केंद्र, यूपी सरकार और सैन्य प्रशासन गरीबों के जीने व रोजगार के अधिकार को छीनने पर हैं आमादा
प्रयागराज में सैन्य प्रशासन कैंट क्षेत्र में बसे गरीबों उजाड़ने में लगा है तो योगी सरकार और उसके अंतर्गत प्रयागराज विकास प्राधिकरण एवं नगर निगम नजूल भूमि पर बसे लोगों को विस्थापित कर बहुमंजिले भवन बनाने के लिए कर रही जमीन तैयार....
इलाहाबाद से जेपी सिंह की रिपोर्ट
केन्द्र की मोदी और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की शह पर प्रयागराज में सेना, प्रयागराज विकास प्राधिकरण, जिला प्रशासन तथा नगर निगम परेड ग्राउंड सिविल लाइंस सागरपेशा तथा म्योर रोड राजापुर आदि में रहने वाले हजारों गरीबों-कमजोर वर्ग के लोगों के संविधान में दिये गये जीने व रोजगार के अधिकार को क्रूरता और बर्बरतापूर्वक छीन रहे हैं।
प्रयागराज में पीडी टण्डन बनाम उप्र राज्य सरकार के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय तथा सर्वाेच्च न्यायालय ने क्रमश दिनांक 25 मार्च 1986 तथा 14 जनवरी 1987 को निर्णय देते हुए कहा था कि ‘नजूल भूमि पर पुश्त-दर-पुश्त निवासित कमजोर वर्ग के सागरपेशा वासियों की सूची बनाकर पांच वर्षों में पुर्नवासित किया जाये। अन्यथा जब तक पूर्ववासन नहीं होता, तब तक विस्थापित न किया जाये।'
इस आदेश के बावजूद जहाँ सैन्य प्रशासन कैंट क्षेत्र में बसे सागरपेशा और निर्धनतम लोगों को उजाड़ने में लगा है। राज्य सरकार और उसके अंतर्गत प्रयागराज विकास प्राधिकरण एवं नगर निगम नजूल जमीन पर बसे लोगों को विस्थापित करके बहुमंजिले भवन बनाना चाहता है।
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गौरतलब है कि देश संविधान और कानून के शासन की अवधारणा पर चलता है। संविधान में लोगों को जीने का अधिकार भी दिया गया है। जीने के अधिकार में निवास व जीविकोपार्जन भी आता है। समय-समय पर उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालय ने गरीबों के जीने के मौलिक अधिकार को संरक्षण प्रदान किया है, जो संविधान के अनुच्छेद- 14 के अनुसार कानूनी प्रभाव रखते हैं, जब तक कि संसद या विधानसभा उसको निरस्त या परिवर्तित न कर दे।
इस मामले को तत्कालीन कांग्रेस विधायक अनुग्रह नारायण सिंह ने उत्तर प्रदेश विधानसभा में उठाया था, जिस पर सरकार ने सर्वे कराकर पुर्नवासित करने का आश्वासन दिया था जो उप्र विधानसभा की सरकारी आश्वासन समिति के समक्ष आश्वासन संख्या 8/2011 आज भी लंबित है।
अपूर्ण सर्वे में 1049 परिवारों की सूची केवल सिविल लाइंस में विकास प्राधिकरण, नगर निगम व जिला प्रशासन द्वारा बनायी गयी है। इसी में 26 थार्नहिल रोड में निवासित 40 परिवारों को 17 नवम्बर को संविधान, न्यायालयों के निर्णयों, विधानसभा के विशेषाधिकार का उल्लंघन करके बर्बरतापूर्वक उजाड़ दिया गया। इस संबंध में विधानसभा के विषेशाधिकार की अवमानना की नोटिस अनुग्रह नारायण सिंह ने 25 नवम्बर 2019 को अध्यक्ष, आश्वासन समिति को दिया है।
इस प्रकार दारागंज, अलोपीबाग, मोरी किला, परेड ग्राउंड के विभिन्न बस्तियों के संबंध में संगम क्षेत्र मलिन बस्ती संघ बनाम भारत सरकार रक्षा विभाग, उप्र राज्य सरकार, कमांडेंट ओडी फोर्ट, सीईओ कैंट बोर्ड, मेला अधिकारी तथा वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने अंतिम निर्णय में दिनांक 03 मई 2010, 27 जुलाई 2010 तथा 03 दिसम्बर 2010 को केन्द्र व राज्य सरकार को यहां पर निवासित सभी लोगों को पुनर्वासित करने तथा पुनर्वासन न होने तक विस्थापित न करने का निर्देश दिया है, किन्तु समय-समय पर सेना तथा पुलिस प्रशासन न्यायालय की अवमानना करते हुए मानवीय संवेदनाओं को दफन करते हुए गरीब महिलाओं, पुरुष, बच्चों पर कहर बरपाते रहते हैं। इस संबंध में भी अवमानना याचिकाएं इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लंबित है।
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केन्द्र व राज्य सरकार गरीबों को मकान उपलब्ध कराने की गगनभेद योजनाएं करोड़ों रुपये का विज्ञापन देकर प्रचारित कर रही है किन्तु प्रयागराज नगर में इन सरकारों द्वारा एक भी निर्माण अभी तक नहीं किया गया है। प्रयागराज में गरीबों को मकान- जीविकोपार्जन का प्रबंध तो नहीं किया जा रहा है, उल्टा सौन्दर्यीकरण के नाम पर बिना मुआवजा दिये हजारों लोगों के मकान-दुकान को ध्वस्त करा दिया गया तथा इस समय राजापुर - म्योर रोड, कटरा आदि में शैतानी लाल निशान लगा दिया गया है। यहां के लोग भय और आतंक में जी रहे हैं तथा कई लोग बीमार हो गये हैं। एक की मृत्यु भी हो गयी है।
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अनुग्रह सिंह ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से अपील की है कि वे प्रयागराज में मानवीय संवेदनाओं, संविधान, न्यायालयों तथा विधानसभा में दिये गये आश्वासनों को दरकिनार करते हुए बर्बर कार्यवाही को तत्काल रुकवायें तथा बिना मुआवजे दिये सड़क चौड़ीकरण के नाम पर यहाँ के निवासियों की फ्रीहोल्ड जमीन पर 60 से सौ साल पुराने भवनों के अवैध ध्वस्तीकरण जैसे सभी मामलों की निष्पक्ष जांच कराकर गरीबों का पुनर्वास कराये,ध्वस्तीकरण का मुआवजा देने का आदेश करें तथा सभी दोषी अधिकारियों को दंडित करें।