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खतरे में दक्षिण एशिया की नदियाँ, पानी की कमी से जूझ रही है मध्य-पूर्व की 83 प्रतिशत और एशिया की 74 प्रतिशत आबादी

Janjwar Desk
2 April 2024 5:13 PM GMT
खतरे में दक्षिण एशिया की नदियाँ, पानी की कमी से जूझ रही है मध्य-पूर्व की 83 प्रतिशत और एशिया की 74 प्रतिशत आबादी
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पानी की कमी प्रजातंत्र और राजनीतिक स्थिरता को भी प्रभावित करती है। पानी की भयंकर कमी का सामना करने वाले 25 देशों की सूची से स्पष्ट होता है कि इनमें से अधिकतर देश निरंकुश सत्ता और तानाशाही की मार झेल रहे हैं और इन देशों में राजनीतिक स्थिरता कहीं नजर नहीं आती...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Water has become a critical issue and scarce resource in South Asia. काठमांडू स्थित इन्टरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट ने ऑस्ट्रेलिया वाटर पार्टनरशिप के साथ संयुक्त तौर पर मार्च 2024 में तीन रिपोर्ट प्रस्तुत कर बताया कि तापमान बृद्धि के प्रभावों का बेहतर तरीके से सामना करने के लिए दक्षिण एशिया की तीन प्रमुख नदियों – ब्रह्मपुत्र, गंगा और सिन्धु – के सम्बन्ध में सम्बंधित देशों में परस्पर सहयोग और आपसी तालमेल को बढाने की तत्काल आवश्यकता है। यह मुद्दा लगभग एक अरब लोगों के पानी की सुरक्षा के साथ ही कृषि, ऊर्जा और उद्योग से भी जुड़ा है।

दक्षिण एशिया का यह क्षेत्र आबादी के घनत्व के सन्दर्भ में दुनिया में सबसे घना है। एक बड़ी आबादी के पानी और खाद्यान्न सुरक्षा के साथ ही जलवायु परिवर्तन के बढ़ाते प्रभावों को कम करने के लिए इन देशों को संयुक्त कार्ययोजना बनाने की जरूरत है, जिसमें योजना, अनुसंधान, परस्पर सहयोग और आंकड़ों के साझा करने को शामिल किया जाना चाहिए। सतत ऊर्जा रणनीति, जलीय जीवन, जल सुरक्षा और आपदा प्रबंधन पर भी सहयोग की आवश्यकता है क्योंकि इस पूरे क्षेत्र पर परम्परागत तौर पर जनसंख्या का भारी दबाव रहा है और तापमान बृद्धि से समस्याएं विकराल होती जा रही हैं।

ब्रह्मपुत्र पर लगभग 11.4 करोड़ आबादी सीधे तौर पर पानी के लिए आश्रित है – इसमें 5.8 करोड़ बांग्लादेश में, 3.9 करोड़ भारत में, 1.6 करोड़ चीन में और 7 लाख आबादी भूटान में है। इस नदी में प्रभावी बाढ़ नियंत्रण की तत्काल आवश्यकता है, पर समस्या यह है कि पूरी नदी का वैज्ञानिक अध्ययन नहीं किया गया है और सम्बंधित देशों ने अपने देश के हिस्से में जो अध्ययन किया है, वे दूसरे देशों से साझा नहीं किये जाते। लगभग 3200 किलोमीटर लम्बी सिन्धु नदी का हिस्सा भारत और पाकिस्तान के साथ ही चीन और अफ़ग़ानिस्तान में भी है, इसके क्षेत्र में 26.8 करोड़ लोग रहते हैं।

गंगा के क्षेत्र में लगभग आधा भारत, बांग्लादेश और पूरा नेपाल है। सिन्धु और गंगा की सबसे बड़ी समस्या पनबिजली परियोजनाएं हैं, जिनसे पानी का बहाव प्रभावित होता है पर दूसरे देशों को इसकी जानकारी नहीं दी जाती है। बहाव के प्रभावित होने का असर जल और खाद्य सुरक्षा पर भी पड़ता है। सिन्धु और गंगा में बहाव इस कदर प्रभावित होता है कि कभी बाढ़ तो कभी सूखा की स्थिति आ जाती है। बाढ़ का असर ब्रह्मपुत्र नदी के क्षेत्र में भी रहता है।

इन नदियों को समन्वित तौर पर देखने की जरूरत है और इनके जल-ग्रहण क्षेत्र के प्रबंधन को बेहतर करना पडेगा। सम्बंधित देशों के बीच इन नदियों से सम्बंधित कुछ ऐतिहासिक समझौते हुए हैं पर उसमें तापमान बृद्धि के प्रभावों को शामिल करना जरूरी है। भारत और पाकिस्तान में वर्ष 2047 तक पानी की मांग में 50 प्रतिशत तक वृद्धि होने की संभावना है, इसमें से 15 प्रतिशत से अधिक वृद्धि केवल तापमान बढ़ने के कारण होगी।

यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार नदी जल प्रबंधन के क्षेत्र में दुनिया का सबसे पिछड़ा खेत्र दक्षिण एशिया है और इसका प्रभाव महिलाओं और बच्चों पर पड़ रहा है। इस पूरे क्षेत्र में 18 वर्ष से कम आयु के 34.7 करोड़ बच्चे पानी की कमी से जूझ रहे हैं और वर्ष 2022 में इस क्षेत्र के एक-चौथाई से अधिक बच्चों के लिए सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं था। संयुक्त राष्ट्र की वाटर डेवलपमेंट रिपोर्ट 2024 के अनुसार वैश्विक स्तर पर 2.2 अरब लोगों के लिए सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं है और 3.5 अरब आबादी स्वच्छता की सुविधा से वंचित है। यह समस्या दुनिया को अस्थिर करती जा रही है। वर्ष 2050 तक भारत में पानी की मांग दुगुनी होने की संभावना है, और यह देश पानी की कमी के सन्दर्भ में दुनिया का शीर्ष देश बन जाएगा।

वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टिट्यूट ने वर्ष 2023 के एक प्रेस रिलीज़ में बताया था कि दुनिया में पानी की मांग लगातार बढ़ती जा रही है और मांग को पूरा करने के चक्कर में जल संसाधनों पर बोझ बढ़ता जा रहा है। दूसरी तरफ जल प्रदूषण के कारण बहुत सारे जल संसाधन अब उपयोग लायक नहीं बचे हैं और तापमान बृद्धि के कारण दुनियाभर के जल संसाधन संकट में हैं। जल संसाधनों पर अत्याधिक बोझ तब माना जाता है जब कोई देश पूरे वर्ष के दौरान पानी की नवीनीकृत मात्रा में से 80 प्रतिशत या अधिक पानी का इस्तेमाल नियमित तौर पर कर लेता है। ऐसा करने वाले दुनिया में कुल 25 देश हैं, जिनमें से अधिकतर मध्य-पूर्व और अफ्रीका में हैं।

बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों में भारत अकेला इस सूची में शामिल है। यूरोप के तीन देश – बेल्जियम, सैन मरीनो और ग्रीस – भी इस सूचि में शामिल हैं। पानी की अत्यधिक समस्या से जूझ रहे 25 देश हैं – बहरीन, सायप्रस, कुवैत, लेबनान, ओमान, क़तर, यूएई, सऊदी अरब, इजराइल, ईजिप्ट, लीबिया, यमन, बोत्सवाना, ईरान, जॉर्डन, चिली, सैन मरीनो, बेल्जियम, ग्रीस, तुनिशिया, नामीबिया, साउथ अफ्रीका, इराक, भारत और सीरिया। इन 25 देशों की सम्मिलित आबादी दुनिया की कुल आबादी में से एक-चौथाई से अधिक है। इस सूचि में शामिल लगभग सभी देशों में परम्परागत तौर पर जल-संसाधनों की कमी है, पर भारत एकलौता देश है जहां पर्याप्त जल संसाधन हैं पर इनके कुप्रबंधन के कारण इस सूचि में शामिल है।

वर्ष 1960 के बाद से अब तक दुनिया में पानी की मांग दुगुनी से अधिक हो चुकी है और वर्ष 2050 तक यह मांग 20 से 25 प्रतिशत और बढ़ जायेगी। यूरोप और अमेरिका में पानी की मांग दशकों से लगभग एक सामान है, पर अफ्रीका और एशिया में इसकी मांग लगातार बढ़ती जा रही है। वर्तमान में दुनिया की आधी आबादी, यानि 4 अरब लोग, पूरे वर्ष में कम से कम एक महीने पानी की भीषण कमी का सामना करती है, पर वर्ष 2050 तक पानी की ऐसी कमी का सामना 60 प्रतिशत से अधिक आबादी करने लगेगी। पानी की कमी केवल साफ़ पानी की समस्या नहीं है, बल्कि इससे जीवन, रोजगार, कृषि, ऊर्जा सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण सभी प्रभावित होते हैं।

वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टिट्यूट के अनुसार वर्ष 2017 से 2021 के बीच भारत में पानी की कमी के कारण तापबिजली घरों में शीतकरण के लिए पर्याप्त पानी की उपलब्द्धता पर असर पड़ा, इससे 8.2 टेरावाट घंटा उर्जा का कम उत्पादन हुआ। आंकड़ों से भले ही इसका प्रभाव स्पष्ट नहीं हो पाए, पर 8.2 टेरावाट घंटा उर्जा से 15 लाख लोगों को पांच वर्ष तक लगातार विद्युत् आपूर्ति की जा सकती है। पानी के संकट के कारण वर्ष 2010 में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 24 प्रतिशत प्रभावित हुआ, पर अनुमान है कि वर्ष 2050 तक वैश्विक जीडीपी का 31 प्रतिशत, यानी 70 खरब डॉलर, प्रभावित होगा। दुनिया के चार देशों – भारत, मेक्सिको, ईजिप्ट और तुर्की – की लगभग आधी जीडीपी पानी की कमी से प्रभावित होगी।

पानी की कमी का कृषि पर व्यापक असर पड़ रहा है और यह भविष्य में खाद्य सुरक्षा के लिए खतरनाक है। दुनिया के कुल सिंचित क्षेत्र में से 60 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र पानी की कमी का सामना कर रहे हैं। इससे कृषि उत्पादकता में कमी आ रही है, दूसरी तरफ बढ़ती आबादी के कारण वर्ष 2050 तक वर्ष 2010 की तुलना में 56 प्रतिशत अधिक खाद्य कैलोरी की जरूरत होगी।

पानी की कमी से मध्य-पूर्व की 83 प्रतिशत आबादी और एशिया की 74 प्रतिशत आबादी जूझ रही है। वर्ष 2050 तक अफ्रीका में पानी की मांग 163 प्रतिशत और दक्षिण अमेरिका में 43 प्रतिशत तक बढ़ जायेगी। पानी के उचित प्रबंधन के लिए यदि वैश्विक जीडीपी का एक प्रतिशत प्रतिवर्ष खर्च किया जाए तब इसकी कमी से छुटकारा पाया जा सकता है, पर इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है और वैश्विक जीडीपी में पानी की कमी के कारण 7 से 12 प्रतिशत प्रतिवर्ष का नुक्सान उठाना पड़ रहा है।

पानी की कमी प्रजातंत्र और राजनीतिक स्थिरता को भी प्रभावित करती है। पानी की भयंकर कमी का सामना करने वाले 25 देशों की सूची से स्पष्ट होता है कि इनमें से अधिकतर देश निरंकुश सत्ता और तानाशाही की मार झेल रहे हैं और इन देशों में राजनीतिक स्थिरता कहीं नजर नहीं आती।

सन्दर्भ:

1. Hemant Ojha et al, Elevating River Basin Governance and Cooperation in the HKH region: Summary Report I, Yarlung-Tsangpo-Siang-Brahmaputra-Jamuna River Basin, (2024). DOI: 10.53055/ICIMOD.1034

2. Noah Kaiser et al, Elevating river basin governance and cooperation in the HKH region: Summary report II, Ganges River Basin, (2024). DOI: 10.53055/ICIMOD.1035

3. Russell Rollason et al, Elevating river basin governance and cooperation in the HKH region: Summary report III, Indus River Basin, (2024). DOI: 10.53055/ICIMOD.1036

4. The United Nations World Water Development Report 2024: Water for Prosperity and Peace – UN Water & UNESCO (2024)

5. 25 Countries, Housing One-quarter of the Population, Face Extremely High Water Stress - https://www.wri.org/insights/highest-water-stressed-countries

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