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उत्तर प्रदेश

मेरठ के प्राइवेट अस्पताल ने अखबार में छपवाया मुस्लिमों का इलाज न करने वाला ​विज्ञापन, फिर मांगी माफी

Janjwar Team
19 April 2020 7:39 AM GMT
मेरठ के प्राइवेट अस्पताल ने अखबार में छपवाया मुस्लिमों का इलाज न करने वाला ​विज्ञापन, फिर मांगी माफी
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इस घटना ने मीडिया की भूमिका पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. क्या पैसे लेकर एक अखबार ऐसा भी विज्ञापन छाप सकता है जो सीधे-सीधे समाज में सांप्रदायिक विभेद पैदा करता हो...

मेरठ, जनज्वार: मेरठ के एक प्राइवेट अस्पताल ने अखबार 'दैनिक जागरण' में विज्ञापन देकर मुस्लिमों के इलाज पर पाबंदी लगाने की घोषणा कर दी. हालांकि जब अस्पताल की आलोचना हुई तो फिर उसने अगले दिन अखबार में एक और विपज्ञापन देकर माफी मांग ली. लेकिन इस घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया कि समाज में सांप्रादियक जहर किस हद घुस गया है.

इसके साथ इस घटना ने मीडिया की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. क्या पैसे लेकर एक अखबार ऐसा भी विज्ञापन छाप सकता है जो सीधे-सीधे समाज में सांप्रदायिक विभेद पैदा करता हो .

क्या छपा था विज्ञापन में?

मेरठ के वेलेंटिस कैंसर अस्पताल ने अखबार में विज्ञापन देकर यह कहा था कि कोरोना महामारी को देखते हुए यह अस्पताल मुस्लिम रोगियों से अनुरोध करता है कि यदि उन्हें हॉस्पिटल आना हो, तो खुद और एक तीमारदार की जांच कराएं. जांच रिपोर्ट निगेटिव हो, तभी अस्पताल आएं.

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अस्पताल ने अपने इस फैसले के पीछे की वजह बताते हुए कहा था कि तब्लीगी जमात के संक्रमित लोगों द्वारा अस्पतालों में डॉक्टरों और अन्य मेडिकल स्टाफ के साथ अभद्र व्यवहार करने के मामले सामने आ रहे हैं. इससे विभिन्न अस्पतालों के डॉक्टरों, नर्सों और अन्य स्टाफ के बीच भय का माहौल बन गया है.

वेलेंटिस अस्पताल ने दावा किया कि उनके यहां भी मुस्लिम रोगियों का व्यवहार मेडिकल स्टाफ के लिए ठीक नहीं रहा है. हालांकि अस्पताल ने कहा इस विज्ञापन में यह भी कहा था कि यह नियम मु्स्लिम चिकित्सकों, पैरामैडिकल स्टाफ, जज, पुलिस, अफसर, शिया और अन्य मुस्लिमों (जो कि घनी मुस्लिम आबादी में न रहते हों) पर लागू नहीं होगा.

बाद में अस्पताल ने मांगी माफी

हालांकि बाद में जब इस विज्ञापन का विरोध हुआ तो अस्पताल ने एक बार फिर 'दैनिक जागरण' में ही विज्ञापन छपवाकर माफी मांगी.

इस विज्ञापन में कहा गया- 'हमें ज्ञात हुआ है कि वेलेन्टिस अस्पताल द्वारा कल प्रकाशित सूचना से हिंदू और जैन समाज से जुड़े कुछ लोगों को ठेस पहुंची है.' इसमें कहा गया- 'त्रुटिवश कुछ गलत मैसेज चला गया जिसका हम खंडन करने के साथ ही दिल से खेद व्यक्त करते हुए क्षमा मांगते हैं.'

यह भी बता दें कि पहले विज्ञापन में भी अस्पताल ने कहा था- 'आर्थिक रूप से संपन्न हिंदू-जैन परिवारों से जिनमें अधिकांश कंजूस है से भी आग्रह करते हैं कि पीएम केयर्स फंड में सहयोग राशि देकर इस आपदा के समय देश के महत्वपूर्ण योगदान दें.'

वहीं इस पूरे मामले पर मेरठ पुलिस का कहना है कि 'उपरोक्त प्रकरण के सम्बन्ध में थाना प्रभारी इन्चौली को आवश्यक कार्यवाही हेतु निर्देशित किया गया ।'



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आर्टिकल 15 सबको धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव खारिज करता है

अस्पताल का यह विज्ञापन सीधे सीधे भारतीय संविधान के आर्टिकल 15 (1) उल्लंघन है जो कि कहता कि किसी भी जाति, वर्ग, लिंग या धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। राज्य किसी नागरिक से केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी भी आधार पर किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं करेगा।

आर्टिकल 15 का दूसरा उपबंध यानी आर्टिकल 15 (2) कहता है कि सार्वजनिक भोजनालयों, दुकानों, होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों में प्रवेश, या राज्य-निधि से पोषित या साधारण जनता के प्रयोग के लिए समर्पित कुओं, तालाबों, स्नानघाटों, सड़कों और सार्वजनिक समागम के स्थानों के उपयोग में कोई भी विभेद नहीं किया जाएगा। हर नागरिक इनका उपयोग बिना किसी भेदभाव के कर सकता है।

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संविधान सभा की बहस के दौरान एक सवाल के जवाब में भारत रत्न बाबा साहेब अंबेडकर से यह पूछा गया कि यह आर्टिकल क्या डॉक्टर और वकीलों पर लागू होगा तो उन्होंने उत्तर दिया था- निश्चित रूप से इसमें कोई भी शामिल होगा जो अपनी सेवाएं प्रदान करता है। मैं इसे एक सामान्य अर्थ में उपयोग कर रहा हूं।

डॉ. अबेंडकर ने कहा था, ‘मुझे यह इंगित करना चाहिए कि यहां प्रयुक्त 'शॉप (shop/दुकान)' शब्द का उपयोग प्रवेश की अनुमति देने के सीमित अर्थ में नहीं किया गया है। यदि सेवा की शर्तों पर सहमति हो तो सेवाओं की आवश्यकता के बड़े अर्थों में इसका उपयोग किया जाता है।‘

कोरोना के 70 प्रतिशत मामले तबलीगी जमात से जुड़े नहीं

बता दें केंद्र सरकार खुद मान चुकी है कि 70% कोरोना मामलों का तबलीगी जमात से कुछ लेना देना नहीं. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने शनिवार 18 अप्रैल को कहा कि देश में अभी तक कोरोनावायरस के कुल 14,378 मामले सामने आए हैं, जिनमें से 4,291 यानी करीब 30 प्रतिशत मामले दिल्ली की निजामुद्दीन मरकज में हुए कार्यक्रम से जुड़े हुए हैं।

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