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Delhi High Court : पत्नी की सहमति पर जोर दिया तो भड़के जज, कहा बीवी से सेक्स की उम्मीद पति का है अधिकार

Janjwar Desk
22 Jan 2022 11:52 AM GMT
Delhi High Court : पत्नी की सहमति पर जोर दिया तो भड़के जज, कहा बीवी से सेक्स की उम्मीद पति का है अधिकार
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बीवी से सेक्स की उम्मीद पति का है अधिकार

Delhi High Court : किसी अविवाहित जोड़ी के बीच यौन संबंध बनाने को लेकर वो बेपरवाही नहीं हो सकती है जो पति-पत्नी के बीच होती है। दिल्ली हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए कहा कि जहां अंतर साफ हो, उसमें समानता बताने की बेबुनियाद कोशिश बेईमानी ही होती है...

Delhi High Court : किसी अविवाहित जोड़ी के बीच यौन संबंध बनाने को लेकर वो बेपरवाही नहीं हो सकती है जो पति-पत्नी के बीच होती है। बता दें कि दिल्ली हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए कहा कि जहां अंतर साफ हो, उसमें समानता बताने की बेबुनियाद कोशिश बेईमानी ही होती है। बता दें कि हाई कोर्ट के जस्टिस सी हरिशंकर ने वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) को आपराधिक कृत्य घोषित करने की मांग वाली याचिका पर कोर्ट को मदद करने के लिए एमिकस क्यूरी नियुक्त की गईं रेबेका जॉन से बड़ी बात कही है। साथ ही उन्होंने कहा है कि 'वैवाहिक बंधन में बंधे लोग एक-दूसरे से यौन संबंध बनाने की उम्मीद करें, यह उनका अधिकार है जबकि जिसके साथ शादी नहीं हुई है, उससे इस प्रकार की उम्मीद तो की जा सकती है, लेकिन इसका अधिकार नहीं जताया जा सकता है।'

जज हुए नाराज

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार जस्टिस सी हरिशंकर मैरिटल रेप पर याचिका की सुनवाई करने वाली जस्टिस राजीव शकधर की पीठ का हिस्सा हैं। उन्होंने एमिकस क्यूरी रेबेका जॉन की दलील में यौन संबंध बनाने के लिए 'पत्नी की सहमति' की जरूरत पर बहुत ज्यादा जोर दिए जाने पर भी अपनी असहमति जाहिर की है। बता दें कि उन्होंने कहा कि संसद ने पतियों को संरक्षण प्रदान करने के लिए भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 में वर्णित अपवाद को न्यायोचित ठहराने के लिए कुछ तार्किक आधार तो दिए ही हैं।

पत्नी की सहमति पर जोर देने पर भड़के जज

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार जस्टिस हरिशंकर ने कहा था कि 'सहमति, सहमति, सहमति पर जोर दे-देकर हम पूरी दलील और (विधायिका द्वारा) दिए गए तर्कों को पूरी तरह उलझा रहे हैं। हम इस तथ्य को खारिज नहीं कर सकते हैं कि संसद संविधान को ध्यान में रखकर ही कानून बनाती है। खासकर एक क्रिमिनल केस में हम किसी ऐसे प्रावधान को यूं ही खारिज नहीं कर सकते हैं जो अपराध नहीं जान पड़ता है।'

कानून को बिना तर्क खारिज नहीं किया जा सकता

बता दें कि इस दौरान हाई कोर्ट जज ने कहा कि क्या कोर्ट विधायिका के मामले में दखल देकर किसी कानूनी प्रावधान को पलट सकता है, खासकर तब जब पहली नजर में संसद ने इसका तार्किक आधार बताया हो। साथ ही उन्होंने कहा कि 'दुर्भाग्य से मेरे सामने पहले दिन से यह सवाल उठ रहा है, लेकिन आज तक कोई जवाब नहीं मिल पाया है| हम किसी प्रावधान को खारिज करने का रास्ता तलाशने के लिए नहीं बैठे हैं।'

पति कर सकता है पत्नी से सेक्स की उम्मीद

शुक्रवार को सुनवाई शुरू होते ही जस्टिस सी हरिशंकर ने कहा कि कोई इस तथ्य को अनदेखा नहीं कर सकता है कि वैवाहिक और अवैवाहिक यौन संबंधों में अंतर होता है। सात ही उन्होंने कहा कि 'एक मामले में पुरुष के पास सेक्स की इच्छा जातने का कोई अधिकार नहीं होता है क्योंकि वो विवाह बंधन से बंधे नहीं होते हैं जबकि दूसरे मामले में पति के पास वैवाहिक बंधन से मिला अधिकार होता है जिसके दम पर वह अपनी पार्टनर से उचित यौन संबंध बनाने की उम्मीद कर सकता है।'

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