नफरत की राजनीति करने वालों को अगर दिल्ली देती है 40 फीसदी वोट तो क्या सांप्रदायिक मान लिया जाये उन्हें!
सांप्रदायिक नफरत के आधार पर बीजेपी को 40 फीसदी वोट तो यकीन मानिए कुछ महीनों में यह प्रतिशत 60-70 भी हो सकता है...
अबरार खान
चुनाव के दौरान विभिन्न राजनितिक पार्टियों के बीच आरोप प्रत्यारोप आम बात है, ये अलग बात है कि आरोप-प्रत्यारोप के स्तर को पिछले दिनों बहुत नीचे गिरा दिया गया है, इसमें भी कमोबेश सभी पार्टियों की भूमिका है, लेकिन भाजपा यहाँ भी सबसे आगे है। एक बार फिर दिल्ली में चुनाव ने इस बात को सही साबित किया है।
दिल्ली में चुनाव हो तो देश की राजधानी होने के नाते इसकी चर्चा न केवल पूरे देश में बल्कि दुनियाभर में होती है, इस बार भी हो रही है। दिल्ली चुनाव के मद्देनजर आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी की बात करें तो पाते हैं कि भाजपा की सभी राज्य सरकारें एवं केंद्र सरकार सुपर मेजोरिटी वाली हैं, जबकि दिल्ली की आप सरकार शानदार बहुमत के बावजूद भी पूरी तरह नख, शिख, दंत विहीन है क्योंकि उसके पास प्रशासनिक अधिकार न के बराबर हैं।
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विकास कार्यों के अप्रूवल के लिए भी आप सरकार भाजपा के पिट्ठू बन चुके एलजी पर पूरी तरह निर्भर है। ऐसे कई मौके आए जब एलजी ने विकास कार्यों में रोड़े अटकाए और इतनी अति कर दी की शुरू के 3 साल इसी में बीत गए। तीन साल बाद कोर्ट के दखल के बाद कहीं जाकर केजरीवाल सरकार के लिए काम करने की स्थिति बन पाई, फिर भी केजरीवाल सरकार के अधिकार क्षेत्र में जितना था उतना योगदान ईमानदारी से दिया।
केजरीवाल सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी तथा बिजली जैसी बुनियादी ज़रूरतों पर जोर दिया। केजरीवाल सरकार ने जो काम किया है उसकी तारीफ़ और आलोचना की जा सकती है, लेकिन इसी तरह अगर देशभर में राजनीतिज्ञ जनसरोकार के मुद्दे को सियासत में जगह दें तो देश की राजनीतिक दिशा बदल सकती है।
विकास की बात करें तो दिल्ली में जितना विकास 6 साल पहले हुआ था उतने पर ही रुका हुआ है, फिर चाहे सड़के हों, अस्पताल हों, स्कूल हों, रोजगार हो, फ्लाईओवर हों या परिवहन। इन सब में जो क्रांतिकारी बदलाव आया था वह आज के 6 साल पहले कांग्रेस के 10 साल के शासन में ही आया था। हालांकि वह 10 साल पूरे देश का गोल्डन एरा था उन 10 सालों में सिर्फ दिल्ली ही नहीं पूरे देश में बड़ी तेजी से विकास हुआ, फिर चाहे मुंबई-महाराष्ट्र हो, चाहे बेंगलुरु-कर्नाटक हो, चाहे गुजरात हो, राजस्थान हो या हरियाणा हो।
इन प्रदेशों में उल्लेखनीय विकास कार्य उन्हीं 10 सालों में ही हुआ था। चूंकि केजरीवाल सरकार नख, शिख, दंत, विहीन है, इसलिए 5 सालों में दिल्ली का विकास ना होने पर केजरीवाल को दोष नहीं दिया जा सकता। पॉलिटिकल पार्टियों और मीडिया ने भी केजरीवाल सरकार की खूब छीछालेदर की, उनकी राह में खूब रोड़े अटकाए बावजूद इसके केजरीवाल सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और पानी के मामले में उल्लेखनीय कार्य किया है, लेकिन मीडिया और केंद्र सरकार की जनविरोधी जुगलबंदी के कारण आंदोलन से निकली एक पार्टी अपने आप को विवादों से बचाए रखने के लिए डिफेंसिव मोड में चली गयी और जनांदोलनों का रास्ता छोड़ दिया।
इसी के कारण सोशलिस्ट तौर तरीके से कार्य करने वाली पार्टी, विकास करने वाली सरकार, जनता की मूलभूत सुविधाओं का ध्यान रखने वाली सरकार कई बार दिखावे के तौर पर बहुसंख्यक वोटों को साधने के लिए, ध्रुवीकरण रोकने के लिए या तो चुप्पी साध लेती है या फिर भाजपा की राह पर चलती दिखाई देती है, फिर चाहे धारा 370 के मुद्दे पर केंद्र सरकार का समर्थन हो, एनआरसी, सीएए, एनपीआर जैसे काले कानूनों के खिलाफ देशभर में हो रहे विरोध प्रदर्शनों से दूरी बनाए रखना हो या भाजपा की सांप्रदायिक और जनविरोधी नीतियों पर खामोशी अख्तियार करना, ये सब इसी का नतीजा है।
इन सबके बावजूद यदि शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं को केजरीवाल सरकार ने न सिर्फ़ बहस के केंद्र में लाकर खड़ा किया, बल्कि इस दिशा में केंद्र सरकार के तमाम अवरोधों के बावजूद भी उल्लेखनीय कार्य किया है।
अगर देश 35-40% वोटर सांप्रदायिक आधार पर वोट कर रहा है तो ये देश के लिए खतरनाक संकेत है, लेकिन यहीं पर ये देखना भी महत्वपूर्ण होगा कि जो 35-40% लोग साम्प्रदायिकता के आधार पर भाजपा को वोट कर रहे हैं आने वाले दिनों में इनकी संख्या बढती है या केजरीवाल सरकार के समर्थकों की तरह विकास और जनसरोकार राजनीति की दिशा तय करता है।
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एग्जिट पोल में दिखाया जा रहा है कि पूरे बहुमत से आम आदमी पार्टी सरकार बनाएगी, यदि एग्जिट पोल सही हो जाते हैं और आम आदमी पार्टी को बहुमत मिल जाता है तो आम आदमी पार्टी को विकास और आम आदमी के हित में खुल कर खड़ा होना चाहिए और साम्प्रदायिक धुर्वीकरण से डर कर सियासत करने से बचना चाहिए, मसलन, केजरीवाल सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि अन्य प्रदेशों की तरह वह भी CAA, NPR और NRC जैसे मुद्दों के खिलाफ मुखर होकर बोलें, अपनी विधानसभा में इसके विरोध में रिज़ोल्यूशन पास करें और इन काले कानूनों के विरुद्ध चल रहे आंदोलनों में उसी तरह शिरकत करें, जैसे इनके आंदोलन में इनके मुद्दों में देश की जनता ने इनका साथ दिया था।
इसके विपरीत, यदि केजरीवाल सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर चल रहे हैं तो ये स्पष्ट है कि सॉफ्ट हिंदुत्व से भाजपा के हार्डकोर हिंदुत्व को हराया नहीं जा सकता। केजरीवाल को अगर देश का नेता बनना है तो उन्हें विकास के साथ-साथ धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे पर भी मुखर होकर बोलना पड़ेगा।