Begin typing your search above and press return to search.
जनज्वार विशेष

जनज्वार एक्सक्लूसिव : एनीमिया की सर्वाधिक बिकने वाली दवाओं में मिलाया जाता है मरे जानवरों का खून

Nirmal kant
12 Dec 2019 10:37 AM GMT
जनज्वार एक्सक्लूसिव : एनीमिया की सर्वाधिक बिकने वाली दवाओं में मिलाया जाता है मरे जानवरों का खून
x

दवा के नाम पर जब कोई ब्रांड या दवा का नाम लोगों की जुबान पर चढ़ जाता है तो वह दवा 'बेस्ट सेलर' बन जाती है और फिर यह बात मायने नहीं रखती कि दवा 'हानिकारक' है या गैरजरूरी! ...

खतरनाक दवाओं की गिरफ्त में कैसे है जिंदगी जानिये जनस्वास्थ्य चिकित्सक डॉ. एके अरुण से...

रीर में खून की कमी को पूरा करने के नाम पर बिकने वाला 'डेक्सोरेंज' नामक ब्रांड एक बेतुका लौह टॉनिक है। एनीमिया (शरीर में खून 'हिमोग्लोबीन' की कमी) के दवा के नाम पर बिकने वाले डेक्सोरेंज की सालाना बिक्री सौ करोड़ रूपये से ज्यादा की है। भारत में बिकने वाले सर्वश्रेष्ठ 300 दवाओं में इसका नंबर 11वां हैं। 'डेक्सोरेंज' दवा को बनाने वाली कंपनी की पुरानी फाइल देखें तो आपको जानकर हैरानी होगी कि यह कम्पनी 'डेक्सोरेंज' में बूचड़खाने से इकठ्ठा कर 'मरे हुए जानवरों का गंदा खून' मिलाती थी। कंपनी के दावे के अनुसार इससे प्रति मि.ली. 2-3 मि. ग्राम अतिरिक्त लोहा शरीर को मिल जाता है।

हां यह जान लेना जरूरी है कि दुनिया में कहीं भी किसी अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी के द्वारा 'एनीमिया की दवा में मरे हुए जानवरों का खून मिलाने की इजाजत नहीं है और किसी भी अन्य फॉर्मूलिटी में इसका जिक्र नहीं है। सवाल उठता है कि भारत में इस कंपनी को उपरोक्त आपत्तिजनक नुस्खे को बेचने की इजाजत किसने दी और कैसे दी? इसका स्पष्ट जवाब नहीं है। दरअसल शरीर में खून (हिमोग्लोबीन) बढ़ाने का दावा करने वाले डेक्सोरेंज को खून की कमी को खून से पूरा करने के कुतर्क से लैस सालों से यह धंधा चलाया जाता रहा।

संबंधित खबर : आयुष्मान भारत योजना की असलियत - देश के 90 फीसदी गरीबों के पास नहीं कोई स्वास्थ्य बीमा

कंपनी केवल अपने इसी बेतुके उत्पाद डेक्सोरेंज से दुनिया की बेस्ट सेलर कंपनी बन गई लेकिन भारत में सरकार की किसी भी दवा नियामक एजेंसी ने इस मूर्खतापूर्ण और बेतुके दवा के दावों को जांचने-परखने की जहमत तक नहीं उठाई और देश की भोली-भाली जनता बेवकूफी से खून बढ़ाने के नाम पर मरे हुए जानवरों का गंदा खून पीती रही। हालांकि अब आधिकारिक तौर पर डेक्सोरेंज मरे जानवरों का खून मिलाने की पाबंदी सरकार ने जारी की हुई है लेकिन हैरानी की बात है कि सन 1970 से बिक रही इस दवा पर प्रतिबंध लगाने में सरकार को तीस वर्ष लग गए और देश की बदकिस्मत जनता सालों से मर जानवरों का गंदा खून पीती रही।

बढ़ाने वाली दवाओं के लिए भारतीय औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई)का निर्देश यह है कि एनीमिया की दवा में फेरस या फेरिक लवणों वाले हिमोस्टेटिक नुस्खों से प्रोफायलेक्टिक (रोकथाम हेतु दी जाने वाली) खुराक में प्रति दिन 25-30 मि. ग्रा. लौह तत्व मिलना चाहिए और उपचारात्मक खुराक में 60-100 मि.ग्रा.। हालांकि सरकार के पास औषधि तकनीकी सलाहकार मंडल (डीटीएबी) के रूप में विशेषज्ञों का एक सक्षम समूह है लेकिन कंपनियों के प्रभाव के सामने ये भी प्रभावहीन हो जाते हैं। तभी तो डीटीएबी की विशेषज्ञ समिति ने आपत्तिजनक नुस्खे वाली दवाओं पर वर्षों तक चुप्पी साधे रखी और कम्पनियां मुनाफा खाती रहीं। गुणवत्ता और नैतिकता को ताक पर रखकर बड़ी दवा कंपनियां अपना धन बरोकटोक चलाती रहती हैं। यह एक निर्विवाद सच है।

स पूरे मामले में भारतीय मीडिया की भूमिका पर भी गौर करें। साल 2003 में जब यह मामला प्रकाश में आया तब मुख्यधारा की मीडिया ने एक स्वर में नकली दवाओं की बात करना शुरू कर दिया। हालांकि सरकार द्वारा गठित मशेलकर समिति (2002-03) ने स्पष्ट किया था कि नकली दवाओं को लेकर सरकार के पास कोई प्रमाणिक आंकड़े हैं। सरकार के अनुसार नकली दवाओं की मात्रा 0.24 से 0.47 प्रतिशत तक है लेकिन यथार्थ है कि बाजार नकली और संदिग्ध दवाओं से भरा हुआ है।

संबंधित खबर : जनस्वास्थ्य पर ‘पीएमएफ’ का दिल्ली में कार्यक्रम, डॉक्टर एके अरुण ने किए स्वास्थ्य घोटाले से जुड़े कई खुलासे

शेलकर समिति यह भी बताती है कि नकली दवाओं के खिलाफ कानून इतने लचर और कमजोर हैं कि इस अत्यंत मुनाफेदार धंधे को रोकना लगभग नामुमकिन है। क्यों नामुमकिन नकली और खतरनाक दवाओं के धन्धे को रोकना, यह समझने के लिए 'ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल' की रिपोर्ट पढ़ें। रिपोर्ट के अनुसार भारत में दवा कंपनियां सालाना 7,500 करोड़ रूपये रिश्वत पर खर्च करती है जिससे डॉक्टर, सरकारी बाबू और सब खुश हैं, दुखी है तो केवल मरीज।

हम बात कर रहे थे हानिकारक और गैर जरूरी दवाओं की लेकिन नकली दवाओं की कथित हेड लाइंस ने उस सवाल को लगभग बेमानी ही बना दिया। समझिए इस महत्वपूर्ण जानकारी से मुख्यधारा कहे जाने वाला मीडिया कैसे आपको महरूम कर देता है। अब भी सावधान हो जाइए। आप जानलेवा दवाओं की गिरफ्त में हैं और आपके रहनुमा आपकी लाशों के सौदागर हैं, यदि आप में जागरूकता नहीं आई तो एक-एक कर तिल-तिल कर मरते रहिए क्योंकि आप इसके लिए अभिशप्त हैं।

Next Story

विविध