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उत्तर प्रदेश

सपनों के शहरों से नाउम्मीद लौटे प्रवासी मजदूरों का छलका दर्द, कहा अब नहीं जायेंगे कभी लौटकर

Prema Negi
22 May 2020 1:42 PM GMT
सपनों के शहरों से नाउम्मीद लौटे प्रवासी मजदूरों का छलका दर्द, कहा अब नहीं जायेंगे कभी लौटकर
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मजदूर कहते हैं, महामारी काल में समझ आया कि अपने गांव अपनी माटी की अहमियत क्या होती है, बाहर रहने पर बहुत परेशानियां हैं...

लखनऊ, जनज्वार। शहर सपने दिखाते हैं। जितना बड़ा शहर उतना बड़ा सपना। सपना विकास, समृद्धि एवं बेहतर संभावनाओं का। यही सपना यहां के लोगों को बड़े शहरों तक खींच ले जाता है। लोग अपने घर-परिवार, नाते-रिश्ते से दूर अपने सपनों के शहर में पहुंच जाते हैं। विषम परिस्थितियों में रहकर वहां की समृद्घि एवं विकास में अपनी पूरी जवानी खपा देते हैं। इतने त्याग और योगदान के बाद जब संकट आया तो करोड़ों लोगों को सपनों के शहरों ने नाउम्मीद किया। वह भी बुरी तरह।

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पने-अपने सपनों के शहर से लौट रहे लोग अब यही कह रहे हैं कि वहां कभी नहीं जाना है। अपने लोग और अपनी सरकार अपनी ही होती है। इनमें से कई मजदूर योगी आदित्यनाथ की तारीफ भी कर रहे हैं कि उनके प्रयास से वह वापस लौट पाये। हालांकि यहां सवाल उन लाखोंलाख मजदूरों का भी है जो पैदल ही अपने घरों के लिए निकले हैं और भूख—प्यास झेल रहे हैं। कुछ को योगी सरकार से सहायता मिली है तो उससे कहीं बड़ी तादाद में भुक्तभोगी मजदूर हैं, जिनका सरकार पर से यकीन ही उठ गया है।

ब तक पैदल या फिर किसी भी तरह घर पहुंचने की कोशिश कर रहे 100 से भी ज्यादा मजदूर मर चुके हैं। इनकी एक बड़ी त्रासदी है, जो कोरोना से लॉकडाउन के चलते भूखे—प्यासे सफर तय करने को मजदूर हुए। महानगरों में रोजी—रोटी कमाने गये लाखों लोगों को वहां से उजड़कर वापस लौटना पड़ा क्योंकि बिना काम के वहां उन्हें रोटी नहीं मिली।

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लौटकर अपने घरों तक पहुंचे मजदूर कहते हैं वे अब बाकी का समय अपनों को देंगे। जो भी अपना हुनर है उसके जरिए प्रदेश की खुशहाली में योगदान देंगे।

लग-अलग प्रदेशों से आने वाले कुछ ऐसे ही प्रवासी श्रमिकों एवं कामगारों से गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर मुलाकात होती है। सबकी मंजिल अलग-अलग थी, पर यात्रा के अनुभव एक जैसे।

हैदराबाद में रंगरोगन का काम करने वाले महराजगंज के रामाज्ञा हों या वीरेंद्र सबने उत्तर प्रदेश सरकार की व्यवस्था की तारीफ की। एक स्वर में कहा, ट्रेन की यात्रा में कोई दिक्कत नही हुई। यहां से सरकार हमको हमारे घर तक भी छोड़ेगी। कमोबेश यही बात लुधियाना से आने वाली बड़हलगंज निवासी युक्ति, गुंटूर से आए आजमगढ़ निवासी हरेंद्र ने भी कही।

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के रामदीन लुधियाना में कपड़े का काम करते है। उनका कहना है, "महामारी काल में समझ आया कि अपने गांव अपनी माटी की अहमियत क्या होती है। बाहर रहने पर बहुत परेशानियां है। यहां आने पर पता चला कि सरकार रोजगार की भी व्यवस्था करेगी। अब ठीक है सबकुछ धीरे-धीरे रम जाएगा।"

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हुत सारा पैसा कमाने गए राहुल भी यही सोचते हैं कि दो पैसे कम मिलें, लेकिन अपने गांव में रहकर जो छोटा-मोटा रोजगार होगा, उसी से पेट भर लेंगे। बाहरी राज्यों में वह अपनत्व नहीं है, जो यहां है। महामारी के समय में सब देखने को मिल गया है।

इनपुट : आईएएनएस

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