साइबर ठगों के गढ़ पहुंचा 'जनज्वार', झारखंड के इसी गांव में रहते हैं ऑनलाइन ठगी के बड़े-बड़े जालसाज
संताल परगना में साइबर ठगी का खौफनाक खेल, अब आपके पहचान पत्र पर खुल जाएगा फर्जी खाता, डिजिटल युग में अब बनारस नहीं संताल परगना के साइबर ठग देश में हो गए हैं मशहूर...
झारखंड के देवघर से राहुल सिंह की विशेष रिपोर्ट
झारखंड के जामताड़ा से शुरू हुआ साइबर ठगी का जाल अब संताल परगना प्रमंडल सहित राज्य व देश के अन्य जिलों तक पहुंच रहा है। साइबर ठग इस अपराध को अंजाम देने के लिए नए-नए तरीके अपनाते हैं। ठगी के लिए अमल में लाए जाने वाले इन तरीकों से बैंकों के कामकाज के तरीके पर भी सवाल उठता है कि आखिर क्यों वे फर्जी दस्तावेजों की पहचान नहीं कर पाते और एकाउंट टू एकाउंट ठगी के पैसों की रिकवरी भी क्यों आसान नहीं हो पाती।
केस 1: आपने किसी बैंक में खाता खोलने के लिए आवेदन ही नहीं किया है और एक के बाद एक कई बैंकों में आपका खाता खुल जाए और उससे गलत पैसे का ट्रांजेक्शन होने लगे, जिसके बारे में आपको पता भी नहीं है और फिर पुलिस आपको ढूंढते हुए आपके घर तक पहुंच जाए तो आप बेचैन होंगे या नहीं।
केस 2: फिर आपके पास फेसबुक मैसेेंजर पर आफिस जाते वक्त किसी करीबी दोस्त, रिश्तेदार या अन्य पहचान के व्यक्ति का संदेश आए कि अर्जेंट है, अस्पताल में हूं या फिर यह जरूरी काम है, तुरंत पैसे चाहिए 10 हजार रुपये है तो मुझे ट्रांसफर कर दो। आप हड़बड़ी में होंगे तो यही कहेंगे कि ठीक है एकाउंट नंबर भेजें पैसे ट्रांसफर कर दूंगा। लेकिन जिसके नाम से आपको यह संदेश आया हुआ दिखता है, दरअसल उसने इसे भेजा ही नहीं है। इसे तो किसी साइबर ठग ने आपको आपके करीबी का मैसेंजर हैक कर भेजा और आप ठग लिए गए। दरअसल, साइबर अपराध के माहिर मैसेंजर हैक कर मल्टीपल लोगों को मैसेज भेजते हैं कि कहीं तो दाल गल जाए।
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दरअसल, झारखंड के संताल परगना में आजकल ऐसा ही हो रहा है। इसके चपेटे में आसपास के जिले के लोग तो आते ही हैं, दूरदराज के लोग भी आ जाते हैं। साइबर क्राइम का यह एडवांस स्टेज माना जा सकता है, क्योंकि इससे पहले जो तरीके प्रयोग में आते थे उस पर बहुत चर्चा होती रहती है और साइबर ठग अपने फर्जीवाड़े को आगे बढाने के लिए ऐसे नए तरीके ईजाद कर रहे हैं।
जामताड़ा से शुरू हुआ यह गोरखधंधा तेजी से फैल रहा है
साइबर ठगी का खेल जामताड़ा जिले से 2008-09 के करीब शुरू हुआ था। जामताड़ा जिले में एक प्रखंड है करमाटांड़, जहां के कुछ लड़कों ने इस काम को शुरू किया था। शुरू-शुरू में मोबाइल के बैलेंस का हेरफेर होता था। जैसे किसी व्यक्ति से 100 रुपये लेकर उसके मोबाइल को डेढ सौ या 200 रुपये से रिचार्ज करा देना। लोग पैसे बचाने के लोभ में इन ठगों को प्रश्रय देते गए और फिर यह धंधा एटीएम ठगी और फिर बैंक खाते व ऑनलाइन ट्रांजेक्शन से ठगी और अब फर्जी बैंक खाते खुलवाने तक के संगठित अपराध करने तक फैल गया। एक मोटी जानकारी के अनुसार, करीब एक हजार लड़के इस धंधे से मौजूदा समय में जुड़े हो सकते हैं। इस धंधे में इजी मनी होने के कारण जान पहचान के दूसरे लड़के भी इस काम में शामिल हो जाते हैं। जामताड़ा, देवघर व गिरिडीह जिले में कई ऐसे गांव हैं, जहां साइबर ठगों ने भव्य मकान बनाए हैं और उस पैसे का बाद के दिनों दूसरे धंधे में निवेश किया है।
साइबर अपराध के कैसे-कैसे तरीके
संताल परगना में साइबर अपराध के नए-नए तरीके सामने आ रहे हैं। एटीएम मशीन व कार्ड से हेरफेर अब एप पर यूपीआइ जेनरेट कर पैसे के ट्रांसफर तक पहुंच गया है। कब आपका यूपीआइ जेनरेट कर उससे पैसा उड़ा लिया जाएगा, यह आपको पता भी नहीं चलेगा और अपराधी इस काम को अंजाम दे देंगे।
एक शख्स ने जब एक डीटीएच कंपनी के लोकल सर्विस सेंटर का नंबर गूगल पर सर्च किया तो उसका साबका साइबर अपराधियों से पड़ गया। इस तरह से ठगी करने के मामले में देवघर के पालोजोरी से 2018 में पहली गिरफ्तारी हुई थी। इस मामले में कोई व्यक्ति कुरियर कंपनी का नंबर सर्च करते हुए साइबर ठग के झांसे में आ गया था।
आपको कोई लिंक मेल या एसएमएस पर भेज कर उसको भरने के झांसे में लाकर आपका पैसा मारा जा सकता है। किसी बड़ी कंपनी के प्रतिनिधि के रूप में आपको फोन कर भी आपको झांसे में लेकर आपका पैसा ट्रांसफर किया जा सकता है।
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अपराधी कई बैंक खातों और कई मोबइल के जरिए ठगी को अंजाम देते हैं और फोन काॅल कर लोगों को पहले विश्वास में लेते हैं फिर पैसा ट्रांसफर कर लेते हैं। ऐसा छोटे झुंड में कहीं खाली जगह पर, जंगल-झाड़ में जहां पुलिस की दबिश होने पर भागना आसान हो, उंचाई पर जहां फोन का नेटवर्क अच्छा हो, ऐसा किया जाता है।
लाॅटरी का लोभ देकर भी ठगी
हमारी मुलाकात देवघर साइबर थाने में प्रिया नाम की एक ऐसी लड़की से हुई जिसके पास देश की एक टाॅप टेलीकाॅम कंपनी का प्रतिनिधि बताते हुए एक साइबर ठग ने फोन किया और बताया कि आपको 25 लाख रुपये की लाॅटरी लगी है। आप इसे पाने के लिए 14 जनवरी तक फलाने खाते में 33 हजार रुपये जमा कर दें। प्रिया ने लाॅटरी के लोभ में पैसा जमा कर दिया और अब पैसे की रिकवरी के लिए वह थाने का चक्कर लगा रही है। फोटो खींचने के लिए कहने पर वह मना करती हैं और कहती हैं कि मेरी जग हंसाई होगी, पैसा भी गया और तस्वीर छपने के बाद लोग बेवकूफ भी कहेंगे। यह पूछने पर कि जब साइबर अपराध के लिए इतनी जागरूकता लायी जा रही है तो उसने बैंक में पैसे कैसे जमा कर दिए, वह कहती हैं - कुआं में गिरने पर ही पता चला न।
गांव के लोग बात करने को तैयार नहीं
संताल परगना के जो गांव साइबर ठगी को लेकर बदनाम हुए हैं, वहां के ग्रामीण पत्रकारों से बात करने को तैयार नहीं होते। वे पत्रकार से तभी तक इस मुद्दे पर बात करते हैं जब तक यह नहीं जानते कि सामने वाला पत्रकार है। इसकी दो वजहें हो सकती हैं: मीडिया में खबरें छपने से गांव की बदनामी होगी, दूसरा अपराधियों से क्यों बैरत ली जाए। कुछ गांव ऐसे हैं जहां पुलिस भी घुसने से परहेज करती है।
देवघर-दुमका रोड पर स्थित पेड़े के लिए मशहूर कस्बा घोड़माड़ा व उसके आसपास का इलाका हाल के सालों में साइबर अपराधियों के लिए चर्चित हो गया है। कपिल देव नाम के यहां के एक पेड़ा विक्रेता ने स्वीकार किया कि आसपास के कई लड़के इस धंधे में हैं और पुलिस अक्सर इधर उनकी तलाश में आती है। वहीं बैंक में काम करने वाले कुतुबद्दीन नामक एक शख्स ने कहा कि इस धंधे में संपन्न व गरीब दोनों तरह के परिवारों के लड़के हैं। उन्होंने अपने गांव के बगल के एक गांव के एक शिक्षक के बारे में बताया कि उनका बेटा साइबर ठगी में पकड़ाया और पूछने पर कहा कि मोबाइल पर गलती से पैसे के ट्रांसफर हो गया। वे कहते हैं कि समय के साथ अपराध करने का तरीका बदला। जैसे पहले लूट की जाती थी, उसी तरह अब साइबर ठगी की जाती है। साइबर ठगी करने वाले अधिकतर लड़के 18 से 30 की उम्र के बीच के होते हैं।
कैसे चलता है गिरोह
साइबर ठगी पर फोकस्ड काम करने वाले एक अधिकारी ने कहा कि साइबर ठगी के कई तरीके हैं और वे नये तरीके खोज लेते हैं। इस मामले में जो युवा दोबारा जेल चले जाते हैं, वे इसे करने का तरीका बदल देते हैं। वे जल्दी इस पेशे से बाहर नहीं आते क्योंकि इसमें इजी मनी है।
उक्त पुलिस अधिकारी का कहना है कि बहुत सारे ऐप हैं, जिसमें एटीएम का डिजिट डालने पर एकाउंट नंबर आ जाता है। इसके लिए वे मल्टी सिम का प्रयोग करते हैं। स्थानीय लड़के पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले में जाते हैं जहां यहां के माइग्रेंट लेबर होते हैं। उनसे वे थोक में सिम लेकर आते हैं और उससे अपराध को अंजाम देते हैं। अपराधी विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफाॅर्म पर भी नजर रखते हैं और खासकर बैंक व क्रेडिट कार्ड कंपनियों के सोशल मीडिया एकाउंट पर। वहां कई बार खुले तौर पर शिकायत करने वाला कोई शख्स इन साइबर ठगों की चपेट में आ जाता है और एक और ठगी का शिकार हो जाता है।
साइबर ठगों का जाल अब संताल परगना से निकलकर अन्य राज्यों तक फैल गया है। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की पत्नी व सांसद एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री परनीत कौर से 23 लाख की ठगी की जांच में इस मामले का जामताड़ा से पंजाब का लिंक सामने आया। जामताड़ा के साइबर ठग अताउल की पंजाब के मंडी गोविंदगढ़ के रहने वाले अफसर अली में किसी जेल में दोस्ती हुई थी। इस दोस्ती के बाद अफसर अली अताउल व जामताड़ा के अन्य साइबर ठगों को एकाउंट नंबर व फर्जी सिम उपलब्ध कराता था और ठगी की रकम में शेयर लेता था। उसे हाल में पेशी के लिए जामताड़ा लाया गया।
पैसों के रिकवरी की कितनी संभावना
साइबर ठगी के शिकार लोगों का पैसा अगर एकाउंट टू एकाउंट यूपीआइ, ऑनलाइन बैंकिंग या अन्य माध्यमों से ट्रांसफर होता है तो उसके वापस आने की संभावना थोड़ी-बहुत होती है। काफी जोर लगाने पर ही पैसा रिटर्न होता है लेकिन वह कब होगा, कितने महीने में होगा इसका कोई मजबूत सिस्टम नहीं है। जबकि आरबीआई जिस तरह साइबर ठगी को लेकर जागरूक करने का प्रयास करता है, उसमें एकाउंट टू एकाउंट ट्रांसफर पर कस्टमर की शिकायत के बाद आसान रिकवरी की व्यवस्था होनी चाहिए।
देवघर की साइबर डीएसपी नेहा बाला कहती हैं कि युवाओं में साइबर क्राइम को लेकर जागरूकता लाना जरूरी है और लोगों को भी सचेत होना पड़ेगा। नेहा एक तेज-तर्रार अधिकारी हैं जो साइबर क्राइम के नियंत्रण की कोशिशों को लेकर काफी एक्टिव हैं।
झारखंड में कुल सात साइबर थाने हैं जिसमें तीन संताल परगना में और एक बिल्कुल सटे जिले गिरिडीह में है। संताल परगना में जामताड़ा, देवघर व दुमका में साइबर थाना है। वहीं राज्य के रांची, धनबाद व जमशेदपुर जैसे तीन प्रमुख शहरों में भी साइबर थाना है। बोकारो में एक साइबर थाने की स्थापना प्रस्तावित है।
एमबीए के छात्र अभिषेक सौरभ के नाम से कई बैंकों में खोल लिया खाता
संताल परगना में साइबरी ठगी कितना खौफनाक रूप ले चुका है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक छात्र अभिषेक सौरभ जो अपने घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर बेंगलुरु में पढाई कर रहा है, उसके नाम से यहां के साइबर ठग ने कई बैंकों में फर्जी एकाउंट खोल लिए। उन खातों का उपयोग सौरभ कुमार यादव नामक साइबर ठग साइबर ठगी के पैसों का ट्रांजेक्शन के लिए करता था और उसे पिछले ही हफ्ते पुलिस ने गिरफ्तार किया है।
देवघर के देवीपुर प्रखंड का पत्थरचपटी गांव का रहने वाला सौरभ एक सीएसपी यानी काॅमन सर्विस प्वाइंट का संचालक है, जहां कई सारे लोगों-ग्राहकों का आना-जाना होता है। इस काम को करते हुए वह साइबर ठगी भी करता था। उसने देवघर शहर निवासी विपिन यादव के बेटे अभिषेक सौरभ के कहीं से प्राप्त आधार कार्ड की काॅपी का उपयोग करते हुए कई बैंकों में खाता खोल लिया और उसका उपयोग साइबर ठगी के लिए करता था।
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जांच में यह पता चला कि किसी शख्स ने इनके बेटे का आधार कार्ड यूज किया है और उस पर अपना फोटो चिपकाकर उसका गलत ढंग से उपयोग किया है। बैंक के ओपनिंग फाॅर्म में उसने अपना खुद का फोटो, आधार नंबर उनके बेटे का, पिता का नाम विपिन यादव ही जबकि मां का नाम कुछ और लिखा है। साजिशकर्ता सौरभ यादव ने फार्म में पैन नंबर भी गलत लिखा और हस्ताक्षर भी खुद का किया। यह खाता देवघर के बंपास टाउन एसबीआइ शाखा में 11 नवंबर 2016 को खोला गया। फिर उस ठग ने बंधन बैंक में खाता खोला। इसकी भी शिकायत की गयी।
साइबर ठग सौरभ कुमार यादव
पेनियर बाय ऐप पर भी लड़के के नाम से फेक एकाउंट बनाया गया और उससे गलत ट्रांजेक्शन किया गया जिसके बाद ऐप के प्रतिनिधि भी उनके घर पहुंचे थे। इसकी भी शिकायत की गयी। फिर इसी साल 15 जनवरी को आईसीआईसीआई बैंक के एक प्रतिनिधि ने बताया कि उसके यहां खाता खोलने के लिए आवेदन दिया गया है और उसमें आधार नंबर अलग है। पैन नंबर अलग है। पिता का नाम विपिन चंद्र और अपना नाम अभिषेक गौरव लिखा है जबकि घर का पता सुभद्रा सदन, नियर बाजला चौक है, जो गलत है। दरअसल जालसाज लगातार अभिषेक सौरभ के दस्तावेज का गलत उपयोग कर रहा था और उसका मनोबल बढ़ता गया। इसलिए वह एक के बाद एक बैंक में उसके नाम से फर्जीवाड़ा कर एकाउंट खुलवाने के अभियान में जुटा रहा और इसी में धरा गया।