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RSS Theory: संघ की शाखा में पढ़ाया जाएगा-लाल रंग की गाय हरे रंग का चारा खाकर किस रंग का देगी दूध
file photo
वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार की टिप्पणी
RSS Theory : (जनज्वार)। आरएसएस राष्ट्रवाद का एक नया आख्यान रचना चाहता है। वह भारत के मध्यकालीन इतिहास (Middletime History) को मुसलमानों द्वारा हिन्दुओं के दमन के काल के रूप में प्रस्तुत करता है। वह यह दिखाना चाहता है कि जहां हिन्दू धर्म, भारत का अपना है वहीं इस्लाम और ईसाई धर्म, विदेशी हैं।
वह यह साबित करने के लिए भी जबरदस्त उठापटक कर रहा है कि आर्य, (Aryas) भारत के मूल निवासी थे। यहां तक कि विज्ञान और तकनीकी की हर उपलब्धि को वह प्राचीन भारत की देन बताने पर आमादा है। मूलत: वह भारत के कथित गौरवशाली हिन्दू अतीत और उस समय विद्यमान जातिगत और लैंगिक असमानता का महिमामंडन करना चाहता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना 1925 में नागपुर (Nagpur) में विजयदशमी के दिन हुई थी। तब से यह संगठन कभी फैलता कभी सिकुड़ता हुआ भारत को हिंदू राष्ट्र (Hindu Nation) में बदलने के मिशन में लगा हुआ है। आरएसएस काग़ज़ पर हिंदुत्व को धर्म नहीं जीवनशैली कहता है। लेकिन व्यवहार में मुस्लिम तुष्टीकरण, धर्मांतरण, गौहत्या, राम मंदिर, कॉमन सिविल कोड (Common Civil code) जैसे ठोस धार्मिक मुद्दों पर सक्रिय रहता है जो सांप्रदायिक तनाव का कारण बनते हैं। और अनगिनत रिपोर्टों के मुताबिक़ अक्सर इस संगठन की दंगों में भागीदारी का आरोप लगा है।
बीते 90 सालों पर नज़र डालें तो नज़र आता है कि आरएसएस के उठाए मुद्दे और गतिविधियां भले ख़ूनख़राबे, चुनावों के वक़्त धार्मिक ध्रुवीकरण और संप्रदायों के बीच नफ़रत का कारण बनते हों लेकिन वो कभी लक्ष्य की दिशा में निर्णायक मुक़ाम तक नहीं पहुंच पाते।
इसका कारण यह है कि आरएसएस का अपना एक हिंदुत्व है जिसका तैंतीस करोड़ देवी देवताओं वाले, सैकड़ों जातियों में बंटे, बहुतेरी भाषाओं, रीति रिवाज, परंपराओं, धार्मिक विश्वासों वाले उदार बहुसंख्यक समाज की जीवनशैली से कोई मेल नहीं है। आदिवासी और दलित भी उसके हिंदुत्व के खांचे में फ़िट नहीं हो पाते जो पलट कर पूछते हैं कि अगर हम भी हिंदू हैं तो अछूत और हेय कैसे हुए?
आरएसएस की एक और बड़ी मुश्किल यह है कि उसका इतिहास, उसके नेताओं की सोच और व्यवहार लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले आधुनिक भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान, क़ानून, अनूठी सांस्कृतिक विविधता और दिनों दिन बढ़ते पश्चिमी प्रभाव वाली जीवन शैली और समाज में बनते नए मूल्यों से बार-बार टकराते है।
अपने हास्यास्पद अभियानों के लिए चर्चित रहने वाले संघ ने अब अपने स्वयंसेवकों को संस्कारी, सदगुण संपन्न, चपल और निर्णय कुशल बनाने के मकसद से बड़े पैमाने पर नए क्विज गेम्स अपनाए हैं। इन्हें ई-शाखाओं में आसानी से खेला जा सकता है।
संघ के अखिल भारतीय कुटुंब प्रमुख रवींद्र जोशी का कहना है, 'सहज से दिखने वाले सवाल का जवाब भी बच्चे नहीं दे पाते। मसलन, लाल रंग की गाय हरी घास खाकर किस रंग का दूध देगी। जवाब लाल या हरा मिलता है तो हम अभिभावकों को प्रेरित करते हैं कि वे बच्चे को व्यावहारिक अनुभव कराएं।'
इसी तरह रामायण और महाभारत से जुड़ी कई क्विज भी बनाई गई हैं। इसमें स्वयंसेवक समूह में बंटकर दोनों ग्रंथों के 20-20 पात्रों के नाम बोलते हैं। जोशी बताते हैं, 'ई-शाखाओं के चलते लाठी-दंड के गेम पीछे छूट गए हैं। परिवार के बीच ये संभव भी नहीं हैं। ऐसे में ई-गेम्स कारगर हो रहे हैं। मालूम हो, 2016 में निकर की जगह भूरे रंग की फुल पैंट अपनाने के बाद पहला यह बड़ा बदलाव है।
संघ के सभी 45 प्रांतों ने विकसित किए ये गेम्स, स्थानीय खेल भी जोड़े--
ध्रुव गेम: इसमें स्वयंसेवक रामायण या महाभारत से कोई पात्र मन में सोचता है। बाकी तरुण उससे सवाल पूछकर सही नाम तक पहुंचते हैं।
शारीरिक व्यायाम: छोटे-छोटे अभ्यास जोड़े गए हैं। जैसे जमीन पर बैठने के बाद बिना सहारे खड़े होना, दोनों पैर फैलाकर माथा घुटने पर लगाना आदि।
पगड़ी: देश के महापुरुषों से परिचय कराने के लिए उनकी पगड़ी दिखाई जाती है। सबसे पूछा जाता है यह नायक कौन है।
गुण-दुर्गुण का कटोरा: इसमें अच्छी-बुरी आदतों की पर्ची होती है। स्वयंसेवक पर्ची निकालकर बताता है कि उसमें यह गुण/दुर्गुण है या नहीं। गुण अपनाने को प्रेरित करते हैं, दुर्गुण छोड़ने को।