दिल्ली में प्रदर्शन करने आए आदिवासी नेता ने कहा, शिक्षा का निजीकरण कर देगी आदिवासी बच्चों की बौद्धिक नसबंदी
केंद्र की मोदी सरकार और राज्य सरकारों की नीतियों के कारण देश के आदिवासी बेदखली, विस्थापन और सन्नाटे के बीच जीवन व्यतीत करने के मजबूर हैं आदिवासी, वन अधिकार कानून को लंबे समय से लागू करने की मांग, दिल्ली के जंतर मंतर पर किया बड़ा प्रदर्शन...
विकास राणा की रिपोर्ट
दिल्ली के जंतर-मंतर में आज देश के हजारों किसान और आदिवासियों ने सरकार की आदिवासी विरोधी नीतियों, जन विरोधी निर्णयों और करोड़ों आदिवासियों के अधिकारों की कीमत पर मुनाफा कमाने के खिलाफ जन आंदोलन किया। आंदोलन में देश के अलग अलग हिस्सों (मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश आदि ) से हजारों की संख्या में किसान आदिवासी एकजुट हुए। आदिवासी संगठनों ने वन अधिकार कानून को लागू करने की मांग की है।
सुनवाई की अगली तारीख यानी कि 26 नवम्बर 2019 तक सर्वोच्च न्यायलय का आदेश है कि लम्बित मामलों में कहीं कोई भी बेदखली की कार्यवाही वन विभाग नहीं कर सकता। फिर भी वन विभाग वनवासियों के घरों और खेतों को तबाह कर उन्हें जंगल छोड़ने पर मजबूर कर रहा है। इस प्रक्रिया में कई जगह हिंसक घटनाओं की भी खबर आई हैं। मध्यप्रदेश के बुरहानपुर और उत्तर प्रदेश के सोनभद्र इसके दो उदाहरण हैं। 13 फरवरी 2019 से अब तक यहां ऐसी तमाम घटनाएं हुई हैं।
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प्रदर्शनकारी राजीव डाबर ने जनज्वार को बताया, ' मैं मध्यप्रदेश में रहता हूं, 2003 में वन विभाग के अधिकारियों ने मुहिम चलाकर हमें घरों से निकाला और हमारे घरों मे आग लगा दी थी। साथ ही हमारे घर में रखे अनाज को भी जला दिया था। फिर 2014 मे भी इन लोगों ने दोबारा ऐसा ही किया। ये लोग हमारी जमीनों पर कब्जा करना चाहते थे।'
उन्होंने कहा कि 7 जून 2019 को हद तब हो गई जब वन विभाग के अधिकारी जेएसबी की मशीन लाकर हमारे खेतों में गड्डे करने शुरु कर दिए और जब हम विरोध करने लगे तो उन्होंने हमारे ऊपर गोलीबारी कर दी। उस घटना में गांव के ही दो लोगों की मौत हो गई जबकि 7 लोग भी घायल हो गए थे। राजीव आगे कहते हैं, 'सरकार अगर सोचती है कि वो हमारे ऊपर गोलीबारी करके हमारी जमीनों को हड़प लेगी तो वो गलत है। हम अपनी जमीन की सुरक्षा करते रहेंगे और जरूरत हुई तो अपनी जान भी दे देंगे।
मध्यप्रदेश से ही आए रमेश बताते हैं कि मेरा परिवार पिछले 20 - 25 सालों से खेती कर रहा है। हमारे परिवार का गुजारा इसी खेती से चलता है लेकिन वन विभाग के अधिकारी हमारे पास आकर धमकी देने लगते हैं कि अगर तुम लोग चंदा नहीं दोगे तो जमीन से बेदखल कर दिया जाएगा। जब हम कहते हैं कि कानूनी रुप से आप हम को नहीं हटा सकते तो अधिकारी कानून को मानने से इंकार कर देते हैं। वह कहते हैं कानून को हम नहीं मानते हमे ऊपर से आदेश मिला है हम उसी के अनुसार चलेंगे।
उन्होंने आगे कहा कि प्रशासन द्वारा हमारे साथियों को 15 साल पुराने मामले में जेल भेजा जा रहा है। कई लोगों के ऊपर राजद्रोह जैसे आरोप लगाए जा रहे हैं। हमारे घर की महिलाओं और बेटियों को मारा जा रहा है। हमें घरों से निकालने की बात की जा रही है।
रमेश सरकार को चेतावनी देते हुए कहते हं कि आदिवासी संसद बनने से पहले से देश में रह रहे हैं। हमारा देश मजदूरों और आदिवासियों का है। सरकार अगर ये सोच रही है कि हम लोग उनके कानूनों से डर जाएंगे तो वो गलत सोच रहे हैं। अगर सरकार सोच रही है कि हम गरीब मजदूरों को विस्थापित कर देगी तो वो यह समझ ले कि जब हम आपको सत्ता में बैठा सकते हैं तो सत्ता से हटा भी सकते हैं।
मध्य प्रदेश से आए आदिवासी किसान नेता राजेश कन्नौजिया कहते हैं कि प्रशासन और वन-विभाग के अधिकारियों द्वारा उन लोगों की जमीनों का कब्जा तो किया ही जा रहा जिनके पास जमीन का अधिकार पत्र नहीं, लेकिन जिन लोगों के पास जमीन का अधिकार पत्र है उनकी जमीनों पर मशीन के द्वारा गड्डे किए जा रहे हैं और जमीनों पर कब्जा किया जा रहा है। प्रशांत सरकार से 2006 के वन अधिकार कानून को लागू करने की मांग करते हैं।
राजेश आगे कहते हैं कि इलाके में अगर सड़क, स्कूल या अस्पताल बनाने हो तो हमारी जमीन पर कब्जा कर लिया जाता है, जबकि सरकारी स्कूल, अस्पताल बनाने के लिए अलग से जमीन का प्रबंध कर रखा है। फिर भी हमारी जमीन पर कब्जा किया जाता है। कानूनन आदिवासियों की जमीनों पर उनकी अनुमति के बिना कब्जा नहीं कर सकता है इसके बावजूद प्रशासन कानून को ताक पर रखते हुए हमारी जमीनों पर कब्जा कर रहा है।
राजेश ने जेएनयू में फीस वृद्धि को लेकर चल रहे बवाल पर भी अपनी राय रखी। उन्होंने कहा कि जहां पर गरीब-मजदूर और आदिवासी का बेटा पढ़ने आता है, मोदी सरकार उन संस्थाओं को खत्म कर रही है। शिक्षा का निजीकरण आदिवासियों के बच्चों की बौद्धिक नसबंदी कर देगी।