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झारखंड सरकार का 'सहायता एप' लांच होते ही उठा सवाल, OTP के चक्कर में कहीं ठग तो न लिए जाएंगे मजदूर

Nirmal kant
19 April 2020 1:59 PM GMT
झारखंड सरकार का सहायता एप लांच होते ही उठा सवाल, OTP के चक्कर में कहीं ठग तो न लिए जाएंगे मजदूर
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झारखंड सरकार ने प्रवासी श्रमिकों को मदद पहुंचाने के लिए एक एप लांच किया, पर लांचिग के बाद कई विधायकों ने इसके स्वरूप व शर्ताें पर सवाल उठाया है। वहीं, प्रवासी श्रमिकों में ओटीपी को लेकर साइबर क्राइम का भय है...

रांची से राहुल सिंह की रिपोर्ट

जनज्वार ब्यूरो। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 16 अप्रैल को कोरोना महामारी के दौर में लाॅकडाउन में बाहर फंसे प्रवासी श्रमिकों की सहायता के लिए एक एप लांच किया। इसे नाम भी सहायता एप ही दिया गया। इस एप को राज्य के बाहर फंसे श्रमिकों को डीबीटी के माध्यम से आर्थिक मदद पहुंचाने के लिए तैयार किया गया है, ताकि जरूरतमंदों के खाते में सीधी आर्थिक सहायता राज्य सरकार द्वारा ट्रांसफर की जा सके और श्रमिक अपनी न्यूनतम जरूरतों को वहीं पूरा कर सकें। इसके तहत प्रति श्रमिक एक हजार रुपये की मदद देने का प्रावधान किया गया है। पर, इस एप के उपयोग में आने वाली तकनीकी दिक्कतें, प्रक्रियागत जटिलताओं पर सवाल उठ खड़े हुए हैं।

राज्य सरकार का अपना एक मोटा आकलन है कि दूसरे प्रांतों में सूबे के सात से आठ लाख श्रमिक फंसे हुए हैं। राज्य सरकार प्रदेश से बाहर फंसे इन्हीं श्रमिकों को त्वरित रूप से आर्थिक सहायता पहुंचाना चाहती है। इसके लिए सरकार के IT विभाग ने एनआइसी की मदद से सहायता एप तैयार किया।

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IT विभाग के सचिव विनय कुमारचौबे ने इस एप की लांचिंग के समय बताया था कि यह बहुत सिंपल है और आधार कार्ड व अपनी सेल्फी के जरिए बाहर फंसे श्रमिक आर्थिक मदद के लिए अपनी सूचना इस पर लोड कर सकते हैं। उनके अनुसार एक सप्ताह में श्रमिक इसके जरिए आवेदन कर सकते हैं, फिर सरकार उसका वेरिफिकेशन कर उन्हें मदद पहुंचाएगी। इस एप से मदद पाने के लिए एक सबसे कठिन शर्त है कि श्रमिक का बैंक खाता झारखंड में ही होना चाहिए।

48 घंटे के अंदर इस एप में कई तकनीकी व व्यावहारिक खामियां उजागर हो गयीं, जिस पर एक के बाद एक कई विधायकों ने सवाल उठाया। राज्य के वरिष्ठ विधायक सरयू राय ने इस संबंध में ट्विटर पर छत्तीसगढ के राजनंदगांव में फंसे एक व्यक्ति को आ रही दिक्कतों का मुद्दा उठाया।

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न्होंने लिखा कि देश के अलग-अलग स्थानों पर फंसे कई लोगों के ट्वीट, वाट्सएप मैसेज, फोन सुबह से आ रहे हैं कि झारखंड सहायता एप नहीं खुल रहा है और खुलने पर उसमें एंट्री नहीं ले रहा है। ऐसे में सरयू राय ने कहा कि एप बनाने वाले सर्वर की क्षमता बढाएं और तकनीकी दिक्कतों को दूर करें।



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स संबंध में पूछने पर गिरिडीह के बगोदर से माले विधायक विनोद सिंह ने जनज्वार से कहा, यह एप राज्य के बाहर फंसे लोगों के लिए बनाया गया है, जिनके साथ दिक्कतें अधिक हैं। उन्होंने कहा कि जो लोग राज्य में हैं उनके लिए खाद्यान्न उपलब्ध कराने या भोजन उपलब्ध कराने की व्यवस्था है, लेकिन बाहर में फंसे श्रमिकों के पास मदद नहीं पहुंच पा रही है और हर दिन मेरे पास बड़ी संख्या में फोन व उनके मैसेज आ रहे हैं।

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विनोद सिंह कहते हैं कि एप को अधिक तकनीकी समृद्ध बनाना चाहिए और प्ले स्टोर में डालना चाहिए। वे कहते हैं कि मैंने विधानसभा सत्र के दौरान भी यह मामला उठाया था कि सांसद-विधायक मद से श्रमिकों को मदद पहुंचाने की अनुमति दी जानी चाहिए, 26 मार्च को अपने निधि के लिए मैंने इस संबंध में डीडीसी को पत्र भी लिखा था। हालांकि बाद में सरकार को इसके लिए राजी होना पड़ा और विधायकों को अपने मद से 25 लाख रुपये तक की सहायता राशि श्रमिकोें में प्रति व्यक्ति दो हजार रुपये की दर से वितरित करने की अनुमति दी।

गर हम 25 लाख रुपये को दो हजार रुपये की दर से बांटेंगे तो यह 1250 श्रमिकों में ही बंट सकेगा और एक हजार रुपये की दर से बांटेंगे तो यह 2500 श्रमिकों में बंटेगा। विनोद सिंह कहते हैं कि गिरिडीह के छह विधायक अगर एक हजार रूपये प्रति व्यक्ति की दर से भी सहायता राशि बांटेंगे तो यह मदद 15 हजार लोगों तक पहुंचेगी, जबकि वास्तविक रूप में श्रमिकों की संख्या इससे काफी अधिक है।

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विनोद सिंह के अनुसार, उनके निर्वाचन क्षेत्र के ही 21, 311 लोगों का डेटा मदद के लिए तैयार है। वे कहते हैं: कोरोना महामारी का मामला अपने देश में होली के बाद जोर पकड़ा तो उस समय पर्व मनाकर बहुत से प्रवासी श्रमिक यहां से अपने-अपने काम धंधे की जगह वापस लौटे ही थे और उनका हाथ पूरी तरह खाली था, इसलिए दिक्कतें बहुत अधिक हैं।

प के माध्यम से पैसे ट्रांसफर करने को लेकर उनकी एक और आशंका है कि बहुत से ऐसे श्रमिक भी हैं, जिनका खाता तो झारखंड का है, लेकिन उनके पास एटीएम कार्ड नहीं हो सकता है तो फिर वे पैसे खाते से निकालेंगे कैसे।

नज्वार ने सरकार के इस सहायता प्रस्ताव के बारे में श्रमिकों का रुख जानने के लिए दादर नगर हवेली में झारखंड के प्रवासी मजदूरों के एक समूह से संपर्क किया। उसमें से एक व्यक्ति ने बताया कि हमें रांची से काॅल सेंटर वालों ने इस एप के बारे में बताया जिसके बाद हमने सात-आठ लोगों का फार्म भरवाया, लेकिन कई लोग इस फार्म भरने को तैयार नहीं हैं। उस व्यक्ति ने कहा कि इसकी वजह ओटीपी वेरिफिकेशन है, मजदूर इसे साइबर क्राइम का मामला मानते हुए डरते भी हैं। सरकार ने श्रमिकों की पुष्टि के लिए ओटीपी वेरिफिकेशन को अनिवार्य किया है और ओटीपी के जरिए बड़े पैमाने पर ठगी भी होती है। आशंका है कि साइबर ठगों के लिंक पर वे कहीं अपना ब्यौरा न भर दें। लिंक भेज कर भी ठगी के किस्से झारखंड में आम हैं।

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हालांकि वह अपने साथी श्रमिकों में पढा-लिखा हुआ है इसलिए लोगों को समझाने की कोशिश भी करता है। दरअसल, साइबर क्राइम के अधिकतर मामले झारखंड के ही होने की वजह से यहां के प्रवासी श्रमिक इसको लेकर अधिक सशंकित हैं। हाल में हजारीबाग के साइबर ठगों ने पीएम केयर फंड की फर्जी साइट के माध्मय से कोरोना से लड़ने के नाम पर 50 लाख से अधिक की ठगी भी की है। दादर नागर हवेली में फंसा मजदूरों का यह समूह दुमका-देवघर जिले के जामा, पालोजोरी आदि प्रखंडों का है और ये 80 से अधिक की संख्या में हैं। वह शख्स यह भी कहता है कि सरकार से मदद नहीं मिली है और कंपनी वाले ही उन्हें मदद दे रहे हैं।

बोकारो के चंदनकियारी से विधायक अमर कुमार बाउरी ने इस संबंध में जनज्वार के सवालों के जवाब में कहा कि श्रमिक भी अब टेक्नोलाॅजी जानने लगे हैं, लेकिन उसका इजी एक्सेस हो। वे कहते हैं कि सभी लोग नौसिखुआ नहीं हैं, अगर इसका एक्सेस ठीक से हो तो राहत मिलेगी, लेकिन इसमें तकनीकी दिक्कतें आ रही हैं।

बाउरी कहते हैं कि सरकार ने श्रमिकों को मदद पहुंचाने के लिए संबंधित राज्य के लिए नोडल पदाधिकारी तैनात किए हैं, लेकिन हमें यह जानकारी मिल रही है कि जब जरूरतमंद अधिकारियों को फोन करते हैं तो वे अपना फोन डायवर्ट किए रहते हैं। वे कहते हैं कि श्रमिकों का मनोबल उठाये रखने के लिए यह जरूरी है कि उन्हें इसका अहसास कराया जाये कि सरकार का हाथ उनके सिर पर है। मालूम हो कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 15 सीनियर आइएएस अधिकारियों को अलग-अलग राज्यों का प्रभार सौंपा है जो वहां फंसे झारखंड के श्रमिकों को मदद पहुंचाने के लिए जिम्मेवार हैं।

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मर कुमार बाउरी कहते हैं हमारा सवाल मदद पहुंचाने के तरीको को लेकर है। हम संबंधित राज्य में वहां के अधिकारियों के माध्यम से श्रमिकों को सीधी मदद पहुंचाने के पक्ष में हैं। इसके लिए सरकार संबंधित विधायकों से अपने-अपने इलाके के श्रमिकों की सूची ले सकती है। वे कहते हैं कि उनके इलाके के पांच से दस हजार श्रमिक बाहर फंसे हैं और अगर विधायक निधि से 25 लाख रुपये श्रमिकों को मदद पहुंचाने के लिए खर्च करेंगे तो मात्र 1250 श्रमिकों तक ही पहुंचेगा।

कांग्रेस विधायक प्रदीप यादव ने भी शनिवार को इस एप की तकनीकी खामियों के बारे में मुख्यमंत्री कार्यालय व मुख्य सचिव को अवगत कराया और इसे दूर कराने की मांग की। उन्होंने बैंक की बाध्यता को दूर करने को कहा है।

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