दुनिया में कहीं भी सत्ता उन्मादी और हिंसक धार्मिक संगठनों की नहीं करती तरफदारी, मगर हमारे प्रजातांत्रिक देश में सरकार कर रही लगातार ये काम
धर्म की सत्ता नहीं संविधान की सत्ता ही भारत का भविष्य है
धर्म की आड़ लेने वाली सत्ता कैसे प्रजातांत्रिक नहीं होती बता रहे हैं महेंद्र पाण्डेय
Religion is being used to legitimate uncontrolled political powers. हाल में ही यूनिवर्सिटी ऑफ़ कोपेनहेगेन और यूनिवर्सिटी ऑफ़ लुंड के वैज्ञानिकों के संयुक्त दल ने एक विस्तृत अध्ययन कर बताया है कि मानव समाज के विकास के प्रारम्भिक चरण से लेकर आजतक अधिकतर सत्ता अपने आप को सामान्य जनता से अलग करने के लिए और अपनी निरंकुशता को जनता की नज़रों से दूर करने के लिए धर्म का सहारा लेती है। ऐसी हरेक सत्ता प्रजातंत्र से कोसों दूर होती है, जनता सामाजिक विकास से मरहूम रहती है, महिलाओं का शोषण होता है, सामाजिक असमानता बढ़ती है, अल्पसंख्यकों के अधिकार छीने जाते हैं और इन सबके बीच देश या समाज का मुखिया अपने आप को भगवान का प्रतिनिधि बता कर जनता को लूटता है और अपने आप पर उठते सवालों को ईश्वर का अपमान बनाता है।
यूनिवर्सिटी ऑफ़ कोपेनहेगेन में अर्थशास्त्र की प्रोफ़ेसर जेनेट सिन्डिंग बेन्त्जें के नेतृत्व में इस अध्ययन को किया गया है और इसे जर्नल ऑफ़ इकनोमिक ग्रोथ में प्रकाशित किया गया है। इस विस्तृत अध्ययन के लिए मध्य-युग के 1265 समाजों और वर्तमान के 176 देशों के कानूनों का विश्लेषण किया गया है। इस अध्ययन के अनुसार धर्म की आड़ लेकर सत्ता तक पहुँच केवल मध्य-युग की ही बात नहीं है, बल्कि यह दौर आज तक चल रहा है। वर्तमान दौर में इसका वीभत्स स्वरुप सामने आ रहा है क्योंकि धर्म का खुलेआम इस्तेमाल अब तथाकथित धर्मनिरपेक्ष और प्रजातांत्रिक देश भी कर रहे हैं। लोक्लुभावनवादी सत्ता के लिए धर्म का आवरण सबसे जरूरी होता है।
जिन देशों में सामाजिक समानता अधिक होती है, उन देशों की तुलना में गहरी सामाजिक असमानता वाले देश ईश्वर पर 30 प्रतिशत अधिक भरोसा करते हैं। ईश्वर पर अधिक भरोसा करने वाले देशों में सामाजिक समानता और लैंगिक समानता कभी हो ही नहीं सकती है। ईसा पूर्व 1750 में बेबीलोन के राजा ने हाम्मुरबी क़ानून लागू किया जिसके तहत प्रजा को यह स्वीकार करने था कि राजा पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि है और राजा का हरेक आदेश साक्षात ईश्वर का आदेश है। आज के दौर में शरिया क़ानून भी कुछ ऐसा ही कहता है। धर्म का सहारा राजनैतिक शक्ति को बढाने के लिए और समाज में विभाजन पैदा करने के लिए किया जाता है। ऐतिहासिक तौर पर धर्म का सहारा सत्ता द्वारा अपने नाकारापन और कमियों को छुपाने के लिए किया जाता है। पूरी दुनिया में धर्म के आधार पर क़ानून बनाए जाते हैं।
इस अध्ययन में पूरी दुनिया में धार्मिक आधार पर लागू किये जाने वाले कानूनों का विस्तृत आकलन किया गया है। पर, भारत जैसे देशों में धार्मिक आधार पर भले ही लिखित क़ानून न बनाए जाते हों, पर सत्ता द्वारा धार्मिक कट्टरता का प्रचार धार्मिक कानूनों वाले देशों से भी कई गुना अधिक किया जाता है। हमारे प्रधानमंत्री जी और उनका पूरा मंत्रिमंडल लगातार ऐसी तथ्यविहीन फिल्मों का हरेक मौके पर प्रचार करता है, जिसका मकसद ही समाज में धार्मिक वैमनस्व फैलाना है। पूरी की पूरी सत्ता एक धर्म के विरुद्ध लगातार जहर उगलने का काम करती है, और मेनस्ट्रीम मीडिया इसमें पूरा सहयोग देता गई। सत्ता के चहेते तथाकथित धर्मप्रचारक तो टीवी कैमरों के सामने तलवार और त्रिशूल उठाकर हिंसा की बात करते हैं, नारे लगाते हैं – इन नारों में पुलिस भी शामिल रहती है और न्यायालय ऐसे मामलों में अंधी और बहरी हो जाती है।
दुनिया में दूसरा कोई देश नहीं होगा जहां का मेनस्ट्रीम मीडिया लगातार धार्मिक प्रचार करता है, दूसरे धर्मों के प्रति जहर उगलता है। हमारे देश में भले ही ईशनिंदा का लिखित क़ानून न हो पर, यहाँ केवल इस आरोप के कारण जितने लोग सत्ता और पुलिस समर्थित भीड़ द्वारा मारे जाते हैं या जेलों में बंद किये जाते हैं – उतने दुनिया में कहीं नहीं किये जाते। दुनिया में कहीं भी सत्ता उन्मादी और हिंसक धार्मिक संगठनों की तरफदारी नहीं करती, पर हमारे देश में तो ऐसा लगातार किया जाता है।