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Mohan Bhagwat : धारा 370 हटने के पहले कश्मीर का 80 फीसदी फंड नेताओं की जेब मे जाता था, मोहन भागवत का नया 'रिसर्च'

Janjwar Desk
17 Oct 2021 7:24 AM GMT
Mohan Bhagwat : धारा 370 हटने के पहले कश्मीर का 80 फीसदी फंड नेताओं की जेब मे जाता था, मोहन भागवत का नया रिसर्च
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(संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कश्मीर में धारा 370 को लेकर बयान दिया है) file pic.

Mohan Bhagwat : दशहरा पर मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि और जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर बयान दे चुके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कश्मीर को लेकर बयान दिया है..

Mohan Bhagwat : दशहरा (Dashahara) पर मुस्लिम जनसंख्या (Muslim population) वृद्धि और जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर बयान दे चुके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कश्मीर को लेकर बयान दिया है। भागवत ने कहा कि अनुच्छेद 370 के हटने से पहले जम्मू-कश्मीर को आवंटित होने वाला करीब 80 फीसदी फंड राजनेताओं की जेब में जाता था।

महाराष्ट्र के नागपुर में एक कार्यक्रम के दौरान भागवत (Mohan Bhagwat) ने दावा किया कि जम्मू कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद घाटी को सरकारी योजनाओं का सीधा लाभ मिल रहा है।

भागवत ने कहा, "अनुच्छेद 370 हटने से पहले कश्मीर घाटी (Kashmir Valkey) के लिए जो कुछ होता था उसका 80 फीसदी फंड नेताओं की जेब में जाता था न कि लोगों के पास। अब इसके हटने के बाद कश्मीर घाटी के लोगों की विकास और सरकारी योजनाओं तक सीधी पहुंच है।"

भागवत ने कहा, "मैं जम्मू-कश्मीर (Jaanu Kashmir) गया और मौजूदा स्थिति देखी। अनुच्छेद 370 हटने से सबके विकास का रास्ता खुल गया। अनुच्छेद 370 की आड़ में पहले लद्दाख के साथ भेदभाव होता था। यह भेदभाव अब नहीं होता।"

बता दें कि केंद्र सरकार (Modi Government) ने दो साल पहले अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया था। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था। उसके बाद से ही कश्मीर के राजनीतिक दल इसका विरोध कर रहे हैं।

कश्मीर में धारा 370 हटाए जाने और उसके विशेष राज्य का दर्जा वापस ले लेने के बाद से वहां विरोध प्रदर्शन भी हुए। जिसके बाद काफी दिनों तक राज्य में इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गईं। वहां के प्रमुख राजनेताओं महबूबा मुफ्ती, फारुख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला आदि ने खुद को नजरबंद किए जाने के भी आरोप लगाए थे।

बता दें कि दशहरा पर आरएसएस के स्थापना दिवस समारोह के मौके पर मोहन भागवत ने अपने संबोधन में मुस्लिम जनसंख्या को लेकर बातें कही थीं। उन्होंने कहा था कि वर्ष 1951 से 2011 के बीच जनसंख्या वृद्धि दर में भारी अंतर के कारण देश की जनसंख्या में जहां भारत में उत्पन्न मत पंथों के अनुयायियों का अनुपात 88% से घटकर 83.8% रह गया है। वहीं मुस्लिम जनसंख्या का अनुपात 9.8% से बढ़कर 14.24% हो गया है।

दशहरा पर नागपुर में भागवत ने कहा था कि उन्होंने कहा कि जनसंख्या नीति होनी चाहिए। हमें लगता है कि इस बारे में एक बार फिर विचार करना चाहिए। अभी भारत युवाओं का देश है। 30 साल के बाद ये सब बूढ़े बनेंगे, तब इन्हें खिलाने के लिए भी हाथ लगेंगे। और उसके लिए काम करने वाले कितने लगेंगे, इन दोनों बातों पर विचार करना होगा।

उन्होंने कहा, "अगर हम इतना बढ़ेंगे तो पर्यावरण कितना झेल पाएगा। 50 साल आगे तक विचार करके रणनीति बनानी चाहिए। जैसे जनसंख्या एक समस्या बन सकती है, वैसे ही जनसंख्या का असंतुलन भी समस्या बनती है।"

विजयदशमी के मौके पर संघ कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा, "हम लोगों के मन से आज भी देश के विभाजन की टीस खत्म नहीं हुई है। उस दुखद इतिहास के बारे में हमें जानना होगा। जिसके चलते देश का विभाजन हुआ है, उसे दोहराया नहीं जाना चाहिए।"

भागवत ने कहा, "इसलिए हमें पुराने इतिहास को जानना चाहिए ताकि खोये हुए लोगों को वापस गले लगा सकें। लेकिन ऐसी अखंडता की पहली शर्त रहती है कि भेद रहित और समता निहित समाज। इन्हीं कमियों के चलते कुछ बर्बर विदेशी आए और हमें पदाक्रांत करके चले गए। यह हमारी कमी से ही हुआ है।"

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