Gandhi Jayanti Special 'स्त्री खुद को पुरुषों के भोग की वस्तु मानना कर दे बंद तो उसका सभी तरह का शोषण हो जायेगा खत्म'
Gandhi Jayanti Special जनज्वार। आज 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती हैं गांधी भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में एक आदर्श के रूप में स्थापित हैं। सत्य और अंहिसा में श्रद्धा रखने वाले बापू के जीवन में महिलाओं का खास महत्व था, यही कारण रहा कि समय समय पर गांधी ने महिलाओं के साथ समाज में हो रहे अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की।
बापू मानते थे कि कोई भी समाज तब तक समृद्ध नहीं हो सकता, जब तक वहां की महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार और शोषण बंद नहीं हो जाता। गांधी के अनुसार महिलाओं की स्थिति तभी सुधर सकती है, जब वे खुद अपने सम्मान और हक के लिए आवाज उठाएंगी। महात्मा गांधी ने महिलाओं को शिक्षित करने पर जोर दिया और बाल विवाह, घूंघट प्रथा जैसी परम्पराओं को गलत बताया। गांधी पुरुषवादी मानसिकता के विरोधी रहे और पुरुषों द्वारा महिलाओं को भोग की वस्तु और अपना गुलाम समझना उन्हें गलत लगता था। गांधी जी ने साफ-साफ कहा था कि वे अगर महिला होते तो पुरूषों द्वारा किए गए अत्याचार को कतई बरदाश्त नहीं करते।
भारत का इतिहास में महिलाओं को बेहद सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। ऐसा माना जाता है कि वैदिक काल में भारत की महिलाओं की स्थिति समाज में काफी ऊंची थी और उन्हें अभिव्यक्ति की पूरी आजादी थी। महिलाएं को पुरोहितों और ऋषियों का दर्जा प्राप्त था। सती प्रथा, पर्दा प्रथा और बाल विवाह जैसी कुरीतियों के लिए समाज में कोई जगह नहीं था। लेकिन, मुगलों और फिर अंग्रेजो के शासन में महिलाओं की भागीदारी कम हो गई। एक ओर मुगलों के राज में जहां पर्दा प्रथा शुरु हुई वहीं अंग्रेजो द्वारा महिलाओं को मात्र भोग की वस्तु माना जाने लगा।
गांधी जी मानते थे कि महिलाएं ज्ञान, विनम्रता, त्याग और विश्वास की मूरत होती हैं। जिस अहिंसा का उपदेश गांधी जी अक्सर देते थे, उसके अनुसार व्यक्ति में सहनशक्ति का होना अनिवार्य है जो महिलाओं का प्रमुख गुणों में से एक है। गांधी जी सीता, द्रौपदी, सावित्री जैसी स्त्रीयों को अपनी प्रेरणा मानते थे। गांधी के लिए वे केवल एक धार्मिक पात्र नहीं थीं, बल्कि सीता और द्रौपदी साहसी स्त्री थीं और गलत के खिलाफ प्रतिरोध करना जानती थीं। गांधी जी धर्म और परंपराओं में अपार आस्था रखते थे, पर उन्होंने परंपराओं के नाम पर महिलाओं के साथ होते कुरीतियों का खुलकर विरोध किया।
महिलाओं के प्रति इसी प्रेम और सम्मान की भावना का नतीजा है कि महात्मा गांधी के निजी जीवन में ऐसी अनेक महिलाएं आईं, जिन्होंने बापू के साथ मिलकर समाज को नई दिशा देने में महत्पूर्ण योगदान दिया। महात्मा गांधी के नारीवादी सोच की शुरुआत अपने ही घर से हुई। इसी का परिणाम रहा कि कम पढ़ी लिखी होने के बावजूद उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी ने स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई। सरोजनी नायडू, राजकुमारी अमृत कौर, मनु गांधी और डॉ सुशीला नय्यर जैसी अनेक महिलाओं के जीवन में बापू के विचारों का गहरा प्रभाव रहा। इतिहास में ऐसी और महिलाओं को नाम शामिल है, जिन्होंने बापू के साथ मिलकर दांडी मार्च और सत्याग्रह जैसे बड़े आंदोलनों में पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। गांधी जी खुद भी ये बात कई बार दोहरा चुके हैं कि अगर उनके पीछे महिला कार्यकर्ताओं का हुजूम न होता तो दांडी मार्च और सत्याग्रह जैसे आंदोलन कभी सफल न हो पाता।
देश में महिलाओं की दुर्दशा से बापू बहुत आहत थे। अपने लेखों के जरिए महात्मा गांधी अंग्रेजों द्वारा थोपी गई गलत सामाजिक व्यवस्था को लेकर हमेशा सवाल उठाते रहे। बापू ने अपने समाचार पत्र 'यंग इंडिया' के 15 सितंबर 1921 के संस्करण में भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति और भूमिका पर अपने विचार रखे थे। गांधी ने लिखा कि वे अगर स्त्री होते तो पुरुषों के लिए कभी श्रृंगार नहीं करते। बापू के अनुसार महिलाओं का दुरुपयोग किया जाना गलत है। एक पुरुष द्वारा की गई सभी बुराईयों में सबसे घटिया काम नारी जाति का दुरुपयोग है।
महात्मा गांधी ने कभी भी स्त्री को पुरुषों के अपेक्षा कम नहीं माना। वे मानते थे कि एक स्त्री अबला नहीं होती। वे लिखते थे कि स्त्री खुद को पुरुषों के भोग की वस्तु मानना बंद कर दे। महिलाओं के ऊपर हो रहे सभी शोषण का इलाज उसके स्वयं के हाथ में है। महिलाओं को अपने पति को लिए सजना संवरना छोड़ देना चाहिए, तभी वह समाज में पुरुषों के साथ बराबर की साझेदार बन पाएंगी।
लेकिन दुर्भाग्य की बात ये है कि जब आज जब पूरा विश्व बापू की 152वीं जयंती मना रहा है, तब ये बातें हम केवल याद करते हैं और फिर भूल जाते हैं। भारत के 75 साल के आजादी के बाद भी महिलाओं की समाज में स्थिति नहीं बदली। इसके उलट दहेज प्रथा, घरेलू हिंसा और बलात्कार जैसी घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है। बापू जैसी सोच वाले गिने चुने फेमिनिस्ट भारत में जरूर हैं पर वे भी किसी अनहोनी के बाद ही टीवी चैनलों पर दिखायी पड़ते है। महात्मा गांधी के विचार आजादी से पहले के समाज में जितना प्रासंगिक था, आज भी उतना ही महत्वपूर्ण मालूम पड़ता है।