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शिक्षा

CAA विरोधी नाटक मंचित करने के बाद छात्रों पर हुआ था राजद्रोह का मामला दर्ज, अब कोर्ट ने कहा इससे नहीं फैली वैमनस्यता

Prema Negi
5 March 2020 4:44 PM GMT
CAA विरोधी नाटक मंचित करने के बाद छात्रों पर हुआ था राजद्रोह का मामला दर्ज, अब कोर्ट ने कहा इससे नहीं फैली वैमनस्यता
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अदालत ने कहा कि संवादों को अगर एक साथ पूरा पढ़ा जाए, तो कहीं भी वे सरकार के खिलाफ देशद्रोह नहीं कर रहे हैं और आईपीसी की धारा 124 ए के तहत जैसी सामग्री होनी चाहिए, प्रथमदृष्टया वैसा मामला नहीं बनता है....

जेपी सिंह की टिप्पणी

CAA-NRC और NPR के खिलाफ किए गए एक स्कूली प्ले पर दर्ज कथित राजद्रोह के मामले में कर्नाटक के बीदर की सेशन कोर्ट ने यह कहते हुए कि आईपीसी की धारा 124ए (राजद्रोह) के तहत आने वाली सामग्री की इस मामले में प्रथमदृष्टया कमी है, मंगलवार 3 मार्च को शाहीन प्राथमिक और उच्च विद्यालय के प्रबंधक अब्दुल कादिर को अग्रिम जमानत दे दी। अब्दुल कादिर अल्लामा इकबाल एजुकेशन सोसाइटी के अध्यक्ष और शाहीन ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के संस्थापक भी हैं। सत्र न्यायाधीश मनगोली प्रेमवथी ने कादिर की तरफ से दायर अर्जी को स्वीकार करते हुए 2 लाख रुपये के निजी मुचलके व इतनी ही राशि के तीन जमानती पेश करने की शर्त पर अग्रिम ज़मानत का आदेश दिया।

भियोजन पक्ष द्वारा आरोपी के खिलाफ राजद्रोह के आरोप में रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री पर टिप्पणी करते हुए अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड से ऐसा कुछ पता नहीं चलता है कि प्ले किए जाने के दौरान या जिस समय नाटक चल रहा था, उस समय अभियुक्त/याचिकाकर्ता वहां पर उपस्थित था। नाटक से समाज में किसी भी तरह की वैमनस्य पैदा नहीं हुआ है। सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए मेरी राय है कि आईपीसी की धारा 124ए (राजद्रोह) के तहत आने वाली सामग्री की इस मामले में प्रथम दृष्टया कमी है।

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भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के तहत राजद्रोह के अपराध का मामला एक शिकायत के आधार पर दर्ज किया गया था, जिसमें कहा गया था कि नाटक में एक छात्रा ने प्रधानमंत्री के खिलाफ अपमानजनक संवादों का इस्तेमाल किया था। इस पर अदालत ने कहा कि संवादों को अगर एक साथ पूरा पढ़ा जाए, तो कहीं भी वे सरकार के खिलाफ देशद्रोह नहीं कर रहे हैं और आईपीसी की धारा 124 ए के तहत जैसी सामग्री होनी चाहिए। प्रथम दृष्टया वैसा मामला नहीं बनता है।

च्चों ने जो व्यक्त किया है, वो यह है कि यदि वे दस्तावेज पेश नहीं कर पाते हैं तो उन्हें देश छोड़ना होगा। इसके अलावा, यह दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है कि उसने देशद्रोह का अपराध किया है। मेरे विचार में यह संवाद, सरकार के प्रति घृणा या असंतोष नहीं है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि पूरे राष्ट्र में यह पाया गया है कि CAA-NRC और NPR के खिलाफ रैलियां और विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और एक नागरिक के रूप में हर किसी को सरकार के उपायों के प्रति अस्वीकृति व्यक्त करने का अधिकार मिला है, ताकि कानूनी तरीकों से उनमें परिवर्तन प्राप्त किया जा सके। ये संवाद स्कूल में एक नाटक को आयोजित करने के दौरान प्रयोग किए गए थे। उक्त नाटक का मंचन 21 जनवरी को किया गया, लेकिन जानकारी 26 जनवरी को दी गई। अगर यह सब फेसबुक पर अपलोड नहीं किया जाता तो जनता को तो उस नाटक के संवाद के बारे में पता भी नहीं चलता।

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ईपीसी की धारा 153 ए के तहत उपद्रव या असामंजस्य पैदा करने के अपराध के संबंध में अदालत ने कहा कि नाटक में किसी अन्य समुदाय का कोई संदर्भ नहीं है। लेकिन सभी कलाकारों ने कहा है कि अगर वे प्रस्तावित CAA-NRC और NPR अधिनियमों के तहत आवश्यक कागजात पेश नहीं करते हैं तो मुसलमानों को देश छोड़ना होगा। जब पूरे नाटक में कोई अन्य धर्म नहीं है, तो दो धर्मों के बीच वैमनस्य या असामंजस्य पैदा करने का कोई सवाल ही नहीं है जो कि दंडनीय अपराध की मुख्य आवश्यकता है। अदालत ने यह भी कहा कि शाहीन शैक्षिक संस्थान छात्रों को गुणात्मक शिक्षा प्रदान कर रहा है और संस्थान को शिक्षा के क्षेत्र में उसकी उपलब्धियों के लिए कई पुरस्कार भी मिले हैं।

जनवरी को, एक सामाजिक कार्यकर्ता नीलेश रक्षयला ने पुलिस के पास शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें कहा गया था कि स्कूल प्रबंधन ने स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों का इस्तेमाल नाटक करने और सीएए और एनआरसी के खिलाफ जनता को गलत संदेश देने के लिए किया था। शिकायत में कहा गया है कि, नाटक में छोटे-छोटे बच्चे इस तरह की बात करते हुए नज़र आए कि सीएए और एनआरसी के लागू होने से देश के मुसलमानों को हिंदुस्तान से बाहर निकाल दिया जाएगा।

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सी क्रम में नाटक में एक बच्ची अपनी बात रखते हुए पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ असभ्य भाषा बोलते हुए नजर आई। इस नाटक में यह भी कहा गया कि एनआरसी और सीएए को लागू न होने देने के कारण एक समुदाय के लोगों को देश छोड़कर जाना पड़ेगा।

केस दर्ज करने के बाद पुलिस ने नाटक करने वाले बच्चों और इसे देखने वालों के बयान दर्ज किए। स्कूल की हेड मिस्ट्रेस और एक छात्र की सिंगल मदर को गिरफ्तार किया गया था। बाद में,हिरासत में 16 दिन बिताने के बाद उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया था। शिक्षा के क्षेत्र में अपनी सेवाओं के लिए कर्नाटक के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, 'कन्नड़ राज्योत्सव' पुरस्कार को प्राप्त करने वाले कादिर ने यह कहते हुए अदालत का रुख किया था कि उनका नाम एफआईआर में नहीं है। पुलिस ने इस पर आपत्ति करते हुए यह बयान दायर किया था कि अभियुक्त आर्थिक स्थिति अच्छी है, इसलिए वह अपनी शक्ति का उपयोग करके गवाहों को धमकियां दे सकता है और जांच में बाधा डाल सकता है। कथित तौर पर अपराध गंभीर प्रकृति का है और राष्ट्र के खिलाफ है। इसलिए वह जमानत का हकदार नहीं है।

दालत ने कादिर को निर्देश दिया है कि वह अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने तक सप्ताह में एक बार पुलिस स्टेशन में अपनी उपस्थिति दर्ज कराए और अपना पासपोर्ट अदालत में जमा करे। एक जनहित याचिका कर्नाटक हाईकोर्ट में लंबित है, जिसमें पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है। पुलिस कर्मियों पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने किशोर न्याय अधिनियम या जेजे एक्ट के तहत प्रक्रिया का उल्लंघन करके इस मामले में छात्रों से कथित रूप से पूछताछ की थी।

है कि बीदर के शाहीन स्कूल में एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ था, जिसमें बच्चों ने नागरिकता संशोधन क़ानून और राष्ट्रीय नागरिकता पंजीकरण (एनआरसी) के विषय पर नाटक का मंचन किया। इसमें 9 से 12 साल की उम्र के बच्चे शामिल थे। एक बच्चे के अभिभावक ने इस नाटक को सोशल मीडिया पर लाइव स्ट्रीम किया। नाटक में एक बूढ़ी महिला कहती है कि वो अपनी नागरिकता साबित करने के लिए अपने दस्तावेज़ नहीं दिखाएंगी और चप्पलों से 'मोदी' को मारेंगी। इस मामले में स्कूल मैनेजमेंट और नाटक का लाइव स्ट्रीम करने वाले अभिभावक के ख़िलाफ़ भी शिकायत दर्ज की गई है।

शाहीन स्कूल एक अल्पसंख्यक स्कूल है, जिसकी 9 राज्यों में 43 शाखाएं हैं। बीदर स्कूल में क़रीब 50 फ़ीसदी ग़ैर-मुसलमान छात्र पढ़ते हैं। बच्चों से अब तक इस मामले में 5 बार तक पूछताछ की गई है। इस घटना का सबूत तीन मिनट की एक वीडियो क्लिप है जिसे लाइव स्ट्रीम किया गया था। ये वीडियो क्लिप फ़िलहाल हटा दी गई है।

स्कूल का आरोप है कि मुसलमान अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान होने के कारण उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। एक छोटे से मामले को देशद्रोही गतिविधि बना दिया गया है। बच्चों से पांच बार पूछताछ करना उनका मानसिक उत्पीड़न के समान है और लंबे समय में इसका असर पड़ सकता है।

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