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केंद्र सरकार और बीजेपी को दिल्ली के वायु प्रदूषण की नहीं है कोई चिंता
केंद्र सरकार और बीजेपी लगातार यह साबित करती रही है कि लोग दिल्ली में वायु प्रदूषण से मरते हैं तो मरते रहें, उसे कोई परवाह नहीं...
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
जनज्वार। दिल्ली के वायु प्रदूषण से सम्बंधित एक नयी खबर यह है कि दिल्ली को केंद सरकार ने नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के तहत अभी तक कोई भुगतान नहीं किया है। इस प्रोग्राम में शामिल 102 शहरों में से 90 शहरों को उसके हिस्से की राशि दे दी गयी है, पर इन शहरों में दिल्ली का नाम नहीं है।
ध्यान रखिये कि पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर लगातार कहते रहे हैं कि वे दिल्ली के वायु प्रदूषण को लेकर गंभीर हैं, पर जब राशि आवंटन की बात होती है तब केवल राजनीति करते हैं। इस सम्बन्ध में दिल्ली सरकार अनेक बार केंद्र सरकार से आग्रह करती रही है, पर केंद्र सरकार को राजनीति से फुर्सत ही नहीं है।
केंद्र सरकार और बीजेपी लगातार यह साबित करती रही है कि लोग दिल्ली में वायु प्रदूषण से मरते हैं तो मरते रहें, उसे कोई परवाह नहीं है। उसे तो अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकनी हैं और बात-बेबात दिल्ली सरकार को कोसना है। दिल्ली भाजपा अध्यक्ष और दूसरे सांसद लगातार दिल्ली के मुख्यमंत्री को वायु प्रदूषण रोकने में नाकाम साबित करते रहे हैं।
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भाजपा के एमएलए विजय गोयल ने तो तमाम जगह बड़े-बड़े होर्डिंग लगाकर दिल्ली के वायु प्रदूषण के सन्दर्भ में भूख हड़ताल की बात कही थी, फिर ओड-इवन के विरोध में सड़कों पर उतरे भी थे। मनोज तिवारी भी समय-समय पर वायु प्रदूषण के लिए केवल दिल्ली सरकार को दोषी ठहराते रहे हैं। गौतम गंभीर संसद की विशेष कमेटी की बैठक के बदले कमेंट्री करना पसंद करते हैं, जलेबी खाते फोटो पोस्ट करते हैं, पर वायु प्रदूषण पर गंभीरता तो देखिये, वापस आकर अपनी नहीं, बल्कि दिल्ली सरकार की नाकामियाँ गिनाते हैं।
केंद्र की इस सरकार ने और पार्टी ने ये अच्छी तरह से समझ लिया है कि झूठ को चीख-चीख कर बार-बार बोलो, तब जनता उसे सच मान लेती है। अब दिल्ली के चुनाव नजदीक आ रहे हैं, और उसे चुनाव किसी भी कीमत पर जीतना है, ऐसे में अगर प्रदूषण से लोगों की उमर घट रही है, बच्चे बीमार पड़ रहे हैं या फिर लोग मर रहे हैं तो क्या होता है? चुनाव तो जीतना ही है।
वैसे भी बीजेपी के नेता, मंत्री और प्रधानमंत्री लगातार यह कहते ही हैं कि जब तक केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी की सरकार नहीं होगी, विकास की कोई संभावना ही नहीं है। पर प्रदूषण जैसे मसले पर भी यदि कोई पार्टी केवल डर्टी पॉलिटिक्स कर सकती है तो वह केवल बीजेपी ही है। गंगा नदी की सफाई का उदाहरण सबके सामने है।
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दिल्ली में वायु प्रदूषण के हंगामे के बीच समय-समय पर जलवायु परिवर्तन से निपटने की बात भी केंद्र सरकार करती है। जलवायु परिवर्तन प्रधानमंत्री और केंद्र सरकार का प्रिय विषय है, प्रधानमंत्री तो इस विषय पर अपने आप को दुनिया का नेता भी मानते हैं। क्या उन्हें नहीं मालूम कि जिन चीजों से वायु प्रदूषण होता है, उन्हीं से जलवायु परिवर्तन भी होता है।
दुनियाभर के वैज्ञानिक अब कहने लगे हैं कि यदि जलवायु परिवर्तन रोकना है तो स्थानीय वायु प्रदूषण को कम करने के प्रयास किये जाने चाहिए। मगर हमारी आत्ममुग्ध सरकार वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन को अलग-अलग समझती है और जलवायु परिवर्तन को एक मुद्दा समझती है, और वायु प्रदूषण को नहीं।
हाल में ब्रिटेन में किये गए एक सर्वेक्षण से स्पष्ट हुआ कि अगले चुनावों में वहां पर्यावरण सबसे बड़ा मुद्दा रहने वाला है, सामाजिक सरोकार के दूसरे मुद्दे इससे बहुत पीछे हैं। पर, अफ़सोस यह है कि प्रदूषण हमारे देश में कभी जनता का मुद्दा नहीं बनता। सरकारों ने भी इसे दो महीने की समस्या से अधिक कुछ नहीं माना है। सरकारों के लिए वायु प्रदूषण सर्दियों के साथ आता है और इसी के साथ चला जाता है। इसके प्रभावों पर भी सरकार कभी गंभीर नहीं दिखती।
विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत दुनियाभर के वैज्ञानिक और एआईआईएमएस के निदेशक कहते हैं कि इससे लोग मरते हैं, पर पर्यावरण मंत्री कहते हैं कि इससे लोग नहीं मरते, केवल बीमार पड़ते हैं। इतना तो तय है कि जिस दिन किसी भी सरकार ने इसके प्रभावों को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया, उसी दिन से वायु प्रदूषण कम होने लगेगा, पर ऐसे दिन के आसार निकट भविष्य में तो नहीं हैं।