानि एनओसी, लेना पड़ता है और इसके लिए गंदे पानी का स्त्रोत, उसे साफ़ करने के लिए उपचार संयंत्र और साफ़ करने के बाद उसे कहाँ छोड़ा जाएगा – इसकी विस्तृत जानकारी देनी होती है| इसके बाद अधिकारी सभी सूचनाओं की पड़ताल करते हैं, उद्योग जाकर निरीक्षण करते हैं और संतुष्ट होने के बाद ही एनओसी स्वीकृत करते हैं| पर, यह एक आदर्श स्थिति है और वास्तविकता इससे कोसों दूर है| दरअसल उद्योग चलाने की प्रदूषण नियंत्रण की एनओसी महंगे कीमत पर खरीदी जाती है – नतीजा स्पष्ट है, प्रदूषण नियंत्रण कमेटी के अधिकारी मालामाल होते जाते हैं और साथ ही पर्यावरण प्रदूषण का स्तर भी बढ़ता जाता है क्योंकि एनओसी खरीदने वाला उद्योग प्रदूषण नियंत्रण करता नहीं, बस इसका दिखावा करता है|
इसी महीने के शुरू में दिल्ली जल बोर्ड के अधिकारियों ने बताया था कि यमुना एक्शन प्लान के तीसरे चरण का काम निर्धारित समय से 2 वर्ष पीछे चल रहा है| इसका कारण दूसरे विभागों से आवश्यक अनुमति में विलम्ब, लॉकडाउन के कारण काम का ठप्प होना और अत्यधिक वायु प्रदूषण के समय निर्माण कार्यों पर रोक है| यमुना की कुल लम्बाई 1370 किलोमीटर है और इस लम्बाई में से 2 प्रतिशत से भी कम हिस्सा दिल्ली में है, फिर भी यमुना में जितना प्रदूषण उड़ेला जाता है उसमें 80 प्रतिशत से अधिक योगदान दिल्ली का है| नदियों की सफाई सरकारों की नजर में कितनी महत्वपूर्ण है, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि इसी दिल्ली में सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट हरेक बंदी के बाद भी लगातार चलता रहा और यमुना की सफाई के काम रोक दिया गया|
पिछले वर्ष नवम्बर में मुख्यमंत्री केजरीवाल ने दिल्ली सरकार के विभिन्न संस्थानों को जोड़कर यमुना क्लीनिंग सेल की स्थापना की थी| हाल में ही इस सेल की तरफ से बताया गया है कि दिल्ली के दो सबसे बड़े नालों – नजफगढ़ नाला और सप्लीमेंटरी दरें के गंदे पानी की सफाई का काम किया जा रहा है और इसमें मार्च तक फ्लोटिंग वेटलैंड्स और जून तक एरिएटर स्थापित कर दिए जायेंगें|
तमाम घोषणाओं के बाद भी यमुना की स्थिति यही रहनी है| कभी भी यमुना में पानी का बहाव बढानी की बात नहीं की जाती, और जब तक किसी नदी में पर्याप्त बहाव नहीं होगा वह साफ़ नहीं हो सकती| नदियों की सफाई के वर्त्तमान स्वरुप से अधिकारियों की जेबें भरती हैं और नदी लगातार पहले से अधिक प्रदूषित होती जाती है|