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विमर्श

वित्तमंत्री निर्मला ​सीतारमण के अर्थशास्त्री पति का दावा 'चुनावी बॉन्ड केस दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला', मगर मोदी सरकार की अकड़ कायम

Janjwar Desk
31 March 2024 4:01 PM GMT
वित्तमंत्री निर्मला ​सीतारमण के अर्थशास्त्री पति का दावा चुनावी बॉन्ड केस दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला, मगर मोदी सरकार की अकड़ कायम
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देश में इस सत्ता की अकड़ आज भी कायम है, क्योंकि मीडिया सत्ता के चरणों में सर झुकाए गिरी है। बीजेपी सरकार में गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई, आर्थिक और सामाजिक असमानता लगातार बढ़ती जा रही है, दूसरी तरफ देश की अर्थव्यवस्था भी बढ़ रही है – यह सब लगातार होते घोटाले का ही परिणाम है...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Economic inequality in India is greatest in the world, and it is a government promoted scam. हाल में ही देश की बड़बोली वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के अर्थशास्त्री पति परकाला प्रभाकर ने रिपोर्टर टीवी को दिए गए साक्षात्कार में कहा है कि इलेक्टोरल बांड केवल भारत का ही नहीं, बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला है और बीजेपी सरकार ने अपने देश की जनता के विरुद्ध युद्ध छेड़ा हुआ है। इस घोटाले को उजागर करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय की तारीफ़ करनी पड़ेगी, जिसने इस पूरी प्रक्रिया को ही असंवैधानिक करार दिया, पर मामले के सामने आने के बाद और इस मामले में तथाकथित संवैधानिक संस्थाओं के सत्ता द्वारा दुरुपयोग उजागर होने के बाद सत्ता और इस जांच एजेंसियों पर न्यायालय द्वारा कोई कार्यवाही भी की जाती तो शायद देश का भला होता और यह चुनाव भी कुछ बराबरी का होता।

देश में सत्ता में बैठी बीजेपी सरकार द्वारा किया जाने वाला यह कोई एकलौता घोटाला नहीं है, बल्कि आर्थिक और सामाजिक तौर पर लगातार घोटाले होते रहे हैं और समय-समय पर उजागर भी होते रहे हैं। देश में इस सत्ता की अकड़ आज भी कायम है, क्योंकि मीडिया सत्ता के चरणों में सर झुकाए गिरी है। बीजेपी सरकार में गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई, आर्थिक और सामाजिक असमानता लगातार बढ़ती जा रही है, दूसरी तरफ देश की अर्थव्यवस्था भी बढ़ रही है – यह सब लगातार होते घोटाले का ही परिणाम है।

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के मानव विकास इंडेक्स 2023-2024 के अनुसार प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आमदनी वैश्विक स्तर पर औसतन 17254 डॉलर है, विकासशील देशों का औसत 11125 डॉलर है, दक्षिण एशिया में 6972 डॉलर है, पर भारत में यह आंकड़ा महज 6951 डॉलर ही है।

देश के अर्थव्यवस्था की बढ़ती दर और दूसरी तरफ मानव या सामाजिक विकास में पिछड़ते जाने से इतना तो स्पष्ट है कि मोदी सरकार में आर्थिक असमानता अपने चरम पर है।

हाल में ही प्रकाशित, ‘भारत में आमदनी और संपदा में असमानता, 1922-2023 : अरबपति राज का उदय’ शीर्षक वाली रिपोर्ट कहती है कि 2022-23 में देश की सबसे अमीर एक फीसदी आबादी की आय में हिस्सेदारी बढ़कर 22.6 फीसदी हो गई है। वहीं संपत्ति में उनकी हिस्सेदारी बढ़कर 40.1 फीसदी हो गई है। नितिन कुमार भारती, लुकास चांसल, थॉमस पिकेटी और अनमोल सोमांची की रिपोर्ट बताती है कि भारत घुमावदार लंबे राजमार्गों और एक्सप्रेसवे, चमकदार हवाई अड्डों, मॉल और स्काईलाइनों का दावा कर सकता है, लेकिन जब आर्थिक असमानता की बात आती है, तो यह ब्रिटिश राज के दौरान की तुलना में कहीं अधिक खराब हो गई है। भारत में वास्तव में अरबपति राज है और यहाँ आर्थिक असमानता दुनिया में सबसे अधिक है। यह असमानता वर्ष 2014 से तेजी से बढ़ती जा रही है।

आर्थिक असमानता तो अब सरकार द्वारा बड़े तामझाम से प्रकाशित रिपोर्ट से भी जाहिर होता है। भारत सरकार के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की एक रिपोर्ट, पारिवारिक उपभोग व्यय सर्वेक्षण 2022-2023, के अनुसार देश का ग्रामीण व्यक्ति हरेक महीने औसतन 3773 रुपये खर्च करता है, जबकि शहरी व्यक्ति औसतन 6459 रुपये खर्च करता है। यहाँ तक तो सब सामान्य दिखता है, पर जब बारीकी से रिपोर्ट को पढेंगे तब यह स्पष्ट होता है कि इस औसत तक देश की 60 प्रतिशत से अधिक जनता नहीं पहुँचती है। रिपोर्ट से दूसरा तथ्य यह उभरता है कि देश की सबसे गरीब 50 प्रतिशत जनता जितना सम्मिलित तौर पर हरेक महीने खर्च कर पाती है, लगभग उतना खर्च देश की सबसे अमीर 5 प्रतिशत आबादी कर लेती है।

हाल में ही बड़े तामझाम से प्रधानमंत्री द्वारा संसद को बताया गया कि पिछले 9 वर्षों के दौरान 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आ गए, यानी ये लोग माध्यम आय वर्ग में पहुँच गए। बीजेपी सांसदों द्वारा तालियाँ बजाई गईं, मेजें थपथपाई गईं। बाहर सड़कों पर धन्यवाद मोदी जी के पोस्टर लटकने लगे। इसके बाद प्रधानमंत्री जी ने यह भी स्पष्ट किया कि गरीबी से बाहर आ चुके 25 करोड़ लोगों को भी मुफ्त अनाज वर्ष 2028 तक मिलता रहेगा। हो सकता है, इस निर्णय से मीडिया और जनता खुश हो – पर यह देश की आर्थिक दुर्गति को उजागर करती है। प्रधानमंत्री का निर्णय यह स्पष्ट इशारा करता है कि केवल गरीब ही नहीं, बल्कि देश का माध्यम वर्ग भी सरकारी मुफ्त अनाज पर जिन्दा है। आर्थिक तौर पर पहले जो हाल केवल गरीब वर्ग का था, अब उस स्थिति में मध्यम वर्ग पहुँच चुका है।

सन्दर्भ:

1. Human Development Report 2023/2024, United Nation’s Development Programme (2024)

2. Nitin Kumar Bharti, Lucas Chancel, Thomas Piketty & Anmol Somanchi, “Income & Wealth Inequality in India 1922-2023: The Rise of the Billionaire Raj – Working Paper N02024/09”, World Inequality Lab (2024)

3. Household Consumption Expenditure Survey 2022-2023 – Fact Sheet, Ministry of Statistics & Programme Implementation, Government of India (2024)

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