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राजनीति

मेहरबानी कर मुझसे न पूछें 'कश्मीर के हालात कैसे हैं?'

Prema Negi
16 Oct 2019 7:05 PM IST
मेहरबानी कर मुझसे न पूछें कश्मीर के हालात कैसे हैं?
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65 दिन हो चुके हैं मुझे अपनी माँ का चेहरा देखे हुए। 65 रातें पहले देखी थी अपनी बहन की सूरत। 1560 घंटे हो गए हैं मुझे अपने पिता की शक्ल देखे हुए, जो चिंतित हैं कि मैं दिल्ली में अकेला कैसे रह रहा होऊंगा। पर आपको क्या...

इरफ़ान रशीद

पिछली बार नेटवर्क की समस्या के कारण आपका फ़ोन कितने घंटों के लिए बंद हुआ था? कितने समय तक आप 4-जी इन्टरनेट इस्तेमाल नहीं कर पाए थे? कितने दिनों तक आप फ़ोन पर अपनी माँ, पिता, बहन, भाई या दादा-दादी, नाना-नानी की आवाज़ नहीं सुन पाए थे?

65 दिन हो चुके हैं मुझे अपनी माँ का चेहरा देखे हुए। 65 रातें पहले देखी थी अपनी बहन की सूरत। 1560 घंटे हो गए हैं मुझे अपने पिता की शक्ल देखे हुए, जो चिंतित हैं कि मैं दिल्ली में अकेला कैसे रह रहा होऊंगा।

र आपको क्या?

माँ को पहला फ़ोन मैं 14 दिनों के बाद कर पाया था। मैं फिर भी खुशनसीब था, कई कश्मीरी बेटे और बेटियां ऐसे हैं जो अब तक पहला फ़ोन भी नहीं कर पाए हैं।

दूसरा फ़ोन करने में 20 और दिन लग गए। वीडियो कॉल करने का तो मैं अब तक इंतज़ार ही कर रहा हूँ।

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हाँ सरकार दुनिया को बेवकूफ बनाते हुए कह रही है कि घाटी में लैंडलाइन बहाल कर दिए गए हैं। लैंडलाइन वहां या तो सरकारी कार्यालयों में इस्तेमाल होते हैं या पैसे वाले घरों में। सामान्य लोग सस्ते मोबाइल फ़ोन पर निर्भर हैं। पर आपको क्या?

पिछली बार माँ ने फ़ोन किया तो मैंने पूछा कि गाँव में हाल के समय में कौन-कौन मर गया है। यह सवाल पूछना एक ज़रूरत बन गया है, क्योंकि अभिभावकों ने कश्मीर से बाहर रह रहे बच्चों को ऐसी बातें बताना बंद कर दिया है यह सोचकर कि बच्चों की चिंताएं, परेशानी और बढ़ेगी।

ह सवाल मेरे ज़ेहन में एक दोस्त की फेसबुक अपडेट पढ़ने के बाद से ही चल रहा था। उसकी बहन गुज़र गयी थी और उसे चार दिन बाद पता चला था। यह कश्मीर में नयी 'नॉर्मलसी' है। पर आपको क्या?

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मेरी माँ ने मुझे एक शादी के बारे में बताया जिसमें उन्हें शामिल होना था, गुलाम नबी हिजाम की बेटी की शादी। हिजाम मेरे पिता के बचपन के दोस्त थे। पिछले दो साल से उन्हें किडनी की समस्या थी और वह नियमित डायलिसिस पर थे। शादी से ठीक दो दिन पहले हिजाम की मौत हो गयी, उनकी बेटी के हाथों में लगाई गई मेहंदी अभी ताज़ा ही थी।

नकी मौत का वास्तविक कारण पता नहीं, पर दवाइयों की कमी के कारण कश्मीर में लोग बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। पर आपको क्या?

सुहैल की ज़िन्दगी में कम अंधेरा नहीं है। वह सिविल सेवाओं की परीक्षा देने के इच्छुक उन लाखों युवाओं में हैं जो शाह फैसल से प्रेरित हुए थे। पर वह उतना खुशनसीब नहीं हैं जितने कि मुंबई या दिल्ली के राजेंद्र नगर के पुस्तकालयों में तैयारियां करते आप लोग। क्योंकि पिछले 65 दिनों से उसे नहीं पता कि करंट अफेयर्स का क्या मतलब है। उसके दोस्त जो भारत भर में अलग-अलग पाठ्यक्रमों के लिए आवेदन भरने जा रहे थे, उन्हें नहीं पता कि आवेदनों के विज्ञापन आये हैं क्या, अंतिम तिथि क्या है और क्या वह अब भी आवेदन कर सकते हैं। पर आपको क्या?

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जानकारी और दुष्प्रचार की इस जंग में, जिस सवाल का जवाब देना सबसे मुश्किल है वह है: "कश्मीर में हालात कैसे हैं?" जवाब देना दो कारणों से मुश्किल है।

हला, मेरे अधिकांश गैर-कश्मीरी दोस्तों ने कश्मीर के इतिहास पर ढंग की किताबें नहीं पढ़ी हुईं हैं और न ही वह मुद्दे के बारे में ज़मीनी जानकारी पर नज़र रखते हैं। उनकी जानकारी का स्रोत चुनिन्दा टीवी चैनलों पर बहसें और अखबारों में कभी-कभार आने वाले लेख हैं।

दूसरा, फेक न्यूज़ के साइबर युद्ध ने किसी को नहीं छोड़ा, चाहे वह अमेरिका के चुनाव हों या कश्मीर में भारतीय सरकार का 'सब ठीक है' का दुष्प्रचार।

भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि कश्मीर में पाबंदियां केवल लोगों के दिलोदिमाग में हैं और विदेश मंत्री एस जयशंकर कहते हैं कि कश्मीर की स्थितियां घाटी को नए फल देंगी। माननीय उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह अयोध्या भूमि विवाद से निबटने में बहुत व्यस्त है (निश्चित रूप से, ज़मीन इंसानों से ज़्यादा महत्वपूर्ण है)।

भारतीय राजदूत सयुंक्त राष्ट्र में जवाब तैयार करने में लगे हैं और "आंतरिक मामले" के आवरण में मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों को छिपाने में लगे हैं। सयुंक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद् और एमनेस्टी इंटरनेशनल का कश्मीर में मानवाधिकार हनन के बारे में चिल्ला-चिल्लाकर गला सूख गया है पर कोई सुनने के लिए तैयार नहीं है।

र आप को क्या? कोई सुने भी तो क्यों?

जो कश्मीर में हैं और जिनके घर ही जेल बन चुके हैं वह आपके कोई सगे नहीं हैं।

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सैकड़ों बच्चों समेत 13,000 युवा जिन्हें पुलिस ने गिरफ्तार किया है आपके भाई या बेटे नहीं हैं।

ह गर्भवती महिला जिसे पिछले महीने बच्चे को जन्म देने के लिए जाते समय एक सैनिक ने ऑटो को अस्पताल तक ले जाने की इजाज़त नहीं दी थी और पैदल चलकर जाने के लिए कहा था, वह आपकी माँ नहीं है।

कुनान-पोश्पोरा में जिन 52 महिलाओं का सैनिकों ने कथित बलात्कार किया था, वह आपकी रिश्तेदार नहीं थीं। इसलिए आपको क्या?

ह पहली बार है कि मैं मुंबई में रह रहा हूँ, दिल्ली में कई साल बिता चुका हूँ मैं। दोनों शहरों में सैकड़ों युवाओं से मैंने बात की है और उनमें से 99% इसी श्रेणी में आते हैं: कश्मीर के बारे में या तो उन्हें कोई जानकारी नहीं है, या गलत जानकारी ही है।

भी-कभी मैं सोचता हूँ कि यह पढ़े-लिखे लोग इतने अज्ञानी कैसे हो सकते हैं। मैंने उनके अज्ञान को दूर करने की पूरी कोशिश की है पर मुझे मानना पड़ेगा कि अब तक मुझे कोई ख़ास सफलता नहीं मिली। मैं थक चुका हूँ और ऐसी मन:स्थिति में पहुँच चुका हूँ कि कोई मुझसे 'कश्मीर के हालात' के बारे में पूछता है तो उसे थप्पड़ मारने का मन करता है।

श्रीनगर का 24 वर्षीय जाहिद हुसैन बांग्लादेश और कश्मीर के बीच एकमात्र कड़ी बन गया है। कारण कश्मीर में पिछले 65 दिनों से संचारबंदी है।

स्कीन, जो बांग्लादेश में पढ़ रही हैं, दो महीनों से अपने माँ-बाप से संपर्क नहीं कर पा रही थीं, उन्होंने हाल में व्हाट्सएप के ज़रिये जाहिद से संपर्क किया, जिसने फिर मेरा फ़ोन इस्तेमाल करते हुए तस्कीन के घर के लैंडलाइन पर फ़ोन लगाया।

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दोनों फ़ोन स्पीकर पर थे और न चाहते हुए भी हम दोनों ने बातचीत सुनी। बातचीत तस्कीन की फीस के बारे में थी जो उसे अक्टूबर के अंत तक जमा करानी थी, पर कश्मीर में बैंक बंद है सो फीस की रकम उसे कैसे मिलेगी? पर आपको क्या?

मुझे नहीं पता ख़ुदा ने आपको किस मिटटी से बनाया है। पैगम्बर ने कहा था कि एक व्यक्ति के अंदर विश्वास के तीन स्तर हैं: एक, यदि वह कुछ गलत देखे तो हाथों से रोके, हाथों से नहीं रोक सकता तो शब्दों से रोकने के कोशिश करें, और तीसरा, वह यह भी नहीं कर पाएं, तो कम से कम दिल में यह बात रखे कि कुछ गलत हुआ।

पर आपके दिल पत्थर के बन चुके हैं जिसने आपको इस कदर गूंगा-बहरा बना दिया है कि आपको 20 महीने की उस हीबा की चीखें भी नहीं सुनाई देतीं जिसका मासूम चेहरा पैलेट से छलनी किया गया था। किस लिए? कि वह "राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा" थी।"

र आपको क्या?

(इरफ़ान रशीद कश्मीरी पत्रकार हैं जो कश्मीर में ही जन्मे और पले-बढ़े हैं। वह पहले हिंदुस्तान टाइम्स में कार्यरत थे। उनका यह लेख 'द सिटिज़न' में 16 अक्टूबर को छपा था, जिसका अनुवाद कश्मीर खबर ने किया है।)

मूल लेख : Please Don’t Ask Me ‘How is the Situation’ in Kashmir

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