Begin typing your search above and press return to search.
राष्ट्रीय

COVID-19 के डर से घरों में नहीं रहने दे रहे पड़ोसी, छात्रावास और आश्रम में रहने को मजबूर सफाईकर्मी, नर्सें

Nirmal kant
3 May 2020 2:42 PM IST
COVID-19 के डर से घरों में नहीं रहने दे रहे पड़ोसी, छात्रावास और आश्रम में रहने को मजबूर सफाईकर्मी, नर्सें
x

हैदराबाद के गांधी अस्पताल की नर्स कनक दुर्गा कहती हैं-आप नहीं जानते कि हम यहां कितना कठिन काम कर रहे हैं। हम कोविड 19 के रोगियों के इलाज के लिए पूरे दिन के लिए पीपीई किट पहनते हैं जिससे शरीर पर चकत्ते पड़ रहे हैं। हमें यहां खाने या ब्रेक लेने में भी मुश्किल हो रही है...

जनज्वार ब्यूरो। कुछ महीनों पहले हैदराबाद के गांधी अस्पताल में 15 सफाईकर्मी अपने कार्यस्थल और मेडचल जिले में चेंगिचेरला के नजदीर मेदिपल्ली गांव के बीच हर दिन नाली साफ किया करते थे। लेकिन कोविड 19 के बाद अब ऐसा नहीं है। बीते बीस दिनों से ये सफाईकर्मी अपने घरों तक जाने में असमर्थ हैं या वह अपने गांव में प्रवेश नहीं कर सकते हैं।

नके पड़ोस में 100-15 परिवार रहते हैं जिन्हें सफाईकर्मियों से नोवेल कोरोनावायरस के संपर्क का डर सकता रहा है, इसके परिणामस्वरुप ये स्वच्छता कार्यकर्ता गांधी अस्पताल में किसी आश्रम या शेल्टर होम में रह रहे हैं। यह आश्रम पहले से था जहां अस्पताल में कुछ मरीजों के रिश्तेदार रह सकते हैं। हालांकि क्यूंकि अस्पताल केवल कोविड 19 के मरीजों को भर्ती कर रहा है, जिसके कारण आश्रम खाली था, जिसमें सफाई कर्मियों को रहना पड़ रहा है।

संबंधित खबर : गरीबों को रोज 20 रुपए का खाना देने में अक्षम है सरकार, लेकिन 20,000 करोड़ की संसद बनाने पर हो गयी राजी

दुर्भाग्य से इन परिस्थितियों के कारण ये सफाई कर्मचारी और अन्य कई अस्पताल कर्मियों (नर्स, वार्ड स्टाफ, सिक्योरिटी गार्ड, चौकीदार आदि) को आसपास के अपने घरों और कॉलोनियों से दूर हो गए हैं। ये सभी लोग अब अस्पताल के आश्रम या अस्पताल के मेडिकल कॉलेज में छात्रावासों में रह रहे हैं।

में रहने वाले एक कार्यकर्ता ने बताया, हाल ही में कोविड 19 वार्ड में एक महीज ने उल्टी कर दी जिससे सभी लोग घबरा गए। हममें से ही एक सफाईकर्मी ने इसे साफ किया। यह ऐसा ही जोखिम है जिसे हम उठा रहे हैं। इन सफाईकर्मियों का कहना है, काम के दौरान होने वाले जोखिमों के लिए उन्हें बहुत कम मुआवजा मिलता है।

नाम ना छापने की शर्त पर एक अन्य सफाईकर्मी ने द न्यूज मिनट को बताया, इतनी मेहनत के बावजूद हमें वेतन में बढ़ोत्तरी नहीं मिलती है। हमें प्रतिमाह केवल सात हजार रुपये मिलते हैं। हमने अपनी तनख्वाह बढाने के लिए कई बार आग्रह किया है लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ है।

न सफाईकर्मियों के लिए शेल्टर में भोजन की कोई विशेष व्यवस्था नहीं है। उन्हें स्टाफ की नर्सों के पास जाना पड़ता है और व्यक्तिगत रुप से भोजन के लिए कहना पड़ता है जो आमतौर पर रोगियों के लिए दिन का खाना पकाती हैं। एक सफाईकर्मी ने बताया कि घर वापस जाने पर ग्रामीण कहते हैं कि गांधी अस्पताल के कर्मचारियों को केवल तभी आने दिया जाएगा जब उन्हें प्रमाण पत्र मिल जाएगा कि कोविड 19 के लिए टेस्ट निगेटिव आया है।

संबंधित खबर : COVID-19 के मेडिकल कचरे से सफाई कर्मचारियों को सबसे ज़्यादा ख़तरा!

नक दुर्गा बीते 13 वर्षों से गांधी अस्पताल में एक नर्स के रुप में काम कर रहीं हैं। द न्यूज मिनट से वह कहती हैं, लॉकडाउन से पहले जब हम गांधी अस्पताल में ड्यूटी के बाद अपनी कॉलोनी में प्रवेश करते थे तो हमारे पड़ोसी हमसे बात करते थे। हमसे पूछते थे कि हमारा दिन कैसा बीता। अब हमारा कोई पड़ोसी हमसे बात नहीं कर रहा है। अगर वे बात करते भी हैं तो वे शिकायत करते हैं कि हम इलाके को नहीं छोड़ रहे हैं और उन्हें कोविड 19 का जोखिम है।

नक एक अकेली विधवा हैं जो अपने बीमार पिता की जिम्मेदारी निभाती हैं जो उनके साथ रहते थे। हालांकि जब उसने अपने आप को अपने मूल स्थान पर शिफ्ट कर लिया तो उसे गांधी अस्पताल के छात्रावास में रहने के लिए मजबूर किया गया।

नक के अलावा 18 अन्य नर्सें भी मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल में रह रही हैं चूकि उन्हें गृहनगर और कॉलोनियों में विभिन्न मुद्दों का सामना करना पड़ रहा है। इससे पहले उनमें से कुछ को छत पर या घर में सोने के लिए अलग कमरा बनाया गया था, उन्हें अपने घरों में किसी को भी छूने की अनुमति नहीं थी।

अन्य नर्स ने अपनी एक साथी नर्स के बारे में बताती हैं, वह एक स्तनपान कराने वाली मां है जिसे अपने शिशु को घर वापस लाने की अनुमति नहीं दी जा रही है। शिशु केवल दूसरे दूध के उत्पादों पर ही जीवित रहता है क्योंकि पिता को डर है कि बच्चा मां के दूध से संक्रमित हो सकता है। जबकि मां का टेस्ट निगेटिव आया है।

स बीच अस्पताल में काम कर रहे ये सफाईकर्मी शारीरिक और मानसिक रुप से तनाव भी महसूस कर रहीं हैं। कनक दुर्गा कहती हैं, आप नहीं जानते कि हम यहां कितना कठिन काम कर रहे हैं। हम कोविड 19 के रोगियों के इलाज के लिए पूरे दिन के लिए पीपीई किट पहनते हैं जिससे शरीर पर चकत्ते पड़ रहे हैं। हमें यहां खाने या ब्रेक लेने में भी मुश्किल हो रही है।

संबंधित खबर : ‘भीलवाड़ा मॉडल’ को सफल बनाने वाले सफाईकर्मियों को ताली-थाली नहीं, 50 लाख का स्वास्थ्य बीमा देगी गहलोत सरकार

नक गांधी अस्पताल में काम करने वाली लगभग 200 आउटसोर्स नर्सों में से एक है। हाल ही में उन्होंने 15 वर्षों से अस्पताल में काम करने वाली नर्सों को नियमित करने की मांग को लेकर अपने काम को रोक दिया था। हालांकि मरीजों की दुर्दशा को देखते हुए वे सिर्फ एक दिन बाद काम पर लौट आए थे।

उटसोर्स कर्मचारियों के सामने एक बड़ी समस्या यह भी है कि वे फ्रंटलाइन वर्कर्स के लिए केंद्र द्वारा घोषित 50 लाख रुपये के बीमा कवर के लिए भी अयोग्य हैं। यह योजना केवल नियमित कर्मचारियों पर लागू होती है।

स महीने के शुरू में ड्यूटी का बहिष्कार करने वाली नर्सों में से एक ने बताया था कि उनके काम की स्थिति काफी कठिन है। नर्स ने कहा कि अगर पांच रोगियों को छुट्टी दी जा रही थी, तो 45 अन्य लोगों को दैनिक रूप से अस्पताल में भर्ती कराया जा रहा था।

Next Story

विविध