रामलला विराजमान के वकील ने कहा कि हिंदुओं का विश्वास है अयोध्या भगवान राम का जन्म स्थान है और न्यायालय को इसके तर्कसंगत होने की जांच के लिये इसके आगे नहीं जाना चाहिए। यह हिंदुओं की आस्था है कि भगवान राम का जन्म हुआ था विवादित ढांचे वाले स्थान पर...
जेपी सिंह की रिपोर्ट
हिंदुओं की आस्था है कि अयोध्या में जन्मे थे श्रीराम, इसके पीछे तर्क न देखे उच्चतम न्यायालय। राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले की सुनवाई कर रहे उच्चतम न्यायालय में छठे दिन एक बार फिर रामलला विराजमान की तरफ से सबूत के बजाय आस्था पर बहस किया गया।
छठे दिन बुधवार 14 अगस्त को हुई सुनवाई में रामलला विराजमान के वकील ने कहा कि हिंदुओं का विश्वास है अयोध्या भगवान राम का जन्म स्थान है और न्यायालय को इसके तर्कसंगत होने की जांच के लिये इसके आगे नहीं जाना चाहिए। यह हिंदुओं की आस्था है कि भगवान राम का जन्म विवादित ढांचे वाले स्थान पर हुआ था।
रामलला विराजमान के वकील सीएस वैद्यनाथन ने चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एस. ए. बोबडे, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. ए. नजीर की पांच सदस्यीय संविधान पीठ से कहा कि ‘पुराणों’ के अनुसार हिंदुओं का यह विश्वास है कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था। न्यायालय को यह नहीं देखना चाहिए कि यह कितना तर्कसंगत है। पीठ में न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं।
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वैद्यनाथन ने साल 1608-1611 के दौरान भारत आए अंग्रेज व्यापारी विलियम फिंच के यात्रा वृत्तांत का उल्लेख किया, जिसमें दर्ज किया गया था कि अयोध्या में एक किला या महल था, जहां हिंदुओं का विश्वास है कि भगवान राम का जन्म हुआ था। यह लोगों का विश्वास है कि यही वह स्थान है जहां भगवान राम का जन्म हुआ था। इसे हमेशा से ही उनका जन्म स्थान माना गया है।
वैद्यनाथन ने कहा कि फिंच का यात्रा वृत्तांत ‘अर्ली ट्रैवेल्स टू इंडिया’ पुस्तक में प्रकाशित हुआ। इसमें इस बात का उल्लेख है कि हिंदुओं का बहुत पहले से यही मानना है कि अयोध्या ही भगवान राम का जन्मस्थान है। वरिष्ठ अधिवक्ता ने इस बात पर लोगों की आस्था को लेकर जोर देते हुये अपनी दलीलों के समर्थन में ब्रिटिश सर्वेक्षक मोंटगोमेरी मार्टिन और मिशनरी जोसेफ टाइफेंथर सहित अन्य के यात्रा वृत्तांतों का भी जिक्र किया।
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सुनवाई के दौरान पीठ ने वैद्यनाथन से जानना चाहा कि पहली बार कब इसे बाबरी मस्जिद नाम से पुकारा गया? वैद्यनाथन ने इस पर कहा, 19वीं सदी में। ऐसा कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं है जिससे पता चले कि इससे पहले (19वीं सदी से पहले) इसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता था।’ बाबरनामा के सवाल पर वैद्यनाथन ने कहा कि बाबरनामा इस बारे में खामोश है।
पीठ ने सवाल किया कि ऐसा कौन सा तथ्यपरक साक्ष्य है कि बाबर ने मंदिर गिराने का निर्देश दिया था? इस पर वैद्यनाथन ने कहा कि बाबर ने अपने सेनापति को यह ढांचा गिराने का हुक्म दिया था। एक मुस्लिम पक्षकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने ‘बाबरनामा’ में बाबर की अयोध्या यात्रा के बारे में कोई जिक्र न होने के वैद्यनाथन के कथन पर आपत्ति की। धवन ने कहा कि ‘बाबरनामा’ में इस बात का उल्लेख है कि बाबर ने अयोध्या के लिए नदी पार की और इस पुस्तक के कुछ पन्ने नदारद भी हैं।
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बहस के दौरान वैद्यनाथन ने कहा कि इसे लेकर दो कथन हैं; पहला बाबर द्वारा मंदिर गिराने के बारे में और दूसरा मुगल शासक औरंगजेब द्वारा इसे गिराने के बारे में। लेकिन मस्जिद पर लिखी इबारत से पता चलता है कि बाबर ने विवादित जगह पर तीन गुंबद वाले ढांचे का निर्माण कराया था। उन्होंने पीठ से कहा कि यह स्पष्ट है कि ढांचा (मंदिर) वहां पर था और यह (मस्जिद) निर्माण उस स्थान पर हुआ जिसे हिंदू मानते हैं कि यह राम का जन्मस्थान’ है।
उच्चतम न्यायालय राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर सुनवाई कर रही है। उच्च न्यायालय ने 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीन पक्षकारों — सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान के बीच बराबर बराबर बांटने का आदेश दिया था।