मनोज झा ने कहा, हम जो संसद में में नहीं कर पाए, उसे शाहीन बाग की सड़कों ने कर दिखाया
राज्यसभा सांसद मनोज झा ने राज्यसभा में कहा- देश का बदल रहा स्वभाविक चरित्र, अगर फिर से वापसी नहीं की तो तालिबान भी पराया नहीं लगेगा....
जनज्वार। राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद मनोज झा बुधवार को एक बार फिर संसद में जमकर गरजे। इस दौरान झा ने कहा कि 11 दिसंबर की शाम जब यह विधेयक (नागरिकता संशोधन अधिनियम) यहां पारित हुआ हम तो मायूस होकर चले गए थे कि हम इस संविधान व इसकी प्रस्तावना को स्याह करने की कोशिश से बचा नहीं पाए। लेकिन सड़कें रोशन हो गईं। शाहीन बाग की सड़कों ने जिंदा कर दिया।
मनोज झा ने आगे कहा कि मैने आजतक अपनी जिंदगी में इस तरह का स्वतः स्फूर्त आंदोलन (शाहीन बाग) नहीं देखा। हमने मजाज का शेर सुना था कि 'तेरे माथे पे ये आंचल बहुत खूब है लेकिन तुम इस आंचल से एक परचम बना लेते तो अच्छा था।' शाहीन बाग ने आंचल का परचम बनाया है। इस परचम को हम जैसे हर व्यक्ति को सलाम करना चाहिए। हममे से किसी राजनीतिक दल में इतनी हैसियत नहीं कि ऐसा स्वतः स्फूर्त आंदोलन कर दे।
संबंधित खबर : CAA के खिलाफ प्रदर्शन कर रहीं एक बुजुर्ग महिला की मौत, शाहीन बाग की तर्ज पर कोलकाता में 60 महिलाएं कर रहीं आंदोलन
राज्यसभा सांसद मनोज झा ने आगे कहा कि माननीय प्रधानमंत्री जी को बहुमत मिला था लेकिन वो इतिहास भूल गए हैं। अफसोस की बात यह है कि ये सभी मसले और फैसले बापू की 150वीं वर्षगांठ पर हो रहे हैं। मैने हाल ही में बापू को एक खत लिखा जो किसी प्लेटफॉर्म पर प्रकाशित भी हुआ। मैने कहा- बड़ी मुश्किल होती है बापू, करें क्या, किससे कहें, आपस में भी बहुत बढ़िया संवाद नहीं है और विवाद देश में इतना गहराता जा रहा है, किससे कहें।
उन्होंने आगे कहा कि इस मुल्क में धमकी की जुबान दिन-रात बोली जा रही है। इस मुल्क में क्या क्या देखना बाकि रह गया। पहले गांधी पर आक्रमण, फिर नेहरू पर आक्रमण, फिर संविधान पर आक्रमण और आखिर में 'हम भारत के लोग' पर आक्रमण। आग का क्या है पल दो पल में लगती है, बुझते-बुझते जमाना लगता है। ये जो धमकी की जुबान आ रही है। आप चुनाव जीत लीजिए हार लीजिए लेकिन जब देश ही हार जाओगे तो चुनाव का क्या करोगे। कुछ नहीं हो पाएगा।
संबंधित खबर : शाहीन बाग आंदोलन को बदनाम करने के लिए अब शुरू हुआ ईडी का इस्तेमाल ?
झा ने आगे कहा कि एक चुनाव के लिए क्या क्या कर दिया। हर दिन अब तीस जनवरी जैसा लग रहा है। हर दिन बापू का कत्ल हो रहा है। ये हकीकत है जो हमें परेशान कर रही है कल आपको भी परेशान कर सकती है। जो हमारे मुल्क का स्वभाविक चरित्र था वो खत्म हो रहा है। अगर हमने उसकी फिर से वापसी नहीं की तो पड़ोस में एक मुल्क था तालिबान, वो भी पराया नहीं लगेगा।