भारत दौरे से पहले ट्रंप ने ट्रेड डील से किया इनकार, लेकिन नहीं रुकेगा हथियारों का सौदा
ट्रंप ने किसी भी तरह की ट्रेड से इनकार किया है ना कि आर्म्स डील से। यानि कि इस दौरे में ट्रेड डील जिसमें भारत को कुछ रियायत मिल सकती है वह भले न हो परंतु आर्म्स डील जरूर होगी। ध्यान रहे कि भारत अमेरिका को गुड्स एंड फूड की सप्लाई करता है और हम अमेरिका से सिर्फ हथियार खरीदते हैं...
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे पर अबरार खान की टिप्पणी
अमेरिकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप 24 फरवरी से भारत के बहुप्रतीक्षित दौरे पर आने वाले हैं। बहुप्रतीक्षित दौरा इसलिए क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप की अगवानी में भारत सरकार लगभग 100 करोड रुपए खर्च कर रही है। ट्रंप अहमदाबाद में मोटेरा स्टेडियम का उद्घाटन करेंगे। इस स्टेडियम में एक साथ 100000 से अधिक लोगों के बैठने की सुविधा है। इसी स्टेडियम में नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम के लिए एक हजार से अधिक अप्रवासी भारतीयों को बुलाया गया है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप अहमदाबाद में लगभग ढाई घंटे रुकेंगे और ढाई घंटे की सुरक्षा के लिए 65 एएसपी 200 इंस्पेक्टर 800 सब इंस्पेक्टर 12000 सिटी पुलिस के जवान तैनात किए जाएंगे। सेंट्रल फोर्स, एसपीजी, एनएसजी, एसआरपीएफ, सीआरपीएफ, आरएलडी आदि सब मिलाकर 25,000 जवान ट्रंप की सुरक्षा में लगेंगे। साथ ही मोटेरा स्टेडियम से लगी एक झोपड़पट्टी के 45 परिवारों को घर छोड़कर जाने का फरमान सुनाया गया है ताकि भारत की भव्यता में इनकी वजह से दाग न लग जाये। इतनी भव्य आगवानी तब हो रही है जब ट्रंप का यह दौरा उनका निजी दौरा है। चूंकि ये एक निजी दौरा है इसलिए ये भी साफ कर दिया गया है कि इस दौरे में कोई बिजनेस डील नहीं होगी।
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अब सवाल उठता है कि जब इस दौरे मैं किसी तरह की कोई डील नहीं होनी है, ट्रंप का यह दौरा आधिकारिक भी नहीं है तो फिर ट्रंप यह दौरा क्यों कर रहे हैं, वह भारत क्यों आ रहे हैं? सीधा सा जवाब है ट्रंप का यह दौरा पूरी तरह राजनीतिक है। अगले साल अमेरिका में होने वाले राष्ट्रपति पद के चुनाव के प्रचार का आगाज है। डोनाल्ड ट्रंप अपने इस भारतीय दौरे से अमेरिका में बसे अप्रवासी भारतीयों का दिल जीतना चाहते हैं। उनका वोट लेना चाहते हैं।
चूंकि आधिकारिक दौरे का पूरा लेखा-जोखा होता है। हिसाब किया जाता है कि इस दौर से देश को क्या हासिल हुआ ऐसे में ट्रंप अनौपचारिक दौरा करके यदि भविष्य में बड़ी डील का लालच देकर पहले से तय कुछ डील पर साइन करके लौटते हैं जो कि पूरी तरह अमेरिका के हित में होगी तो उसे अपनी उपलब्धि की तरह प्रस्तुत कर सकते हैं।
दो देशों के बीच जब व्यापारिक समझौते होते हैं तो वह परस्पर लेनदेन पर आधारित होते हैं। यानी हम किसी को कुछ बेचते हैं तो हमें उससे कुछ ना कुछ खरीदना भी पड़ता है। इस मामले में अब तक भारत काफी फायदे में रहा है। हम अमेरिका को निर्यात ज्यादा करते थे और आयात कम करते थे। ज्ञात रहे कि अमेरिका चीन के बाद भारत का सबसे बड़ा बिजनेस पार्टनर है जिसके साथ हम सबसे अधिक व्यापार करते हैं। पिछले साल भारत ने अमेरिका के साथ 142.6 बिलियन डॉलर का व्यापार किया था जो कि चीन के बाद सार्वाधिक है।
ट्रंप ने पहले ही घोषणा कर दी कि ये उनकी निजी यात्रा है और इस यात्रा में बिजनेस डील नहीं होगी तो ऐसे में जीएसपी की बहाली का सवाल ही नहीं उठता। यानि कि ट्रंप इस चुनावी साल में कोई भी ऐसी डील नहीं करेंगे जिसमें अमेरिका का घाटा हो या फायदा कम हो। इसके विपरीत उनकी कोशिश होगी कि इस दौरे में भारत अपने बाज़ार को अमेरिका के लिए और अधिक खोले टैक्स कम करे जिसे वे अमेरिकन जनता को अपनी उपलब्धि की तौर पर दिखा सकें।
सवाल उठता है कि जब किसी भी तरह की कोई बिजनेस डील होने की संभावना नहीं है जिसका ऐलान डोनाल्ड ट्रंप पहले ही कर चुके हैं तो फिर वह भारत से ऐसा क्या लेकर जाएंगे जो अमेरिकी जनता को दिखाएंगे। दरअसल यही सवाल सबसे गंभीर है। यह सवाल गरीबों की झोपड़ी के आगे बन रही दीवार से भी ज़रूरी सवाल है। यह सवाल भारत द्वारा 100 करोड़ खर्च करने से भी बड़ा सवाल है। यह सवाल ट्रंप की सुरक्षा में लगे हजारों जवानों से भी ज्यादा अहम है। यह सवाल ट्रंप की बुलेट प्रूफ कार, ट्रंप के स्पेशल बोइंग विमान में क्या-क्या सुविधाएं हैं उन सारे सवालों से बहुत ज्यादा गंभीर है।
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दरअसल ट्रंप ने किसी भी तरह की ट्रेड से इनकार किया है ना कि आर्म्स डील से। यानि कि इस दौरे में ट्रेड डील जिसमें भारत को कुछ छूट या रियायत मिल सकती है वह भले न हो परंतु आर्म्स डील जरूर होगी। ध्यान रहे कि भारत अमेरिका को गुड्स एंड फूड की सप्लाई करता है और हम अमेरिका से सिर्फ हथियार खरीदते हैं। हथियारों की सारी खरीद अभी तक हम रुस से करते थे (अब भी करते हैं) परंतु अब रुस की जगह अमेरिका ने ले ली है और फिलहाल भारत के सबसे अधिक हथियार अमेरिका ही सप्लाई कर रहा है और रूस दूसरे नंबर पर चला गया है।
ध्यान रहे कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था हथियारों की विक्री पर ही टिकी है। रूस और अमेरिका के साथ आर्म्स डील में फर्क ये है कि रूस से हमें हथियारों के साथ साथ उनकी तकनीक भी मिला करती थी जिसके कारण हम उन हथियारों की मरम्मत करने से लेकर स्वयं उत्पादन भी कर लेते थे। रूस के साथ तकनीकी आदान प्रदान के कारण ही आज हम युद्धपोत से लेकर लड़ाकू जहाज तक, मिसाइल से लेकर उपग्रह तक बनाने में सक्षम हो पाए हैं। वहीं दूसरी तरफ अमेरिका है जो अपने हथियार तो बेचता है परंतु टेक्नोलॉजी नहीं देता जिसके कारण हमारी निर्भरता हमेशा अमेरिका पर बनी रहती है।
आर्म्स डील ही ट्र्ंप की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी और यही डील सबसे बड़ा मुद्दा भी है जिसे समझने और उस पर चर्चा करने की जरूरत है। जब इस सवाल पर आ गए हैं तो आइए जानते हैं कि अमेरिका हमें कौन-कौन से हथियार बेचना है या हम पर थोपना चाहता है। इनमे है पहला है इंटरग्रेटेड एयर डिफेंस वेपन सिस्टम और दूसरा है मैरिटाइम हेलीकॉप्टर।
आइए जानते हैं इंटरग्रेटेड एयर डिफेंस सिस्टम क्या है इसकी भारत को कितनी जरूरत है। यह सिस्टम एक तरह की मिसाइल डिफेंस शील्ड है जो बाहर से होने वाले मिसाइल या ड्रोन हमले से बचाव या उसे एक सीमित दूरी पर मार गिराती है। वॉशिंगटन डीसी की सुरक्षा में यही मिसाइल सील्ड तैनात है। इसका निर्माण अमेरिका तथा नॉर्वे ने मिलकर किया था, इसका नाम है नेशनल एडवांस सर्फेस टू एयर मिसाइल सिस्टम। इसे ज़मीन पर तैनात कर हवा में मार की जाती है। यह सिस्टम ताकतवर आधुनिक राडार और नेवीगेशन सिस्टम से लैस ऐमराम मिसाइलों का जखीरा होता है।
जानकारी के अनुसार भारत 120 किलोमीटर रेंज तक मार करने वाला सिस्टम खरीद रहा है जिसकी डील लगभग पहले से ही तय हो चुकी है बस हस्ताक्षर करना बाकी है। यह डील 12,000 करोड़ की है जिसकी डिलीवरी यदि हम समय से पेमेंट कर पाए तो दो से चार साल के बीच हो जाएगी।
1. अब सवाल उठता है कि जब इजराइल के साथ साझेदारी में तैयार किया गया बराक 8 एयर डिफेंस सिस्टम हम पहले से ही न सिर्फ विकसित बल्कि तैनात भी कर चुके हैं तो हमें अमेरिका को 12,000 करोड़ देने की जरूरत क्यों है?
2. सवाल उठता है कि जब हम स्वयं ही एएडी (एडवांस एयर डिफेंस सिस्टम), पीएडी (पृथ्वी एयर डिफेंस सिस्टम) विकसित करने के कगार पर हैं तो हम अमेरिका को 12,000 करोड़ क्यों दे रहे हैं?
3. जब हमारा डीआरडीओ स्वयं ही बीएमडी (बैलेस्टिक मिसाइल डिफेंस) सिस्टम विकसित करने के नजदीक है तो इसी कार्य के लिए अमेरिका को 12,000 करोड़ क्यों दिए जा रहे हैं?
5. क्या इसके जरिए हम अमेरिका का व्यापार घाटा कम करने में अमेरिका की मदद कर रहे हैं या कहीं ऐसा तो नहीं कि हम ये डील सिर्फ दबाव में अमेरिका को और खुश करने के लिए कर रहे हैं या मोदी जी ये डील इसलिए कर रहे हैं कि मिसाइल का नाम एआईएम+आरएएएम (AIM+RAAM) है ?
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हालांकि यह ट्रंप का अधिकारिक दौरा नहीं है फिर भी ख़बर है कि मोदी सरकार ने ट्रंप को उपहार स्वरूप भारतीय बाजार में दुग्ध उत्पाद तथा कृषि उपकरणों को बेचने की इजाजत दे दी है। यदि ऐसा होता है तो भारत का डेरी उद्योग और जुगाड़ से कल्टीवेटर, रिपर, थ्रेसर आदि बनाने वाली भारतीय कंपनियां दिवालिया हो जाएंगी। ज्ञात रहे कि डेरी प्रोडक्ट भारत में न आने पाए इसी का बहाना करके भारत आरईसीपी से बाहर आया है। यदि अमेरिका के साथ किसी भी तरह की फ्री ट्रेड डील होती है तो ऐसे में सौदा भारत के फायदे का होगा। परंतु कुछ सेलेक्टेड एरियाज़ में सिर्फ अमेरिका को छूट देने से शेयर बाजार भले ही हैप्पी फील करे परंतु भारत की अर्थव्यवस्था जो अभी रेंग रही है उसका रेंगना भी रुक जाएगा।