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राजनीति

कश्मीर : जहां सैन्य शिविरों के बाहर खड़ी मांएं करती हैं बच्चों की रिहाई का इंतज़ार

Prema Negi
7 Sep 2019 11:42 AM GMT
कश्मीर : जहां सैन्य शिविरों के बाहर खड़ी मांएं करती हैं बच्चों की रिहाई का इंतज़ार
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प्रतीकात्मक फोटो (janjwar)

केंद्र सरकार द्वारा जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा रद्द करने के बाद से वहां पुरुषों की जगह महिलाएं अपने रिश्तेदारों की तलाश में पुलिस और सुरक्षा बलों के पास जाती हैं, क्योंकि उनमें इस बात का डर है कि पुरुषों को हिरासत में ले लिया जायेगा...

फुरक़ान अमीन की रिपोर्ट

ई दिल्ली का दौरा करने वाले कश्मीर के‌ तीन पंचायत नेताओं में से एक इकबाल अहमद वानी पत्रकारों से बात करते हुए बताते हैं कि कश्मीर में सूचना प्रतिबंधों और लॉकडाउन के बाद से ही पुलिस स्टेशनों और सेना के शिविरों के बाहर मांएं अपने बच्चों की रिहाई के लिए इंतज़ार करती दिखायी देती हैं।

चबल ब्लॉक के त्राहपू हलके (गांवों के समूह) के स्वतंत्र पंच इकबाल बताते हैं कि "मेरे ब्लॉक के कम से कम 25 बच्चे अभी भी अचबल पुलिस स्टेशन में हिरासत में हैं। उनकी संख्या ज़्यादा भी हो सकती है।" अचबल कश्मीर के अनंतनाग जिले के 16 ब्लॉकों में से एक है।

केंद्र सरकार द्वारा जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा रद्द करने के बाद से, जहां एक तरफ़ श्रीनगर से कुछ ऐसी रिपोर्ट्स आयी हैं कि लोग किस तरह प्रतिबंधों का सामना कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ़ कश्मीर में ग्रामीण इलाकों की स्थिति काफी हद तक अज्ञात है।

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कबाल 21 अगस्त को कश्मीर से दिल्ली आये थे। वहां की स्थिति के बारे में पूछने पर, उन्होंने बुनियादी आवश्यकताओं के अभाव और उनके लिए जारी संघर्षों का उल्लेख किया।

पुरुषों की जगह महिलाएं रिश्तेदारों की तलाश में पुलिस और सुरक्षा बलों के पास जाती हैं। उनमें इस बात का डर है कि पुरुषों को हिरासत में ले लिया जायेगा। -इकबाल

न्होंने आगे बताया कि "मैंने पैदल ही ब्लॉक के 33 में से 21 हलकों का चक्कर लगाया और पाया कि राशन की कमी जैसे गंभीर मुद्दे लोगों के सामने खड़े हैं। स्कूल खाली पड़े हैं और स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों की मौजूदगी नहीं है।”

कबाल का यह बयान राज्यपाल सत्यपाल मलिक के बयान का विरोधाभासी है, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि भले ही कुछ स्थानों पर छोटी संख्या में, लेकिन कक्षाओं में छात्रों की उपस्थिति दर्ज़ की जा रही है और स्वास्थ्य सुविधाएं व्यापक पैमाने पर ठीक काम कर रही हैं।

कबाल ने बताया कि पीडीएस राशन प्रत्येक माह की 5 से 10 तारीख के बीच निवासियों तक पहुंचता था, लेकिन 5 अगस्त से जारी प्रतिबंधों और तालाबंदी शुरू होने के बाद निवासियों तक राशन पहुंचना असंभव हो गया है।

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न्होंने कहा कि केमिस्ट की दुकानें खुली तो हैं, जैसा कि सरकार ने दावा किया था, लेकिन दवाओं की आपूर्ति बहुत कम हो गयी हैं।

बीते दिनों श्रीनगर में एक संवाद सम्मेलन में, जम्मू और कश्मीर के शिक्षा निदेशक यूनिस मलिक ने दावा किया था कि प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय खुल गये हैं और हाईस्कूलों पर से भी प्रतिबंध हटा दिया जायेगा।

"हां, उन्होंने दावा तो किया था कि लगभग 196 प्राथमिक स्कूल खोले गये हैं, लेकिन उनसे पूछिये कि कितने बच्चे स्कूल आ रहे हैं।"-इकबाल

न्होंने कहा कि सेना की उपस्थिति, जो सरकार और जनता के बीच एक मध्यस्थ जैसी है, लोग उसे "अमित शाह के फ़रमान" के रूप में देख रहे हैं।

संचार माध्यमों पर प्रतिबंध के कारण, घाटी में अफवाहें फैल रही हैं। कुछ का कारण मीडिया रिपोर्ट्स हैं, कुछ सीमा के दूसरी ओर से आती दिख रही हैं। इकबाल ने बताया कि भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की अफवाह उनके ब्लॉक में काफी प्रबल है। "शुरू-शुरू में यह अफवाह थी कि कश्मीर में आरएसएस के गुंडे आयेंगे, न कि यहां पहुंचने वाले हजारों सुरक्षा बल। यह कहा जा रहा था कि वे तलवारें और नस्लीय संहार के सामान साथ लाये हैं।"

कबाल के अनुसार कि उन्होंने बीबीसी रेडियो पर सौरा में प्रदर्शनकारियों पर हुई गोलीबारी के बारे में सुना। इकबाल ने बताया कि दिल्ली के समाचार चैनलों के कुछ हद तक सुलभ होने के बावजूद अफवाहें फैल रही हैं।

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कबाल ने कहा कि उनके जैसे पंचायत नेताओं को कश्मीर में भारतीय लोकतंत्र के पोस्टर ब्वॉय के रूप में प्रस्तुत किया गया था, क्योंकि उन्होंने मिलिटेंटों की धमकियों का सामना करते हुए चुनाव लड़ा था। इकबाल के अनुसार, “हम चेहरा थे। अब लोग कहेंगे कि 'यही हैं जो हिंदुस्तान नहीं छोड़ना चाहते थे, यही हैं जो 370 नहीं चाहते थे।"

कबाल ने बताया कि चुनाव से पहले उनके घर के बाहर पोस्टर लगाये गये थे, जिसमें कहा गया था कि जो भी चुनाव लड़ेंगे, उन्हें अपना कफ़न भी खरीद लेना चाहिए।

"हमें बहुत बेइज़्ज़त किया भारत सरकार ने। हमें अप्रासंगिक बना दिया गया है। एक झटके में उन्होंने गिलानी, फ़ारूक़ साहब और मेरे जैसे लोगों को एक ही पंक्ति में खड़ा कर दिया है।" -इकबाल

कबाल अहमद वानी ने यह भी बताया कि उनकी पत्नी ने फोन करके उन्हें कश्मीर न लौटने के लिए कहा। उनकी पत्नी को डर है कि वह या तो गिरफ़्तार कर लिए जायेंगे या नये-नये कट्टरपंथी हुए स्थानीय निवासियों के निशाने पर होंगे।

('द टेलीग्राफ़' में 28 अगस्त 2019 को छपी फुरक़ान अमीन की रिपोर्ट का साभार सहित अनुवाद 'कश्मीर ख़बर' के लिए बिदीशा ने किया है।)

मूल रिपोर्ट : Kashmir: Where mothers wait outside security camps

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